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(आशु सक्सेना) प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर मोदी ने 2014 लोकसभा चुनाव का श्रीगणेश 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान उस वक्त ​किया था, जब अचानक देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर उनका नाम उछाला गया था। सूबे के मुख्यमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा प्रदेश विधानसभा के तीसरे चुनाव का सामना कर रही थी। मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पहला विधानसभा चुनाव 2002 में गौधरा कांड़ के बाद लड़ा था। सांप्रदायिक आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण के चलते इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त जीत मिली थी।

गुजरात की 182 विधानसभा सीट में से भाजपा ने 127 सीटों पर कब्जा किया था। सीएम मोदी ने 2007 का विधानसभा चुनाव गुजरात के विकास मॉडल के नारे पर लड़ा। इस चुनाव में भाजपा को जबरदस्त झटका लगा। वह दस सीट के नुकसान के साथ 117 सीटों पर सिमट गई। लिहाजा 2012 का विधानसभा चुनाव मोदी के लिए चुनौती ​थी। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और विकास मॉडल का फार्मुला अपनाया जा चुका था। लिहाजा कोई नया चुनावी मुद्दा उछालना भाजपा की मजबूरी थी। नये मुद्दे की तलाश में पार्टी के रणनीतिकारों ने सीएम मोदी को देश का भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश कर दिया। हांलाकि उस वक्त पार्टी ने इस तरह का कोई अधिकृत फैसला नही किया था।

इसके बावजूद गुजरात विधानसभा चुनाव का मुद्दा मोदी देश के भावी प्रधानमंत्री होंगे बन गया। नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने इस चर्चा को उस वक्त ओर पुख्ता कर दिया, जब उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान पत्रकारों के सवाल के जबाव में कहा कि मोदी बेहतर प्रधानमंत्री साबित होंगे, क्योंकि उन्हें प्रशासनिक अनुभव है। बहरहाल, इस चुनाव में भाजपा मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार सत्ता पर ​काबिज हुई। लेकिन पार्टी पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में भी सीटों के लिहाज से घाटे में रही। इस चुनाव में भी भाजपा को दो सीट का नुकसान हुआ और वह 115 पर सिमट गई। जबकि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा 100 का आंकड़ा भी नही छू सकी। हांलाकि वह सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रही। पीएम मोदी के गृह राज्य के चुनावी ग्राफ से साफ है कि मोदी की लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट आयी है। जिसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।

2014 लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने 2013 में गुजरात के सीएम मोदी को अधिकृत तौर पर पार्टी का भावी प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया। तभी से मोदी ने पार्टी के स्टार प्रचार के तौर पर अभियान शुरू किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली। तीस साल बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ। भाजपा ने पूर्ण बहुमत के बावजूद एनडीए के घटक दलों को सरकार में शामिल किया। मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार करीब साढ़े चार साल पूरे कर चुकी है।

आपको याद दिला दें कि मोदी ने अपने चुनाव प्रचार की शुरूआत में सत्तारूढ़ कांग्रेस को ललकारते हुए कांग्रेस मुक्त भारत की परिकल्पना के साथ साठ साल बनाम साठ महीने का नारा दिया था। पीएम मोदी अपने इस कार्यकाल के करीब 53 महीने पूरे कर चुके हैं। इस दौरान उनके खाते में एक भी विशेष उपलब्धी का उल्लेख नही किया जा सकता। इस दौरान मंहगाई, बेरोजगारी समेत आम आदमी से जुड़े अधिकांश मुद्दे यथावत हैं।

2014 के चुनाव में भाजपा का सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला नारा था... बहुत हुई मंहगाई की मार अबकी बार मोदी सरकार। मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल में मंहगाई 70 साल का रिकार्ड तोड़ दिया। इस दौरान चने की दाल भी 200 रूपये प्रति किलो का आंकड़ा छू चुकी है। पीएम मोदी इन दिनों विकास की बात करते हैं और देश को सबसे लंबी सुरंग और समुंद्र पर सबसे लंबा पुल बनवाने का दावा करते हैं। जबकि जम्मू से श्रीनगर तक बनी सुरंग की नींव जुलाई 2011 में रखी गई थी और मई 2016 तक इसके पूरा होने का लक्ष्य रखा गया था। जबकि यह अप्रैल 2017 में पूरी हो सकी। इसी तरह असम से अरूणाचल प्रदेश तक बने धोला सादिया पुल की मंजूरी 2009 केंद्र सरकार ने दी थी और इसके पूरे होने का लक्ष्य 2015 था। यह पुल मई 2017 में पूरा हो सका। इसके अलावा नोटबंदी को छोड़कर अन्य कोई भी उपलब्धी मोदी सरकार की नही मानी जा सकती है।

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा 282 सीट हासिल की थी। पिछले साढ़े चार साल में यह घटकर 272 रह गई हैं। बहरहाल अब सवाल यह है कि क्या मोदी 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुमत का जादुई आंकड़ा छू सकेंगे। फिलहाल के राजनीतिक माहौल में ऐसा होना संभव प्रतीत नही होता। हां, भाजपा एकबार फिर लोकसभा में सबसे बड़े दल के तौर पर उभर सकती है। लेकिन सरकार के गठन के लिए उसे घटक दलों की जरूरत होगी। अब सवाल यह है कि क्या पीएम मोदी को घटक दलों का समर्थन मिलेगा। जबकि मौजूदा परिदृश्य में चंद्रबाबू नायडु की टीडीपी ने एनडीए से नाता तोड़ लिया है। भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना मोदी के नेतृत्व को लेकर लगातार आक्रामक है। शिवसेना ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की कर दी है।

यूं मोदी के चुनावी ग्राफ पर अगर नजर डालें, तो साफ है कि मोदी के ग्राफ में गिरावट रही है। जो कि अगले लोकसभा चुनाव में बरकरार रहने की उम्मीद है। दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने प्रभाव वाले सूबों में लगभग सभी सीटें जीती थी। लिहाजा उनमें हिजाफे की गुंजाईश नही है। सिर्फ घाटा ही संभव है। इन हालात में पीएम मोदी की पद पर वापसी मुश्किल लग रही है। यह तस्वीर मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद ओर साफ हो जाएगी।

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