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(आशु सक्सेना): राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर भाजपा आलाकमान की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट संदेश नहीं आया है। लेकिन लगता है कि भाजपा सूबे में सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती है। यहीं वजह है कि भाजपा ने राजस्थान में क्षेत्रीय लोकप्रियता को ध्यान में रखते हुए बसुंधरा राजे को भी साथ लेकर चलने का मन बना लिया है।

राजस्थान में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भाजपा में लंबे समय से चल रही खिंचतान जगजाहिर है। सूबे में बसुंधरा राजे विरोधी खेमा लगातार उनके नाम का विरोध कर रहा है। केंद्रीय मंत्री गजेंन्द्र सिंह शेखावत और पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनीया पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात करते रहे हैं। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने उदयपुर में बसुंधरा राजे के साथ मंच साझा करते हुए यह संकेत दिया कि बसुंधरा राजे पार्टी नेतृत्व के लिए अहम नेता है। दरअसल उदयपुर रैली में उस वक्त अजीब हालात पैदा हो गये, जब मंच पर बसुंधरा राजे की मौजूगी के बावजूद मंच संभाल रहे नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर ने बसुंधरा राजे के नाम को दरकिनार करते हुए अमित शाह को संबोधन के लिए आमंत्रित कर लिया।

(धर्मपाल धनखड़): डेढ़ महीने से ज्यादा समय से मणिपुर जल रहा है। अब तक 115 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। 50 हजार से ज्यादा लोग अस्थाई शिविरों में शरण लिये हुए हैं। बड़ी संख्या में सरकारी और निजी संपतियां आग में स्वाह कर दी गयी। यहां तक कि केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेताओं के घरों को भी आग के हवाले किया जा रहा है। प्रदेश के 11 जिलों में कर्फ्यू लगा है। उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने के आदेश सुरक्षा बलों को दिये गये हैं। सेना और केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात हैं। फिर भी राज्य सरकार हिंसा रोकने में बुरी तरह विफल रही है। ना केवल विफल रही है, बल्कि प्रदेश के दोनों बड़े समुदायों का विश्वास खो चुकी है।

कुकी समुदाय प्रदेश सरकार की नीतियों को ही वर्तमान हालात के लिए जिम्मेदार मानता है। वहीं मैतेई समुदाय जिसने चुनाव में बीजेपी को एकजुट समर्थन दिया था। उनका कहना है कि राज्य सरकार उन्हें सुरक्षा देने में नाकाम रही है। ऐसे में दोनों समुदाय शांति बहाली के लिए केंद्र की ओर देख रहे हैं। लेकिन केंद्र सरकार अपने खास अंदाज में घटनाक्रम पर पैनी नजर रखें हुए हैं।

(आशु सक्सेना): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अपने दूसरे काल के अंतिम साल में प्रवेश कर चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति को अंजाम देना शुरू कर रणनीति को अमलीजामा पहना शुरू कर दिया है। आरएसएस और सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी वादों में "समान नागरिक संहिता" वह आखिरी मुद्दा है, जिसे मोदी सरकार को लागू करना बाकी है। संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने और राम मंदिर बनाने का चुनावी वादा पूरा हो चुका है। यह बात दीगर है कि राम मंदिर निर्माण का रास्ता मोदी सरकार ने नहीं, बल्कि सप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद साफ हुआ है। लेकिन चुनाव से पहले पीएम मोदी मंदिर का उद्घाटन करके हिंदू मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश करेंगे।

आपको याद दिला दें कि केंद्रीय विधि आयोग ने 15 जून 2023 को कहा कि उसने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा "समान नागरिक संहिता" (यूसीसी) पर लोगों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के सदस्यों सहित विभिन्न हितधारकों के विचार आमंत्रित कर नये सिरे से परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

(धर्मपाल धनखड़) इन दिनों हरियाणा में 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दल माहौल गर्माने में लगे हैं। वास्तव में देखा जाये तो बीजेपी और कांग्रेस को छोड़कर, बाकी पार्टियां लोकसभा चुनाव को ज्यादा महत्व नहीं दे रही हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज होना है। तमाम पार्टियों और उनके प्रमुखों की जंग मुख्यमंत्री बनने को लेकर है।

सबसे पहले प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की बात करते हैं। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और हाथ से हाथ जोड़ों अभियान के बाद इन दिनों कांग्रेस 'विपक्ष आपके समक्ष' कार्यक्रम चला रही हैं। बेशक गुटबाजी की शिकार कांग्रेस पिछले नौ साल में धरातल पर संगठन भी नहीं खड़ा कर पायी है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष उदयभान को लेकर ताबड़तोड़ जनसभाएं कर रहे हैं। और उन्हें जनता का समर्थन भी मिला रहा है। वहीं कांग्रेस के अलग-अलग गुटों के नेताओं के बीच भी मुख्यमंत्री बनने की जंग तेज होती दिख रही है।

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