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मुंबई: कोविड-19 की वजह से खाने-पीने की चीजों और मैन्युफैक्चर प्रॉडक्ट्स की सप्लाई बाधित होने की वजह से आगामी महीनों में महंगाई और बढ़ेगी। रिजर्व बैंक की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है। रिजर्व बैंक ने कहा कि 2019-20 के अंतिम महीनों में मुद्रास्फीति बढ़ी है। खाद्य मुद्रास्फीति के लिए लघु अवधि का परिदृश्य अनिश्चित हो गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ''खाद्य और विनिर्मित उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने की वजह से क्षेत्र आधार पर कीमतें दबाव में रह सकती हैं। इससे मुख्य मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम है। वित्तीय बाजारों में उतार-चढ़ाव का भी मुद्रास्फीति पर असर पड़ेगा। 

रिजर्व बैंक ने कहा कि इन सब कारणों से परिवारों की मंहगाई को लेकर उम्मीद प्रभावित हो सकती है। खाने-पीने के सामानों और ईंधन कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर परिवार संवेनदनशील होते हैं। ऐसे में मौद्रिक नीति में कीमतों में उतार-चढ़ाव पर लगातार नजर रखनी होगी। 

 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 6.93 प्रतिशत पर पहुंच गई। मुख्य रूप से सब्जियों, दालों, मांस और मछली के दाम बढ़ने की वजह से मुद्रास्फीति बढ़ी है। इसी महीने रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा था कि दूसरी तिमाही में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़ेगी। हालांकि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में यह नीचे आएगी। 

रिजर्व बैंक ने कहा कि खाद्य वस्तुओं के समूह में विभिन्न उत्पादों की कीमतों में अलग-अलग समय में तेजी आती है। प्याज, अदरक, बैंगन, फूलगोभी, भिंडी और हरी मटर की कीमतों में सीजन के आधार पर व्यवहार में बदलाव हुआ है। दिलचस्प तथ्य यह है कि सबसे उतार-चढ़ाव वाला उत्पाद होने के बावजूद प्याज में सीजन के हिसाब से बदलाव उल्लेखनीय रूप से घटा है। इससे कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं में सुधार का संकेत मिलता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में कोविड-19 के प्रसार से सभी जिंसों की कीमतों में गिरावट आई। चीन में फरवरी, 2020 में उद्योग बंद होने और बाद में यूरोप ओर अमेरिका में यही स्थिति बनने की वजह से धातुओं की मांग घटी, जिससे इनकी कीमतें नरम हुईं। 

 

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