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(अरुण दीक्षित) मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में सिर्फ कुछ महीने ही बचे हैं! सभी दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं।चूंकि यह राज्य आज तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही झूलता रहा है इसलिए मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों में होना है।दोनों ही ओर से युद्ध स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं।चतुरंगिनी सेनाएं मैदान में उतर चुकी हैं।दिनों की गिनती शुरू हो गई है।

सबसे मजे की बात यह है कि इस चुनाव में अभी तक वे मुद्दे गायब हैं जो किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ कहे जाते हैं।सबसे चर्चित मुद्दा "विकास" लापता है।उसके साथ ही मूलभूत सुविधाओं का अपहरण हुआ सा लगता है।एक "धर्मनिरपेक्ष" राज्य में धर्म ने सबको पछाड़ दिया है।वह भी एक ही धर्म ने।उसकी ताकत इतनी ज्यादा है कि अन्य धर्म अपनी जान बचाते फिर रहे हैं।

सबसे गंभीर बात यह है कि खुद को धर्मनिरपेक्ष बताने वाली कांग्रेस वही सब करना चाह रही है जो बीजेपी कर रही है। अभी तक जो दिखाई पड़ रहा है उसमें सबसे अहम मुद्दा धर्म है। उसके बाद दूसरे नंबर पर खैरात है। विकास की बात कोई नही कर रहा है।

बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही मतदाता को यह समझाने के लिए जीजान लगाए हुए हैं कि अगर उन्हें सत्ता मिली तो वे सब कुछ मुफ्त कर देंगे।दोनों की बातों और घोषणाओं से ऐसा लग रहा है कि हम लोकशाही में नही राजशाही में रह रहे हैं। वे जनता को जो कुछ देंगे वह उनकी "कृपा" होगी।बदले में उसे उन्हें वोट देना होगा।उनका अहसान मानना होगा।

आपको याद होगा दो दशक पहले बीजेपी सत्ता में आई थी।उस समय उसकी नेता उमा भारती थीं।वे चुनाव तो बीएसपी (बिजली सड़क और पानी) के मुद्दे पर जीती थीं।लेकिन बाद में पंच "ज" लेकर आई ।भारी बहुमत से जीती उमा ने इस पर पूरी ताकत से अमल भी किया।जल,जंगल,जमीन,जन और जानवर पर उनका जोर था।बीजेपी भी उसी राह पर चल रही थी।उमा करीब 9 महीने तक सत्ता में रहीं।अचानक उनका पतन हुआ।उसके साथ ही पंच "ज" भी इतिहास बन गया। हालांकि राज्य में सरकार बीजेपी की ही रही लेकिन जिस मुद्दे को उमा ने उठाया था, उसे गहरे दफन कर दिया गया।

बीच में कांग्रेस के 15 महीनों के शासन को छोड़ दिया जाए तो करीब 18 साल से बीजेपी सत्ता में है। वह 2003 से लेकर 2013 तक लगातार चुनाव जीती।2018 में उसकी हार हुई।लेकिन बाद में उसने कांग्रेस तोड़ कर सत्ता हासिल कर ली।इन 18 का सालों में सबसे ज्यादा समय शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे हैं।करीब 17 साल मुख्यमंत्री रहकर उन्होंने एक ऐसा रिकॉर्ड बना दिया है जिसे तोड़ना अब किसी के लिए भी असम्भव सा है।

2020 में कांग्रेसियों की मदद से मुख्यमंत्री बने शिवराज पहले दिन से चुनावी मोड में हैं। पहले दिन से उनकी नजर 2023 के विधानसभा चुनाव पर थी। वे उसी में जुटे हैं।

अपनों के घात से सत्ता खोने वाली कांग्रेस भी सदमे से उबरने के बाद चुनावी तैयारी में लगी है।लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वह एक सशक्त विपक्ष बनने के बजाय बीजेपी की "बी" टीम बनती दिख रही है। कांग्रेस वही सब करने की बात कह रही है जो बीजेपी कर रही है या कह रही है।

