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भोपाल: मध्यप्रदेश में लगभग डेढ़ साल तक सत्ता चलाने में मदद करती रही बहुजन समाज पार्टी भी अब कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी करने लगी है। बसपा ने अगले कुछ दिनों में होने वाले 24 विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करने का एलान कर दिया है। राज्य में पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत और फिर उनके 22 समर्थक विधायकों द्वारा विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिए जाने के कारण कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए 22 विधायकों के इस्तीफे और दो विधायकों के निधन के कारण 24 खाली सीटों के लिए उपचुनाव होना है।

यह विधानसभा उपचुनाव राज्य की सियासत के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि राज्य की सत्ता पर काबिज पार्टी के पास बहुमत के लिए 116 विधायकों का होना जरूरी है और इस समय भाजपा के पास 107 ही विधायक हैं। इसलिए इस उपचुनाव में भाजपा के लिए कम से कम 9 सीटें जीतनी जरूरी है।

कांग्रेस अब तक यही मानकर चल रही थी कि इन सभी 24 स्थानों पर उसका भाजपा से सीधा मुकाबला होगा और दलबदल करने वाले उम्मीदवारों को चुनाव के दौरान जनता को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। इस स्थिति का लाभ कांग्रेस के उम्मीदवारों को मिल सकेगा। बसपा ने कांग्रेस को डेढ़ साल तक सत्ता चलाने में मदद भी की थी।

इसी बीच बसपा प्रमुख मायावती ने सभी 24 स्थानों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला कर कांग्रेस की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। बसपा के चुनाव मैदान में उतरने से कांग्रेस की मुश्किल बढ़ने की वजह है। दरअसल, जिन 24 स्थानों पर चुनाव होना है, उनमें से ज्यादातर विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर-चंबल संभाग के हैं और इस इलाके में बसपा के प्रभाव को कोई नकार नहीं सकता। यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश की सीमा पर भी है। बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।

कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता अजय यादव हालांकि बसपा के चुनाव लड़ने से उनकी पार्टी को नुकसान की आशंका को नकारते हैं। उनका कहना है कि बसपा का अब वैसा प्रभाव नहीं रहा, जैसा पहले हुआ करता था। वहीं मतदाता भी इतने समझदार हो गए हैं कि जिसके जीतने की संभावना नहीं देखते, उसको वोट नहीं देते हैं। यानी अपना वोट बेकार करना नहीं चाहते। उन्होंने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बसपा ने नहीं, कांग्रेस ने अधिकांश सीटें जीती थी। इसलिए बसपा कोई असर डालेगी, इसकी संभावना नहीं है।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि ग्वालियर-चंबल के अलावा जिन क्षेत्रों में उपचुनाव होना है, उन इलाकों में सिंधिया का प्रभाव है और भाजपा का अपना वोट बैंक भी है। बसपा के चुनाव न लड़ने की स्थिति में उसके वोट बैंक का समर्थन मिलने की कांग्रेस को उम्मीद थी, लेकिन अब बसपा के उम्मीदवार भी मैदान में होंगे, इसलिए कांग्रेस की चिंताएं बढ़ना लाजमी है।

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