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(धर्मपाल धनखड़): हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन के नेताओं की एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी बदस्तूर जारी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने दावा किया है कि यदि पार्टी कहे तो वे जेजेपी के सात विधायक लाकर दे सकते हैं। इस पर पूर्व सांसद अजय सिंह चौटाला ने चुनौती दी है कि वे जेजेपी का एक विधायक तो तोड़कर भाजपा में शामिल करवाकर तो दिखायें। माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री मनोहरलाल के गठबंधन को लेकर दो दिन पहले दिये स्पष्टीकरण के बाद एक दूसरे की छीछालेदर करने वाली बयानबाजी का दौर थम जायेगा। लेकिन ऐसा हुआ नही।

मुख्यमंत्री ने कहा था कि गठबंधन सरकार सफलतापूर्वक काम कर रही हैं। चुनाव में किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर प्रदेश हित में गठबंधन किया गया था और यह जारी रहेगा। वहीं उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने गठबंधन को लेकर उठे विवाद का ठीकरा मीडिया पर फोड़ा। चौटाला ने कहा कि वो गठबंधन को मजबूत कर रहे हैं, लेकिन मीडिया लंबे समय से गठबंधन को तुड़वाने में लगा है।

खैर, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री कितनी भी लीपा-पोती करें, दोनों तरफ के नेताओं के तल्ख बयानों ने गठबंधन की मजबूती का सच जनता के सामने ला दिया है। पूर्व केंद्रीय बीरेंद्र सिंह के इस बयान कि 'अब बीजेपी को बैसाखियों की जरुरत नहीं रही' से शुरू हुए विवाद में अंततः मनोहर लाल, दुष्यंत चौटाला और बीजेपी के प्रदेश प्रभारी बिप्लव देव ने भी खूब एक दूसरे पर तंज कसे। जिसके चलते प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में सियासी तूफान का इंतजार बड़ी बेसब्री से किया जा रहा है। मीडिया ने नेताओं की एक दूसरे पर की गयी छींटाकशी को हू-ब-हू दिखा और छाप रहा है। इस पर जनता भी खूब चटखारे ले रही है।

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर चल रहा विवाद महज नाटक है। चूंकि हरियाणा विधानसभा चुनाव काफी दूर हैं। इसलिए अभी ना तो गठबंधन तोड़ने का समय आया है और ना ही आगामी चुनावों के लिए गठबंधन जोड़ने का। इस सबसे अलग बात ये है कि चुनाव के बाद जेजेपी से गठबंधन करते समय केंद्रीय नेतृत्व यानी अमित शाह ने हरियाणा बीजेपी के नेताओं से कोई राय नहीं ली थी। केवल मुख्यमंत्री मनोहर लाल को बताया गया था कि इन शर्तों पर गठबंधन हुआ है। यानी गठबंधन गृहमंत्री अमित शाह और दुष्यंत चौटाला के बीच हुआ था। अब बीजेपी नेता गठबंधन की चाहे जैसी व्याख्या करते रहे, कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। गठबंधन में चुनाव लड़ने अथवा अलग-अलग लड़ने का अंतिम फैसला भी वहीं से होगा।

अब सवाल ये उठता है कि फिर ये सारा बखेड़ा खड़ा क्यों किया गया है? इसकी असलियत तो ये है कि विवाद की जड़ में जेजेपी उम्मीदवारों के मुकाबले में चुनाव हारने वाले बीजेपी नेता, पार्टी में अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं। चूंकि यदि विधानसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियों का गठबंधन जारी रहता है, तो जेजेपी के उम्मीदवार जिन दस विधानसभा सीटों पर जीतें थे। उन पर वह अपना दावा नहीं छोड़ेगी। ऐसी स्थिति में बीजेपी के हारने वाले दिग्गज नेता असहज महसूस कर रहे हैं। और उनका दर्द भी वाजिब है। सोच समझकर शुरु किये गये इस विवाद में दोनों राजनीतिक दल अपना फायदा देख रहे हैं। दोनों पार्टियों के नेतृत्व को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के मन की बात पता चल गयी और भविष्य में इसी के आधार पर एक दूसरे से सौदेबाजी होगी।

देश भर में बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व जिस तरह ईडी, आई टी और सीबीआई के जरिये विपक्षी नेताओं को नियंत्रित कर रहा है। उसी हथियार से अपने सहयोगी दलों के नेताओं को भी कंट्रोल कर रहा है। हरियाणा में भी पूरी विपक्षी राजनीति इसी से संचालित हो रही है। ऐसे में केंद्र के पास दुष्यंत की चाबी नहीं होगी, ये सोचना भी बेमानी लगता है। गौर करने लायक है कि स्वर्गीय चौधरी देवीलाल के परिवार के चार सदस्य इस समय एम एल ए हैं। वे सबके सब बीजेपी के साथ हैं। दुष्यंत चौटाला और उनकी मां नैना चौटाला जेजेपी के विधायक हैं और सरकार में शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के भाई रंजीत चौटाला निर्दलीय विधायक हैं और सरकार में मंत्री हैं। अभय चौटाला इनेलो के विधायक हैं, लेकिन जब भी मौका आया, वे बीजेपी के साथ खड़े मिले। वो चाहे राज्यसभा चुनाव हों या फिर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव हो। सभी में अभय चौटाला ने बीजेपी के पक्ष में वोट किया। यहां ये भी‌ बता दें कि अजय चौटाला और अभय चौटाला दोनों भाइयों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला चल रहा है।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि 'जितनी चाबी भरी राम ने, उतना चले खिलौना' की उक्ति आज के राजनीतिक दौर पर सही बैठती है। जेजेपी और इनेलो ही नहीं,अन्य दलों के नेता और ज्यादातर निर्दलीय विधायक, सभी चाबी भरे खिलौनों की तरह एक निश्चित दायरे में उछल-कूद करते दिखाई दे रहे हैं। जैसा कि हमने थोड़ी देर पहले जिक्र किया कि अभी गठबंधन तोड़ने या आगे जोड़ने का फैसला करने का समय नहीं आया है।‌ जेजेपी जहां प्रदेश में अपना प्रभाव बढ़ाने में जुटी है, वहीं राजस्थान में भी अपना विस्तार कर रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान में विधानसभा चुनाव हैं। जेजेपी ने भी राजस्थान में चुनाव लड़ने की घोषणा की है। जेजेपी यहां 20 जाट बहुल विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील के भाई पृथ्वी मील को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करके जेजेपी ने जाट मतदाताओं में सेंधमारी शुरू कर दी है। यहां जेजेपी का प्रदर्शन कैसा रहेगा? ये तो उम्मीदवारों के चयन पर निर्भर करेगा। लेकिन एक बात निश्चित है कि यहां भी जेजेपी, बीजेपी विरोधी वोटों को बांटने का काम करेगी। जैसे हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनाव में किया था। यानी जेजेपी को चुनाव में जहां वोट फीसदी का फायदा होगा, वहीं बीजेपी को जाट बहुल इलाकों में कई सीटों का फायदा हो सकता। कुछ राजनीतिक प्रेक्षक हरियाणा में गठबंधन के विवाद को राजस्थान के चुनाव से भी जोड़कर देख रहे हैं। अब देखने वाली बात ये होगी कि राजस्थान में जेजेपी-बीजेपी गठबंधन में चुनाव लड़ती हैं या अलग-अलग। इसी से हरियाणा में भी गठबंधन का भविष्य अंदाजा हो जायेगा।

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