हालत यह है कि लोकतंत्र के लिए सबसे जरूरी मुद्दों पर बात ही नही हो रही है।विकास सबसे अहम मुद्दा होना चाहिए।लेकिन उस पर न सत्तारूढ़ बीजेपी बात कर रही है और न ही धोखे में सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस!ऐसा नहीं है कि करीब 19 साल की सरकार में बीजेपी ने विकास की बात नही की है। हर क्षेत्र में काम हुआ है।

लेकिन आज बीजेपी विकास के मुद्दे पर चुनाव नही लड़ना चाह रही है।वह अपने किए काम गिनाने की बजाय प्रदेश की जनता को यह बता रही है कि वह उसे मुफ्त में क्या क्या देने वाली है।

17 साल मुख्यमंत्री रह लिए शिवराज सिंह चौहान अब प्रदेश में समाजों को खुश करने में लगे हैं।हालांकि हर समाज के समग्र विकास की जिम्मेदारी उन्हीं की सरकार की है।लेकिन वे हर समाज को अलग अलग करके यह बताना चाहते हैं कि उनके लिए क्या क्या करने वाले हैं। समाज के हर वर्ग के लिए सरकार को समान रुख अपनाना चाहिए।लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।बीजेपी का पूरा ध्यान बहुसंख्यक समाज पर है।उससे भी दुखद बात यह है कि कांग्रेस भी उसका ही अनुसरण कर रही है।

धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म को सबसे पीछे होना चाहिए था! पर आज वह सबसे आगे खड़ा है। देश में जो हो रहा है वह तो हो ही रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश इस मोर्चे पर सबसे आगे दिखाई दे रहा है। प्रदेश सरकार, सरकार की तरह नहीं बल्कि एक "भक्त" की तरह धर्म के प्रचार प्रसार में लगी है।हजारों करोड़ खर्च करके देवी देवताओं के "महालोक" बनाए जा रहे हैं। सरकार मंदिरों की व्यवस्था देख रही है।

मुख्यमंत्री और उनके मंत्री "कथा - भागवत" के आयोजन करा रहे हैं।पूरे प्रदेश में सरकार के संरक्षण में "कथाएं" चल रही हैं।मंत्री और मुख्यमंत्री "यजमान" बन रहे हैं।प्रशासन कथाओं की व्यवस्था कर रहा है। और तो और कथित संत और कथावाचक भी बीजेपी के लिए काम करते नजर आ रहे हैं।आज की स्थिति यह है कि पूरा प्रदेश भगवा रंग में रंगा नजर आ रहा है। यह साफ दिख रहा है कि "धर्म" सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है।वह बाकी सब पर बहुत भारी पड़ता दिखाई दे रहा है।उसके रास्ते में कोई आना भी नही चाहता है।इसलिए उसका "एकछत्र" राज चल रहा है।

कांग्रेस बीजेपी के इस दांव के आगे पस्त दिख रही है।वह सरकार द्वारा धर्म प्रचार पर सवाल उठाने की बजाय खुद को उससे बड़ा "धार्मिक" साबित करने पर तुली है। कांग्रेस को बहुसंख्यक वोट कटने का खतरा दिख रहा है।शायद यही वजह है कि उसके पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश आते हैं तो बड़े मंदिरों में मत्था टेकना नही भूलते।उनकी बहन प्रियंका की प्रदेश यात्रा में भी पंडितों की पूजा चर्चा का विषय बनती है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ अक्सर भगवा ओढ़े दिखाई देते हैं।वे खुद को सबसे बड़ा हनुमान भक्त बताते हैं।15 महीने की सरकार में उन्होंने धर्म और गाय के लिए क्या क्या किया था, यह गिनाते हैं। वह और उनके साथी कांग्रेसी "कथाएं" करवा रहे हैं। यह अलग बात है कि ज्यादातर बड़े कथावाचक बीजेपी के साथ हैं इसलिए कांग्रेस को छोटे मोटे संत महात्माओं और कथावाचकों से काम चलाना पड़ रहा है।बीजेपी आगे आगे और कांग्रेस पीछे पीछे!धर्म को दोनों साध रहे हैं। लेकिन सिर्फ एक धर्म को।दूसरे कोनों में पड़े हैं।

