जालंधर: इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शनिवार को कहा कि भारत डिजिटल क्रांति में पीछे नहीं रहना चाहता और इस क्षेत्र में दुनिया के नेतृत्व के लिए तैयार है। प्रसाद ने 3 जनवरी से चल रहे विज्ञान कांग्रेस के दौरान विज्ञान संचारक सम्मेलन के उद्घाटन के मौके पर कहा कि भारत पहली औद्योगिक क्रांति में इसलिए पीछे रह गया क्योंकि उस समय हम अंग्रेजों के अधीन थे। आजादी के बाद 1970 के दशक में लाल फीताशाही की नीति के कारण हम पीछे रह गए, लेकिन अब भारत डिजिटल क्रांति में पीछे नहीं रहना चाहता। वह वैश्विक स्तर पर डिजिटल क्रांति का नेतृत्व करना चाहता है।
रविशंकर ने छात्रों से पढ़ाई के बाद नौकरी करने की बजाय अपना स्टार्टअप शुरू करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मैं आपसे अपील करता हूं कि दिल में अरमान रखो कि हमें भी पढ़ाई के बाद स्टार्टअप शुरू करना है।
डाटा सुरक्षा विधेयक
डिजिटल इंडिया की दिशा में सरकार के कदमों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार जल्द ही संसद में डाटा सुरक्षा विधेयक लाने वाली है। भारतीयों के डाटा के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। लोगों की निजता का सम्मान जरूरी है। बशर्ते इसका इस्तेमाल आतंकवादी और भ्रष्ट लोग अपने बचाव के लिए न करें।
उन्होंने आधार को पूरी तरह सुरक्षित बताते हुए कहा कि 123 करोड़ आधार कार्ड, 121 करोड़ मोबाइल फोन और गरीबों के लिए 33 करोड़ नए बैंक खातों के माध्यम से सरकार ने सब्सिडी के 90 हजार करोड़ रुपये बचाए हैं। ई-मार्केट की मदद से सरकारी खरीद में 37 करोड़ रुपये की बचत हुई है। ई-हॉस्पिटल पर 321 अस्पतालों को जोड़ा गया है और चार करोड़ लोगों ने ऑनलाइन अपॉइंटमेंट लिए हैं। ई-नाम के जरिये एक करोड़ 27 लाख किसान मंडियों से सीधे जुड़ गए हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 तक देश में 5जी मोबइल सेवा की शुरुआत हो जाएगी।
सीसल से बनाया प्राकृतिक रेशा, ग्लास फाइबर से निजात
देश के वैज्ञानिकों ने सीसल से प्राकृतिक रेशा तैयार करने की तकनीक विकसित की है, जिससे ग्लास फाइबर से निजात मिलेगी और आदिवासियों के लिए आजीविका के साधन उपलब्ध होंगे। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अंतर्गत काम करने वाले एडवांस मटेरियल एंड प्रोसेस रिसर्च इंस्टीट्यूट ‘एम्प्री’ ने यह रेशा तैयार किया है।
एम्प्री के वैज्ञानिक डॉ. एडवर्ड पीटर ने बताया कि इस रेशे से कपड़े, घरों के लिए सजावट के समान और खिलौने आदि बनाए जा सकते हैं। इन पर आसानी से रंग चढ़ाएजा सकते हैं। ये रेशे जूट की तुलना में ज्यादा मजबूत हैं। इनका इस्तेमाल कम्पोजिट मटेरियल को मजबूती प्रदान करने के लिए भी किया जा सकता है। ये प्राकृतिक रूप से विघटित हो जाते हैं और इसलिए ग्लास फाइबर की तुलना में पर्यावरण के लिए बेहतर हैं।
एम्प्री ने इन रेशों और उनसे बने कुछ उत्पादों को भारतीय विज्ञान कांग्रेस में प्रदर्शनी के लिए भी रखा है। ये रेशे लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। वहीं एम्प्री ने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में पातालकोट स्थित चार गांवों को गोद लिया है और वहां के भारिया जनजाति को इसके जरिये आजीविका के साधन उपलब्ध करा रहे हैं।