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(सुरेन्द्र सुकुमार) प्रातःवंदन मित्रो ! भाई साहब के अंदर बेचैनी बहुत ज्यादा थी। इसीलिए हमने उनका नाम बेचैनदास चंचल रख दिया था। जैसे कि हम स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं और ट्रेन लेट है.... तो उन्हें चैन नहीं पड़ता था। बार बार कहते ‘सुरेन्द्र जाओ जरा इंक्वायरी पर पूछ कर आओ कि ट्रेन कब तक आ रही है?‘ हम कहते, ‘भाई साहब अभी तो पूछ कर आए हैं।‘ ‘तो क्या हुआ एक बार और पूछ आओ।‘ हम इधर उधर घूम कर आ जाते और बता देते थोड़ी देर बाद फिर कहते जाओ जरा पूछ कर आओ। हम कहते, ‘भाई साहब अभी अभी तो पूछा था।‘ ष्ठीक है मत जाओ मैं ही पूछ कर आता हूँ और ख़ुद चले जाते जब तक ट्रेन नहीं आ जाती तब तक यही क्रम रहता था। ट्रेन में भी जब तक कंडक्टर नहीं आ जाता तब तक बेचैनी अधिकतर कंडक्टर उन्हें जानते ही थे।
एक विशेष बात यह थी शायद आप लोगों को पसंद न आए पर यह सच है कि जो भी महिला भाई साहब के निकट सम्बंध में होती थीं, वो उनका सम्मान क़तई नहीं करती थीं, बल्कि अपमान की सीमा तक पार कर जाती थीं। इसका सही कारण हम आज तक नहीं समझ पाए पर अनुमान लगा कर कह सकते हैं कि वो शायद कुछ ज्यादा ही खुल जाते थे।
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(सुरेन्द्र सुकुमार) प्रातःवंदन मित्रो ! जब एक बार हम अपने गाँव कौड़ियागंज में ही थे, तो भारत सरकार ने उनको पद्मश्री से नवाज़ा हम अपनी बेटी के साथ बधाई देने आए, तो बहुत खुश हुए पर बोले, ये पद्मश्री से क्या फायदा राष्ट्रपति के हस्ताक्षर युक्त एक कागज़ मात्र है? इसे ड्रॉइंग रूम में टाँग लो बस, अरे कुछ धनराशि होती तो कुछ बात भी बनती। भाई साहब का बचपन बेहद अभावों में बीता था, इसलिए वो पैसे से बहुत जुड़े थे। बहरहाल, जब हम घर वापस आए, तो हमारी बेटी पूर्वा ने हमसे कहा कि 'पापा हमने ताऊ जी के ऊपर एक कविता लिखी है।' हमने कहा, "सुनाओ" तो सुनाई... 'नीरज जी हैं ताऊ हमारे, सारे जग से न्यारे न्यारे, पद्मश्री पाकर भी बिल्कुल बच्चे लगते हैं, इसीलिए वो हमको सबसे अच्छे लगते हैं।' भाई साहब बच्चों को बहुत प्यार करते थे।
जब हम अलीगढ़ आए, तो रघुवीर सहाय इंटर कॉलेज के मैनेजर श्री अशोक सक्सेना हमारे पास आए और बोले, ‘कायस्थ होने के नाते कायस्थ समाज आपका अभिनन्दन करना चाहता है। इस अवसर पर एक भव्य कवि सम्मेलन भी करना चाहते हैं। आप लिस्ट बना लीजिए हम उनको बुला लेंगे।‘
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(सुरेन्द्र सुकुमार) श्री गोपालदास नीरज से हमारा पारिवारिक सम्बंध लगभग 45 वर्ष पुराना है, है क्या था। भाई साहब निरहंकारी व्यक्ति थे वो एक तहमद और आधी आस्तीन की जेबदार मार्कीन की बनियान पहने रेलवे के रिजर्वेशन काउंटर पर कभी भी देखे जा सकते थे। यदि भाई साहब अलीगढ़ में होते तो भी इसी भेष भूषा में नज़र आते थे घर के बरामदे में पलँग पर अधलेटे रहते थे। पास में कुछ कुर्सियाँ पड़ी रहती थीं। बैठे.बैठे कुछ न कुछ लिखते पढ़ते रहते थे। कुछ नहीं तो खतों के उत्तर दे रहे होते... हम जब अपने गाँव कौड़ियागंज में रहते थे तब जब भी हम अलीगढ़ आते तो नेहरू युवा केन्द्र में नरेन्द्र तिवारी जी और नीरज जी भाई साहब से उनके घर मिलने अवश्य जाते थे।
नेहरू युवा केन्द्र पर अक्सर क़ाज़ी अब्दुल सत्तार ‘शहरयार‘ और केपी सिंह मिल जाते थे। उन दिनों नेहरू युवा केन्द्र अलीगढ़ के साहित्यकारों के लिए एक साहित्यिक अड्डा होता था। अधिकतर मित्रों से वहाँ मिलना हो जाता था।
एक बार जब नीरज जी की षष्टी पूर्ति मनाई गई यानिकि जिस दिन नीरज जी 60 वर्ष के हुए, तो डॉक्टर रविन्द्र भृमर के घर पर एक भव्य आयोजन रखा गया। नीरज जी भी थे, अलीगढ़ के लगभग सभी साहित्यकार मौज़ूद थे।
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नई दिल्ली: हिंदी की प्रख्यात लेखिका मन्नू भंडारी का सोमवार को हरियाणा में, गुड़गांव के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया है। वह 91 वर्ष की थी। ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसे प्रसिद्ध उपन्यासों की रचनाकार मन्नू भंडारी पिछले कुछ दिनों से बीमार थीं। उनकी बेटी रचना यादव ने मीडिया को बताया, “वह करीब 10 दिन से बीमार थीं। उनका हरियाणा के एक अस्पताल में इलाज चल रहा था, जहां आज दोपहर को उन्होंने अंतिम श्वांस ली।” रचना ने बताया कि मन्नू भंडारी का अंतिम संस्कार मंगलवार को दिल्ली के लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में किया जाएगा
हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका मन्नू भंडारी का जन्म मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में 3 अप्रैल, 1939 को हुआ था। ‘महाभोज’ और ‘आपका बंटी’ जैसी कालजयी रचनाओं ने उनकी पहचान बनाई थी। हालांकि, अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई है कि लेखिका के निधन की वजह क्या रही है। उनकी पहचान पुरुषवादी समाज पर चोट करने वाली लेखिका के तौर पर होती थी। मन्नू भंडारी की निधन की खबर सुनकर सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले लोगों का तांता लग गया है।
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