कांग्रेस को जिन मुद्दों पर बात करनी चाहिए, उन पर चुप सी है।हालांकि अब भ्रष्टचार कोई मुद्दा ही नही रह गया है। बीजेपी कांग्रेस के 70 साल से आगे निकलने की इतनी जल्दी में है कि उसने भ्रष्टाचार को "शिष्टाचार" ही मान लिया है।इसलिए अब उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

जनता भी भ्रष्टाचार को अपने जीवन का अपरिहार्य अंग मान चुकी है।शायद यही वजह है कि प्रदेश में पिछले 20 साल में हुए -डंपर घोटाला,व्यापम घोटाला,खनन घोटाला,आयुष्मान घोटाला, नर्सिंग कॉलेज घोटाला,पोषण आहार घोटाला,बड़े पैमाने पर वनों का उजाड़ना उसके लिए कोई मुद्दा ही नहीं हैं। इन घोटालों के बीच ही उसने बीजेपी को दो विधानसभा और 4 लोकसभा चुनाव जिताए हैं। 2018 के चुनाव में बीजेपी थोड़े अंतर से हारी थी।लेकिन लोकसभा में उसने 29 में से 28 सीटें जीतकर हिसाब बराबर कर लिया था।बाद में कांग्रेस सरकार के गिरने पर उसने राज्य में फिर अपनी सरकार बनाई।

मजे की बात यह है कि कांग्रेस भी भ्रष्टाचार के मुद्दों पर बात करती नजर नही आ रही है।प्रदेश में प्रतिदिन नए नए खुलासे हो रहे हैं।वन माफिया ने 30 हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा इलाके से सरकारी जंगल साफ कर दिया है। फसल क्षति पूर्ति योजना में पटवारी दस हजार किसानों के नाम पर करोड़ों की मुआवजा राशि खा गए! महालेखाकार ने यह घोटाला उजागर किया। इससे पहले पोषण आहार घोटाले को भी महालेखाकार ने बताया था।जिस पर सरकार ने पूरी तरह लीपापोती कर दी थी।

जिन आदिवासियों को लेकर बीजेपी की केंद्र और राज्य की सरकार सबसे ज्यादा दावे कर रही है,उनके लिए चल रही योजनाओं में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार हो रहा है।एक जिले में ही पांच करोड़ रुपए सरकारी कर्मचारी खा गए।पूरे प्रदेश की कल्पना करिए। सरकार शादी से पहले आदिवासी लड़कियों का प्रेगनेंसी कराती है,उन्हें सरकारी दहेज में कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियां देती है।मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में अकेले विदिशा जिले में 30 करोड़ का घोटाला हुआ था। लेकिन कांग्रेस इन पर सिर्फ रस्म अदायगी करके रह जाती है। स्कूल शिक्षा विभाग में बच्चों की ड्रेस में 50 करोड़ से ज्यादा का घोटाला हो जाता है। सब मौन रहते हैं।

बीस साल पहले जो पार्टी जल जंगल और जमीन की बात करते हुए सरकार चला रही थी। जिसने दिग्विजय के दस साल के शासन पर हजारों पन्नों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, अब वह उन मुद्दों पर बात नही करती। कांग्रेस भी इसी तरह का बर्ताव कर रही है।वह आज तक यह बात नही कह पा रही है कि दिग्विजय के खिलाफ जो आरोप बीजेपी ने लगाए थे,उनके सबूत आज तक अदालत नही पहुंचे हैं।दिग्विजय के मानहानि के मामले में उमा सालों से उलझी हुई हैं।वह बचाव का रास्ता खोज रही हैं।

सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वर्तमान राज्य सरकार लोकतंत्र की बजाय राजतंत्र की तरह व्यवहार कर रही है।उसने खुद को राजा मान लिया है।चुनाव जीतने के लिए खैरात ऐसे बांट रही है जैसे वह कर्ज में डूबे राज्य का उधार का पैसा न होकर व्यक्ति विशेष या दल विशेष का पैसा हो।

