मुंबई: पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने मोदी सरकार के कामकाज के तौर तरीकों पर चुटकी लेते हुए कहा कि इस सरकार के लिए भारत में सभ्यता और कामकाज की शुरूआत 26 मई 2014 के बाद ही हुई। उन्हें लगता है कि उनके सत्ता में आने से पहले देश में कोई सभ्यता ही नहीं थी। चिदंबरम ने आज यहां टाटा समूह द्वारा आयोजित मुंबई साहित्य महोत्सव में बैंकिंग विषय पर एक सत्र में कहा, ‘जहां तक मौजूदा सरकार की बात है, उनके लिये भारत और भारत में सभ्यता की शुरुआत केवल 26 मई 2014 को हुई।’ पूर्व वित्त मंत्री वास्तव में पिछली संप्रग सरकार के समय में खोले गये 13 करोड़ ‘नो-फ्रिल’ (शून्य शेष) वाले खातों को मौजूदा सरकार द्वारा गणना में नहीं लिये जाने का जिक्र कर रहे थे। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जनधन योजना के तहत करोड़ों बैंक खाते खोले गये। चिदंबरम का कहना है कि मोदी सरकार इसमें संप्रग सरकार के कार्यकाल में खोले गये खातों को नजरंदाज कर रही है। उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार ने 2004 से 2014 की अवधि में वित्तीय समावेश कार्यक्रम के तहत 13 करोड़ ‘नो-फ्रिल’ खाते खोले लेकिन अब उन्हें भुला दिया गया। चिदंबरम ने कहा ‘ये 13 करोड़ खाते रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन के दिशानिर्देशों के तहत 2004 से 2014 के बीच खोले गये, लेकिन जहां तक मौजूदा सरकार की बात है, ये खाते कहीं नहीं हैं, उन्हें पूरी तरह भुला दिया गया है।’ उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री जनधन योजना’ पिछली संप्रग सरकार के ‘नो-फ्रिल’ खातों का ही नया रूप है।
कांग्रेस नेता ने हालांकि वित्तीय समावेशी पहल के लिये सरकार के प्रयासों की सराहना की है लेकिन कहा कि केवल खाते खोलने मात्र से ही किसी का व्यवहार नहीं बदला जा सकता है। चिदंबरम ने कहा, ‘लोगों के पास खाते में जमा कराने के लिये पैसा होना चाहिये, खाते से निकासी के लिये उनकी जरूरत होनी चाहिये अन्यथा खाता निष्क्रिय पड़ा रहेगा। ऐसे में हमारे बैंकरों की जुगाड़ सोच ने किस तरह काम किया? सरकार ने जब निष्क्रिय खातों को लेकर उनकी खिंचाई की तो उन्होंने अपनी जेब से इन खातों में एक रुपया डाल दिया।’ चिदंबरम ने कहा कि सरकार को जनधन खातों की गिनती करते हुये पुराने नो-फ्रिल खातों को भी इसमें जोड़ना चाहिये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत जनधन खातों की शुरुआत की थी। इस कार्यक्रम के तहत 25.51 करोड़ बैंक खाते खोले गये। इससे पहले चिदंबरम ने 500, 1,000 रुपये के नोटों को चलन से वापस लेने के लंबे समय तक असर रहने की बात की थी। उन्होंने कहा कि लगता है कि यह निर्णय बिना सोच विचार के किया गया है। उन्होंने संदेह जताया कि लगता है कि सरकार ने इस बारे में मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम से भी विचार विमर्श नहीं किया। चिदंबरम ने कहा, ‘आप अभी शुरुआती असर देख रहे हैं। बाजार में प्रचलन में रही 86 प्रतिशत मुद्रा को एक झटके में वापस ले लिया गया। इस पहले झटके का असर कई सप्ताह तक बना रहेगा। इसके बाद इसका अगला असर देखने को मिलेगा।’