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(आशु सक्सेना): उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) ने दोनों संसदीय सीटों पर उम्मीदवारों के चयन, राज्यसभा प्रत्याशियों और विधान परिषद चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों की घोषणा के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। प्रदेश की दो लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा ने दोनों ही क्षेत्रों से अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने सिर्फ आजमगढ़ से प्रत्याशी घोषित किया है। जबकि केंद्र में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने खुद को इस लड़ाई से बाहर कर लिया है। लिहाजा मुकाबला आमने-सामने का है।

सपा ने आजमगढ़ से पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं रामपुर से पार्टी के सबसे बड़े मुसलिम नेता आज़म खां ने नामांकन से ठीक पहले आसीम रज़ा की उम्मीदवारी का एलान किया है। पिछली लोकसभा में धर्मेंद्र यादव पार्टी के उन पांच सांसदों में से एक थे, जो हर मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक अंदाज़ में बोलते थे।

(आशु सक्सेना): राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) को संभवत: इस हकीक़त का एहसास हो गया है कि मंदिर-मसजिद मुद्दे की अति चुनावी राजनीति में नुकसान का सौदा हो सकता है। जो कि आरएसएस के मिशन-2024' में बाधक होगा। आरएसएस को आशंका है कि जातिगत धुव्रीकरण के दौर में सांप्रदायिक सौहार्द बिगडने का चुनावी फायदा भाजपा विरोधी ताकतों को मिल सकता है। यही वजह है कि आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में आरएसएस कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए इस मुद्दे पर कुछ हिंदू संगठनों की निंदा की। साथ ही आरएसएस प्रमुख भागवत ने ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा ईदगाह समेत देश अन्य जगहों पर उठ रहे ऐसे विवादों को लेकर बड़ा बयान दिया।

उन्होंने कुछ हिन्दू संगठनों का ज़िक्र करते हुए कहा कि हर दूसरे दिन मस्जिद-मंदिर विवादों को उठाना और विवाद पैदा करना अनुचित है। इन मुद्दों के सौहार्दपूर्ण समाधान की जरूरत है। दोनों पक्षों को एक साथ बैठकर शांति से एक-दूसरे से बात करनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो अदालत के फैसले को स्वीकार करें।

(आशु सक्सेना): गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने गृहराज्य में दूसरी बार चुनाव का सामना करेंगे। इस साल के अंत तक गुजरात में होने वाले आम चुनाव संसदीय लोकतंत्र में पीएम मोदी के लिए उनकी अब तक की राजनीतिक यात्रा के दौरान की सबसे बड़ी चुनौती है।

दो दशक पहले 24 फरवरी 2002 को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को निर्वाचित घोषित किया गया था। इस घटना का ज़िक्र पीएम मोदी ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान इस तारीख़ को आयोजित एक जनसभा में किया था। यह बात दीगर है कि पीएम मोदी यह बताना भूल गये थे कि दो दशक पहले उसी दिन अयोध्या, काशी और मथुरा वाले यूपी से भाजपा का सफाया हुआ था और वह सिमट कर 88 सीट पर आ गयी थी। बहरहाल, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2002 के अंत में हुए विधानसभा चुनाव में 182 सीट मेंं से 127 सीट जीती थीं। इन दो दशक के दौरान हुए सभी विधानसभा चुनावों में भाजपा कभी भी पिछले आंकड़े को बरकरार रखने मेंं कामयाब नहीं हो सकी है। 2017 तक हुए तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा को लगातार नुकसान हुआ है।

(आशु सक्सेना): केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्टार प्रचारक और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दमोदर मोदी ने आज़ादी के 75वें साल के अमृत उत्सव के दौरान उत्तर प्रदेश में पार्टी की सत्ता में वापसी करवाकर 2024 की तस्वीर को काफी हद तक साफ कर दिया है। पांच राज्यों के चुनाव नतीज़ों के बाद एक बात साफ हो गई है कि पीएम मोदी के पैतृक सूबे गुजरात में अब कोई चुनौती नहीं बची है। उस सूबे में पिछले चुनाव तक भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार के बाद तय हो गया है कि गुजरात में कांग्रेस पीएम मोदी को चुनौती नहीं दे सकती। यही वजह है कि पीएम मोदी ने चार राज्यों में जीत दर्ज करने के अगले ही दिन गुजरात में चुनाव प्रचार अभियान शुरू कर दिया है।

लेकिन पंजाब विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी की एक तरफा अप्रत्याशित जीत ने इस संभावना को प्रबल कर दिया है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीज़े भी देशवासियों को हतप्रभ कर सकते हैं। दरअसल, मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद दूसरी बार गुजरात विधानसभा चुनाव का सामना करेंगे।

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