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चंडीगढ़: महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार पंजाब की सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। राज्य कैबिनेट ने बुधवार को पंजाब सिविल सर्विसेज (रिजर्वेशन ऑफ पोस्ट्स फॉर वीमन) रूल्स 2020 को मंजूरी दी है, जिससे सरकारी नौकरियों के साथ बोर्ड्स और कॉरपोरेशन के ए, बी, सी और डी ग्रुप की पोस्ट महिलाओं को आरक्षण दिया जा सके।

समयबद्ध तरीके से कोर्ट मामलों/कानूनी केसों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने के लिए, पंजाब कैबिनेट ने पंजाब सिविल सचिवालय (राज्य सेवा वर्ग- III) नियम, 1976 में संशोधन करके क्लर्क (कानूनी) कैडर के गठन के लिए सफलतापूर्वक भर्ती की भी मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही, केन्द्र के कृषि कानूनों को काउंटर करने के लिए पंजाब सरकार 19 अक्टूबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर एक कानून लाने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की अध्यक्षता में बुलाई गई राज्य कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया।

सरकार की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, यह बैठक एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की गई।

मुख्यमंत्री ने इससे पहले यह ऐलान किया था कि उनकी सरकार संघीय विरोधी कृषि कानूनों के खिलाफ विधायी, कानूनी और अन्य रास्तों के जरिए लड़ेगी। कुछ दिनों पहले, सीएम ने कहा था कि वह केंद्रीय कानूनों के "खतरनाक प्रभाव" को नकारने के लिए राज्य के कानूनों में आवश्यक संशोधन लाने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाएंगे, जिसे किसानों के साथ-साथ राज्य की कृषि और अर्थव्यवस्था को "बर्बाद" करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

बयान में कहा गया कि कैबिनेट के फैसले के साथ पंजाब के राज्यपाल को भारतीय संविधान के आर्टिकल 174 के क्लॉज (1) के मुताबिक 15वीं पंजाब विधानसभा के 13वें (विशेष) सत्र को बुलाने की मंजूरी दे दी है। 28 अगस्त को पिछले विधानसभा सत्र के दौरान तीन कृषि कानूनों के विरोध में बहुमत से एक संकल्पना प्रस्ताव पास किया गया था, जिसने बाद में कानून का रूप लिया।

विपक्षी दलों के साथ प्रदर्शनकारी किसान कांग्रेस का अगुवाई वाली राज्य सरकार से यह मांग करते आ रहे हैं कि वे नए कृषि कानूनों के विरोध में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाएं। किसानों ने पंजाब सरकार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए अल्टीमेटम दिया था। वे इस बात की मांग कर रहे हैं कि हाल में संसद की तरफ से पारित तीन कृषि कानूनों को निरस्त किया जाए। किसानों ने इस बात को लेकर शंका जाहिर की थी कि नए कानून से न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था खत्म हो जाएगा और बड़े कॉरपोरेटर की मनमर्जी पर उसे छोड़ दिया जाएगा।

 

 

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