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(आशु सक्सेना): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अपने दूसरे काल के अंतिम साल में प्रवेश कर चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति को अंजाम देना शुरू कर रणनीति को अमलीजामा पहना शुरू कर दिया है। आरएसएस और सत्तारूढ़ भाजपा के चुनावी वादों में "समान नागरिक संहिता" वह आखिरी मुद्दा है, जिसे मोदी सरकार को लागू करना बाकी है। संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने और राम मंदिर बनाने का चुनावी वादा पूरा हो चुका है। यह बात दीगर है कि राम मंदिर निर्माण का रास्ता मोदी सरकार ने नहीं, बल्कि सप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद साफ हुआ है। लेकिन चुनाव से पहले पीएम मोदी मंदिर का उद्घाटन करके हिंदू मतों के ध्रुवीकरण की कोशिश करेंगे।

आपको याद दिला दें कि केंद्रीय विधि आयोग ने 15 जून 2023 को कहा कि उसने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा "समान नागरिक संहिता" (यूसीसी) पर लोगों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के सदस्यों सहित विभिन्न हितधारकों के विचार आमंत्रित कर नये सिरे से परामर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

इससे पहले, 21वें विधि आयोग ने मुद्दे की पड़ताल की थी और समान नागरिक संहिता पर दो मौकों पर सभी हितधारकों के विचार मांगे थे। उसका कार्यकाल अगस्त 2018 में समाप्त हो गया था।

इसके बाद, "परिवार कानून में सुधारों" पर 2018 में एक परामर्श पत्र जारी किया गया था। आयोग ने एक सार्वजनिक नोटिस में कहा, "उक्त परामर्श पत्र को जारी करने की तिथि से तीन वर्षों से अधिक समय बीत जाने के बाद, मुद्दे की प्रासंगिकता एवं महत्व और इस पर विभिन्न अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए 22वें विधि आयोग ने मुद्दे पर नये सिरे से चर्चा करने का फैसला किया है।" उल्लेखनीय है कि 22वें विधि आयोग को हाल में तीन साल का कार्य विस्तार दिया गया है।

समान नागरिक संहिता का मतलब देश के सभी नागरिकों के लिए एक "साझा कानून" से है, जो धर्म पर आधारित न हो। दरअसल संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर बल दिया गया है। जिसके तहत संविधान लागू होने के बाद से यह सरकार का दायित्व है कि देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए हितधारकों के बीच सहमति बनवाए और बिना किसी भेदभाव के उसे कानूनी जामा पहनावाएं। लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आज़ादी के 75 साल बाद भी इस मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन सकी है। दिक्कत यह है कि जहां मुसलमान अपने कानून में परिवर्तन के लिए राजी नहीं हैं, वहीं हिंदू भी अपने कई कानूनों में बदलाव के पक्ष में नहीं है।

समान नागरिक संहिता लागू करना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चुनाव घोषणापत्रों में प्रमुखता से शामिल रहा है। भाजपा इस कानून के जरिए ऐसा संदेश देती है कि वह मुसलिम कानूनों में बदलाव करके हिंदू राष्ट्र बनाने का काम करेगी। यहीं वजह है कि भाजपा की कई राज्य सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कर रही हैं। जबकि भारतीय संविधान के मुताबिक यह कानून लागू करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है।

जानकारी के मुताबिक, केंद्रीय विधि आयोग सितंबर से पहले अपनी रिपोर्ट पेश कर देगा। दिलचस्प पहलू यह है कि सितंबर में जी-20 बैठकों का समापन हो जाएगा। जाहिरातौर पर उसके बाद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जी-20 को लेकर उभरे विवाद भी सामने आने लगेंगे। उस वक्त समान नागरिक संहिता का मुद्दा गरमा कर मोदी सरकार उन विवादों से आम लोगों का ध्यान हटाने में भी कामयाब रहेगी।

पीएम मोदी को 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का भी सामना करना है। इनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव महत्वपूर्ण हैं। इन राज्यों में 2018 के विधानसभा चुनावों में भी पीएम मोदी के नेतृत्व को चुनौती मिली थी। भाजपा को तीनों ही राज्यों में सत्ता गंवानी पड़ी थी। साल के शुरू में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों और दक्षिण के राज्य कर्नाटक में संपन्न विधानसभा चुनावों में भी पीएम मोदी की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज हुई है। पूर्वोत्तर राज्यों में भले ही भाजपा अपने सहयोगियों के साथ सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही है। लेकिन भाजपा को इन राज्यों में नुकसान हुआ है। त्रिपुरा में डबल इंजन की सरकार बमुश्किल बहुमत का आंकड़ा छूने में सफल रही है। इस राज्य में जहां भाजपा के घटक दल का सफाया हो गया, वहीं भाजपा की भी पांच सीट कम हुई। 60 विधानसभा सीट वाले मेघालय में भाजपा ने 59 सीट पर चुनाव लड़ा और मात्र दो सीट जीतने में कामयाब हुई। वहीं नागालेंड़ में जहां घटक दल अपनी सीट बढ़ाने में कामयाब रहा, वहीं भाजपा को कोई नुकसान नहीं हुआ। यद्यपि पीएम मोदी ने तीनों की राज्यों के चुनाव प्रचार में कोई कौर कसर नहीं छोड़ी थी। तीनों ही राज्यों में पीएम मोदी रोड शाॅ करते नज़र आए थे।

हाल ही में कर्नाटक में संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। इस राज्य में पीएम मोदी पिछले एक साल से सक्रिय थे। चुनाव घोषणा के बाद उनकी ताबडतोड़ चुनावी रैलियां और रोड़ शाॅ आम लोगों का मूड़ बदलने में कामयाब नहीं हुआ। लिहाज़ा साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में डबल इंजन की सरकार और विकास के साथ ही भाजपा को सांप्रदायिक माहौल गरमाने का कोई मुद्दा चाहिए। यहीं वजह है कि भाजपा शासित उत्तराखंड़ सरकार ने समान नागरिक संहिता कानून पर राय मशविरा का काम शुरू कर दिया है। यह भाजपा की 2024 चुनाव से पहले इस मुद्दे का गरमाने की रणनीति का हिस्सा है।

दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इस साल होने वाला संसद का शीतकालीन सत्र मोदी सरकार के लिए समान नागरिक संहिता कानून संसद में पेश करने का आखिरी सत्र होगा। यह तय है कि संसद की मौजूद अंकगणित में यह विवादास्पद संविधान संशोधन विधेयक पारित होना संभव नहीं लगता है। लेकिन मोदी सरकार इस विधेयक को संसद में पेश करके इसे चुनावी मुद्दा बनाने में ज़रूर कामयाब हो जाएगी। इसका उसे चुनावी लाभ कितना मिला, यह तो लोकसभा चुनाव नतीज़ों के बाद ही तय होगा।

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