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(अरुण दीक्षित) मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में सिर्फ कुछ महीने ही बचे हैं! सभी दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं।चूंकि यह राज्य आज तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही झूलता रहा है इसलिए मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों में होना है।दोनों ही ओर से युद्ध स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं।चतुरंगिनी सेनाएं मैदान में उतर चुकी हैं।दिनों की गिनती शुरू हो गई है।

सबसे मजे की बात यह है कि इस चुनाव में अभी तक वे मुद्दे गायब हैं जो किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ कहे जाते हैं।सबसे चर्चित मुद्दा "विकास" लापता है।उसके साथ ही मूलभूत सुविधाओं का अपहरण हुआ सा लगता है।एक "धर्मनिरपेक्ष" राज्य में धर्म ने सबको पछाड़ दिया है।वह भी एक ही धर्म ने।उसकी ताकत इतनी ज्यादा है कि अन्य धर्म अपनी जान बचाते फिर रहे हैं।

सबसे गंभीर बात यह है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली कांग्रेस वही सब करना चाह रही है जो बीजेपी कर रही है। अभी तक जो दिखाई पड़ रहा है उसमें सबसे अहम मुद्दा धर्म है। उसके बाद दूसरे नंबर पर खैरात है। विकास की बात कोई नही कर रहा है।

(धर्मपाल धनखड़): इन दिनों भारतीय जनता पार्टी में कुछ खलबली और बैचेनी नजर आ रही है। इस बैचेनी के कई कारण हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण है कर्नाटक में पार्टी के ब्रांड मोदी और हिंदुत्व दोनों का विफल रहना। साथ ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी की करोड़ों रुपए खर्च करके बनायी गयी 'पप्पू' की छवि का टूटना। ये छवि उनकी भारत जोड़ो यात्रा से ना केवल टूटी है, बल्कि वे एक समझदार और लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे हैं।

हालांकि अब तक हुए ज्यादातर सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है। लेकिन राहुल गांधी की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी है। ऐसे में कांग्रेस और राहुल गांधी की लोकप्रियता बढ़ना निश्चित रूप से भाजपा के दिग्गजों के लिए परेशान करने वाली बात है।

भारतीय जनता पार्टी अब पूरी तरह से ब्रांड मोदी पर निर्भर होकर रह गयी है। यदि मोदी को माइनस कर दे भाजपा की हालत बेहद पतली है। आम लोगों से जब पत्रकार पूछते हैं कि किसको वोट करोगे, तो वे भाजपा का नहीं, केवल मोदी का नाम लेते हैं।

(धर्मपाल धनखड़): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नये संसद भवन का उद्घाटन 28 मई को करेंगे। ये एक ऐतिहासिक आयोजन होगा। 20 विपक्षी पार्टियों ने इस समारोह का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। विपक्ष का कहना है कि संसद भवन का उद्घाटन देश के राष्ट्रपति को करना चाहिए। राष्ट्रपति हमारे संप्रभुता संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य का सर्वोच्च पद है। देश की तीनों सेनाओं का मुखिया हैं।

यहां ये बात भी उल्लेखनीय है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना सत्ता पक्ष। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बेहतर संतुलन से ही सरकार जनहित के निर्णय लेती है।

संवैधानिक संस्थाओं को दलीय राजनीति से परे रखा जाना चाहिए। इसलिए बेहतर होता कि संसद के नये भवन के उद्घाटन के ऐतिहासिक मौके पर पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों मौजूद रहते! लेकिन इसके लिए परस्पर सहमति भी जरूरी है। जिसका आज‌ के दौर में नितांत अभाव है।

खैर, विपक्ष के बहिष्कार के बावजूद नये संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही करेंगे!

(आशु सक्सेना): कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीज़ों के बाद 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर बहस तेज हो गयी है। चुनावी पंड़ितों ने अपनी अपनी भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दी है। इन पंडितों ने अपने तर्को से यह भी तय करना शुरू कर दिया है कि अंत में पीएम मोदी ही दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश 'भारत' की जनता की पहली पसंद होंगे। कर्नाटक चुनाव नतीज़ों के साथ घोषित उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव के नतीज़ों का हवाला देकर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि काशी, मथुरा और अयोध्या वाले प्रदेश में पीएम मोदी ही अभी तक पहली पसंद है। लिहाजा लोकसभा की 80 सीटों वाले सूबे की जीत से पीएम मोदी का सत्ता पर काबिज़ होना तय है।

भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने कर्नाटक की हार के बाद अपने बचाव में यह जबावी रणनीति अख्तियार की है कि उत्तर प्रदेश में पीएम मोदी करिश्मा काम कर रहा है और अगले साल यानि 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले ‘‘अयोध्या‘‘ में पीएम मोदी ‘‘राम मंदिर‘‘ का उद्घाटन करेंगेे और चुनाव से पहले पूरा देश ‘राममय‘ हो जाएगा और "एक बार फिर से लाओ" के नारे के साथ चुनावी समर में उतरा जाएगा।

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