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लंदन: ब्रिटेन की कंजर्वेटिव पार्टी ने शनिवार को केमी बेडेनोच अपना नया नेता चुन लिया है। बेडेनोच ने अपने प्रतिद्वंद्वी रॉबर्ट जेनेरिक को करीब एक लाख पार्टी सदस्यों के वोट से हराया। पार्टी प्रमुख के साथ ही बेडेनोच अब 'हाउस ऑफ कॉमन्स' में नेता प्रतिपक्ष भी होंगी, जो (पूर्व प्रधानमंत्री) ऋषि सुनक की जगह लेंगी। कजंर्वेटिक पार्टी को इस साल हुए आम चुनाव में लेबर पार्टी से हार का सामना करना पड़ा था। 14 साल बाद लेबर पार्टी सत्ता में आई है।

पार्टी की छवि सुधारना बेडेनोच के सामने सबसे बड़ी चुनौती

सुनक के नेतृत्व में कंजर्वेटिव पार्टी को इस साल हुए आम चुनाव में बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। कंजर्वेटिव पार्टी ने पहली बार 1832 के बाद चुनाव में 200 से अधिक सीटें गवां दीं, जिससे उनके सदस्यों की कुल संख्या 121 रह गई। वह पहली अश्वेत महिला नेता हैं, जिन्हें कंजर्वेटिव पार्टी का प्रमुख बनाया गया है। नए नेता के रूप में बेडेनोच के सामने कंजर्वेटिव पार्टी की छवि को सुधारना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्हें लेबर पार्टी के पीएम स्टार्मर की नीतियों पर भी मजबूत प्रतिक्रिया देनी होगी, खासकर अर्थव्यवस्था और आव्रजन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर।

उनके सामने 2029 के आम चुनाव में कंजर्वेटिव पार्टी को सत्ता में लाने की भी चुनौती होगी।

ब्रिटेन की महिला एवं समानता मंत्री रह चुकीं बेडेनोच

ब्रेग्जिट की मजबूत समर्थक रहीं बेडेनोच (44 वर्षीय) आव्रजन और ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के मुद्दे पर सख्त रुख के लिए लिए जानी जाती हैं। वह देश की महिला एवं समानता मंत्री रह चुकी हैं। पार्टी के इस आंतरिक चुनाव की प्रक्रिया महीनों तक चली। शुरुआत में इसमें छह उम्मीदवार थे। बाद में यह संख्या घटकर दो रह गई थी। फिर बेडेनोच को पार्टी नेता के रूप में चुना गया। रॉबर्ट जेनेरिक दूसरे नंबर पर रहे। बेडेनोच इससे पहले भी 2022 में पार्टी प्रमुख की दौड़ में चौथे में चौथे स्थान पर रहीं थीं। तब बेडेनोच ने कंजर्वेटिव पार्टी में सुधार करने का वादा किया था।

बेडेनोच की जीत के भारत के लिए क्या मायने हैं

बेडेनोच ब्रिटेन के अगले आम चुनावों (2029) में प्रधानमंत्री की दौड़ में शामिल हो सकती हैं। उनकी जीत से संकेत मिलता है कि ब्रिटेन की सबसे पुरानी सियासी पार्टी और अधिक दक्षिणपंथ की ओर जा रही है। इसका मतलब है कि कंजर्वेटिव पार्टी आव्रजन, जलवायु परिवर्तन और संस्कृति से जुड़े मुद्दों पर कड़ा रुख अपना सकती है। बेडेनोच ने हाल ही में भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को लेकर टिप्पणी की थी।

उन्होंने बताया था कि उन्होंने सत्ता में रहने के दौरान अतिरिक्त वीजा की मांग के कारण भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते को रोक दिया था। नाइजीरियाई मूल की ब्रिटिश नेता ने बताया था कि सुनक के नेतृत्व वाली सरकार एफटीए को अंतिम रूप इसलिए नहीं दे पाई थी, क्योंकि भारत ने प्रवास के संबंध में अधिक रियायत की मांग की थी।

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