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 (आशु सक्सेना) अगले साल के शुरू में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे कल यानि 03 दिसंबर 2023 को सामने आ जाएंगे। पांच सूबों के चुनाव पीएम मोदी के लिए उनकी तीसरी पारी के सेमी फाइनल माने जा रहे हैं। दरअसल, इन पांच राज्यों के चुनाव नतीजे यह तय करेंगे कि पीएम मोदी अपनी तीसरी पारी में 15 अगस्त 2024 को लालकिले की प्राचीर से तिरंगा फेराएंगे या नहीं?

यूं तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इन राज्यों खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में भी सत्ता से बेदखल हो गयी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी अपनी स्थापित लोकप्रियता को बरकरार रखने में कामयाब रहे थे। इन तीनों राज्यों में सत्तारूढ़ कांग्रेस को जबरदस्त झटका लगा था। पीएम मोदी तीनों ही राज्यों में 2014 से बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब हुए थे। जबकि तीनों ही राज्यों में सत्तारूढ़ कांग्रेस लोकसभा चुनाव में अपना खाता खोलने के लिए भी तरस गई थी। पीएम मोदी ने तीनों राज्यों की लगभग सभी लोकसभा सीटें जीती थीं।

(संजय कुमार): तेलंगाना में रायतु बंधु योजना को लेकर बवाल भले ही फिलहाल थम गया हो, लेकिन यहां के लोग यही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर चुनाव आयोग ने रायतु बंधु योजना की रकम बांटने का आदेश देकर वापस क्यों ले लिया? क्या इसमें केवल चुनाव की आदर्श आचार संहिता का मामला था या फिर रकम के बंटवारे का पहले आदेश देने और फिर अपने ही आदेश को वापस लेने का लिए एक बहाना ढूंढा गया। क्योंकि चुनाव आयोग ने जिस लचर दलील के साथ इस योजना के तहत किसानों के खाते में दूसरी किस्त के 7300 करोड़ के बंटवारे का आदेश दिया था, उससे भी ज्यादा लचर दलील के साथ अपने ही आदेश को वापस ले लिया। जो लोगों के मन में भारी संदेह पैदा कर रहा है। लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि तेलंगाना में केसीआर की रायतु बंधु योजना बैकफायर कर गई है।

आज से 4 दिन पहले यानि 24 नवंबर को चुनाव आयोग ने अति उत्साह और जोश में रायतु बंधु योजना के तहत 65 लाख किसानों के खाते में डीबीटी के माध्यम से 7300 करोड़ रुपये चुनाव से ठीक पहले, यानि 28 नवंबर तक भेजने की मंजूरी राज्य सरकार को दी थी। तो फिर चुनाव आयोग ने अपना आदेश वापस क्यों ले लिया?

(आशु सक्सेना) पिछड़ों मे मंड़ल मसीहा माने-जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की आदमकद प्रतिमा का चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एवं द्रमुक अध्यक्ष एमके स्टालिन ने सोमवार को अनावरण किया। उन्होंने यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को मुख्य अतिथि के रूप आमंत्रित किया। दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में आयोजित यह कार्यक्रम तेजी से चर्चाओं में आ गया है। अनावरण के दौरान सीएम स्टालिन ने वीपी सिंह को पिछड़े वर्ग का हीरो बताया, लेकिन इसी वर्ग के 'इंडिया' गठबंधन के अन्य नेता खासतौर पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं थे। इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं, इस कार्यक्रम को क्षेत्रीय दलों के गैर कांग्रेसी तीसरे मोर्चे की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है।

दरअसल, 'इंडिया' गठबंधन के सूत्रधार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि कांग्रेस को केंद्र में रखकर भाजपा खासकर पीएम मोदी विरोधी मोर्चे की कल्पना नहीं की जा सकती, जबकि गठबधन के अन्य कई दल कुछ नीतियों को लेकर कांग्रेस के भी विरोधी हैं।

(संजय कुमार): तेलंगाना के काजीपेट रेलवे स्टेशन पर उतरते ही इस बात का एहसास होने लगता है कि तेलंगाना में अबकी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने जा रहा है। राजधानी एक्सप्रेस में रेलवे के एक कर्मचारी ने हमें पहले ही बता दिया कि तेलंगाना में लड़ाई बीआएस और कांग्रेस के बीच ही है और इस मुकाबले में कांग्रेस भारी पड़ रही है। क्योंकि यहां के लोग बदलाव चाहते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि लोग एक तो केसीआर का चेहरा देख-देखकर उब गए हैं और दूसरा, केसीआर ने कोई नया काम भी नहीं किया है, जो लोगों को आकर्षित कर सके। जहां तक केसीआर की योजनाओं का सवाल है तो कांग्रेस ने बीआरएस से दो कदम आगे बढ़कर घोषणाएं कर दी हैं।

जिस रायतु बंधु योजना की रकम जारी करने को लेकर दिल्ली में इतना बवाल मचा था उसपर यहां के लोगों का कहना है कि चलो 28 नवंबर नहीं 1 दिसंबर को मिल जाएगा। उससे क्या फर्क पड़ता है। असली मुद्दा तो ये हैं कि कांग्रेस ने इसे बढ़ाकर 10 हजार से 15 हजार करने की बात की है और जो योजना एक बार शुरू हो गई उसे कोई सरकार बंद नहीं कर सकती।

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