सरकार की सभी योजनाएं किसी जाति,समाज,समूह और धर्म पर केंद्रित हैं।ऐसी कोई योजना नहीं है जो समग्र समाज के लिए हो। लेकिन उससे सवाल पूछने के लिए कोई नहीं है।जिस कांग्रेस को यह करना था वह चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कि बीजेपी जो कर रही है,उससे ज्यादा वह करेगी।बस उसे सत्ता मिल जाए।

प्रदेश में अन्य दलों के लिए बहुत जगह कभी नहीं रही है। आपात काल के बाद जनता पार्टी सत्ता में आई थी। लेकिन उसके बाद से कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही सत्ता का खेल चला है। 1993 के चुनाव में बीएसपी ने मध्य प्रदेश में अपना असर दिखाया था। तब वह अविभाजित मध्यप्रदेश में करीब एक दर्जन सीटें जीती थी। 1991 में लोकसभा में उसका खाता रीवा मध्यप्रदेश से ही खुला था। 1996 में अर्जुन सिंह को सतना से बीएसपी ने ही हराया था। लेकिन बाद में उत्तर प्रदेश में सत्ता पाने के बाद भी वह अपना प्रभाव यहां नही दिखा पाई।अभी भी उसके दो विधायक हैं।लेकिन दोनो सत्तारूढ़ दल के साथ ही हैं।

समाजवादी पार्टी का भी ऐसा ही हाल रहा है।उसका एक विधायक पिछले चुनाव में जीता था।लेकिन वह भी सत्ता के साथ ही रहा है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी तथा अन्य दल समय समय पर पानी के बुलबुले की तरह उभरे और खत्म हो गए। दो राज्यों में सरकार बनने के बाद आम आदमी पार्टी यहां पांव जमाने की भरपूर कोशिश कर रही है।लेकिन वह बीजेपी और कांग्रेस के बीच खड़ी हो पाएगी इसमें संदेह है।

मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में ही होना है।तैयारियां दोनों ही तरफ से पूरी हैं।कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस का हौसला बढ़ा है।लेकिन चुनाव सिर्फ हौसले से नही जीते जाते हैं।फिर मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास कोई डीके शिवकुमार भी नही है।कांग्रेस के नेता अभी भी पौरूष के हाथियों सा बर्ताव कर रहे हैं।

उधर समस्या बीजेपी में भी कम नहीं हैं। वह अब तक लगभग "कांग्रेस" बन चुकी है। पार्टी के भीतर भारी असंतोष है। वह सतह पर भी आ रहा है।

जनता भी खुश नही है। हर ओर भारी भ्रष्टाचार का सीधा असर उसी पर पड़ रहा है। लाडली लक्ष्मी योजना के जरिए सवा करोड़ महिलाओं को एक हजार रूपये की सौगात कितना असर डालेगी यह तो वक्त ही बताएगा।लेकिन 1160 रुपए का गैस सिलेंडर और 115 रुपए लीटर पेट्रोल इस सौगात पर भारी पड़ सकते हैं।

भले ही कांग्रेस न उठाए पर समस्या तो जनता ही झेल रही है।स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं,अस्पतालों में डाक्टर और अन्य कर्मचारी नही हैं,मूलभूत सुविधाएं भी पूरी नहीं है। हर स्तर पर काम के लिए घूस देनी पड़ती है।उसके लिए जो काम किए जा रहे हैं उनमें खुला भ्रष्टाचार हो रहा है।नए नए बांध टूट रहे हैं।सड़कें और पुल बह रहे हैं।इन सबका असर तो उसी पर पड़ रहा है।

कर्ज लेकर सरकारी खजाने को लुटाने का खुला खेल बीजेपी की "सरकार" चला रही है। पर वह सबको खुश कर पाएगी, इसमें संदेह है।

चेहरे दोनो ओर पुराने ही हैं।एक चेहरा "पिटा" हुआ है तो दूसरा चेहरा "लुटा" हुआ है। मुफ्तखोरी की "लती" हो चुकी जनता के सामने भी इन "लुटे पिटे" के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जनता सच को समझते हुए ही फैसला करेगी।लेकिन अगर धर्म की अफीम के साथ खैरात की खुराक और बढ़ा दी गई तो फिर कुछ भी हो सकता है!

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