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गांधीनगर: गुजरात में राज्यसभा की चार सीटों के लिए शुक्रवार (19 जून) को हुए चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के तीनों उम्मीदवार जीत गए, जबकि कांग्रेस के दो में से एक को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के तीनों उम्मीदवार रमिला बारा, नरहरि अमीन और अभय भारद्वाज की जीत हो गई। जबकि कांग्रेस के दो में से एक ही प्रत्याशी शक्तिसिंह गोहिल की जीत हो सकी और पूर्व केंद्रीय मंत्री भरतसिंह सोलंकी को हार का सामना करना पड़ा। जीत के लिए 35 मतों की जरूरत थी।

आधिकारिक सूचना के अनुसार बारा और भारद्वाज को 36-36 और अमीन को 35.98 (प्रथम वरीयता के 32 तथा बाकी द्वितीय वरीयता के) तथा गोहिल को भी 36 मत मिले। सोलंकी को प्रथम वरीयता के मात्र 30 मत ही मिल सके और कुल मिला कर 32 से कम मत मिलने से उनकी हार हो गई। चार सीटों के लिए पांच प्रत्याशी होने से एक की हार निश्चित थी। एक सीट के लिए भाजपा के अमीन का मुकाबला कांग्रेस के सोलंकी से था। शुक्रवार को मतदान के दौरान कांग्रेस को झटका देते हुए इसके चुनावी सहयोगी रहे भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी के दोनों विधायकों ने वोट ही नहीं डाले।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता मनीष दोषी ने कहा कि भाजपा की जोड़तोड़ की राजनीति के कारण कांग्रेस को अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पाया। भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा उपमुख्यमंत्री नीतिन पटेल ने कहा कि कांग्रेस की एक सीट पर हार निश्चित थी, पर इसने जानबूझ कर मतगणना में बिलंब कराया।

सुबह नौ बजे से दोपहर बाद चार बजे तक मतदान के बाद मतगणना पांच बजे से शुरू होनी थी, पर कांग्रेस की ओर से दो भाजपा विधायकों की वोटिंग पर आपत्ति जताते हुए चुनाव आयोग को भेजी गई अर्जी के मद्देनजर वोटों की गिनती में देरी हुई। कांग्रेस का कहना था कि राज्य के मंत्री भूपेन्द्रसिंह चूडासमा, की विधानसभा सदस्यता का मामला अदालत में विचाराधीन होने के चलते उनका मत रद्द होना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि चूडासमा की गत चुनाव में नजदीकी अंतर से जीत को गुजरात हाई कोर्ट ने हाल में अवैध ठहरा दिया था, पर बाद में इस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। कांग्रेस ने इसके अलावा भाजपा के एक अन्य विधायक केसरीसिंह सोलंकी के मतदान के तरीके पर सवाल उठाते हुए इसे भी रद्द करने की मांग की थी। सोलंकी ने अस्वस्थ होने का हवाला देते हुए प्रोक्सी के जरिए मतदान किया था, पर कांग्रेस का कहना था कि वह अस्वस्थ हैं ही नहीं। आयोग ने बाद में इन आपत्तियों को खारिज कर दिया।

चार में से एक सीट पर भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच नजदीकी मुकाबले की संभावना और इसके लिए एक-एक वोट की खींचतान थी। इन चार सीटों में से तीन भाजपा तथा एक कांग्रेस के पास थीं, पर पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सदन के बदले अंकगणित और कांग्रेस की बढ़ी हुई संख्या के चलते शुरुआत में दोनों पार्टियों ने दो-दो प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की थी, पर भाजपा ने नामांकन के अंतिम दिन यानी 13 मार्च की सुबह तीसरे प्रत्याशी के नाम की भी घोषणा कर चुनाव को रोचक बना दिया।

भाजपा ने पहले रमिला बारा और अभय भारद्वाज को अपना प्रत्याशी बनाया था, पर बाद में राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन को अपना तीसरा उम्मीदवार घोषित कर दिया। अमीन पाटीदार समुदाय के हैं और पहले कांग्रेस में थे। कांग्रेस पार्टी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री भरतसिंह सोलंकी और राज्य के मंत्री तथा गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल को उम्मीदवार बनाया था।

यह चुनाव पहले 26 मार्च को होना था पर कोरोना संकट के कारण इसे टाल दिया गया था। सामान्य अंकगणित के लिहाज से भाजपा केवल दो सीटें ही जीत सकती थी, पर अब तीसरी सीट पर भी इसका कब्जा हो गया है। चुनाव की घोषणा के बाद से कांग्रेस के आठ विधायकों ने इस्तीफा दिया था। हाल में तीन विधायकों ने और इससे पहले मार्च में पांच ने इस्तीफा दे दिया था। इससे विधानसभा का और साथ ही चुनाव के मतदाताओं यानी विधायकों का अंकगणित बदल गया।

182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 103 और कांग्रेस के अब 65 विधायक (कुल आठ इस्तीफों के बाद) हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का एक विधायक है, कांग्रेस समर्थित निर्दलीय एक (जिग्नेश मेवाणी) और इसके सहयोगी दल भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी के दो हैं। कुल 172 सदस्यों में से शुक्रवार को 170 ने मतदान किया है। बीटीपी के दो सदस्यों ने मतदान नहीं किया। राकांपा के इकलौते विधायक कांधल जाडेजा ने भी भाजपा के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की है। भाजपा के एक नेता भरत परमार ने बीटीपी के दोनों विधायकों के साथ भी बंद कमरे में बैठक की थी। ऐसा समझा जा रहा था कि दोनों भाजपा का समर्थन करेंगे पर उनके मतदान नहीं करने से भी भाजपा को ही फायदा हुआ है।

इस बीच, भाजपा ने चीन सीमा पर भारतीय सैनिकों की हत्या की घटना के मद्देनजर जीत के मौके पर पटाखे नहीं फोड़ने अथवा अन्य विजय उत्सव नहीं मनाने का निर्णय किया। मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने यह जानकारी दी। गौरतलब है कि यह चुनाव भी खासा रोचक रहा।

लगातार इस्तीफों के बाद कांग्रेस ने अपने बाकी विधायकों को सहेज कर रखने के लिए उन्हें राजस्थान के एक रिसॉर्ट समेत कई अन्य रिसॉर्ट में भी रखा था। पार्टी ने भाजपा पर लालच और दबाव के जरिए इसके विधायकों को इस्तीफा दिलाने का आरोप लगाया था, पर दावा किया था कि पार्टी, सत्तारूढ़ दल के तमाम दांवपेंच के बावजूद अपने दोनों उम्मीदवारों को जिताने में सफल रहेगी।

राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना था कि बदली हुई परिस्थितियों में होने वाले रोमांचक चुनाव में भाजपा का पलड़ा खासा भारी था। राकांपा के इकलौते विधायक के पार्टी व्हीप का उल्लंघन कर भाजपा के पक्ष में वोटिंग और गत चुनाव में कांग्रेस की सहयोगी रही बीटीपी के दोनों विधायकों के मतदान नहीं करने का पूरा फायदा भाजपा को हुआ।

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