नई दिल्ली: देश के अगले बजट को पेश करने की तैयारियों में जुटी केंद्र की मोदी सरकार के लिए सांख्यिकी संगठन की तरफ से चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) अनुमान में कटौती बड़ा झटका है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने मौजूदा वित्त वर्ष के लिए जीडीपी अनुमान को घटाकर 6.5 फीसदी कर दिया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में देश की जीडीपी दर 7.1 फीसदी थी।
इससे पहले देश की जीडीपी 2013-14 में 6.4 फीसदी रही थी इस लिहाज से देखा जाए तो यह पिछले चार सालों के दौरान सबसे कमजोर ग्रोथ रेट होगी। मौजूदा आंकड़े किस तरह से आने वाले दिनों में सरकार के लिए चुनौती बनने जा रहे हैं, उसे इन दो अहम बिंदुओं के जरिए समझा जा सकता है. कमजोर जीडीपी अनुमान के आंकड़े आने के बाद अब अगले बजट में सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती प्रोत्साहन उपायों को शामिल करने की होगी, ताकि ग्रोथ रेट को वापस पटरी पर लाया जा सके।
गौरतलब है कि कृषि, माइनिंग और कंस्ट्रक्शन के खराब प्रदर्शन के अलावा मोदी सरकार के दो बड़े सुधारों, नोटबंदी और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी से उतरती नजर आ रही है।
सीएसओ के अनुमान ने अब आधिकारिक तौर पर इस पर मुहर लगा दी है। लेकिन जीडीपी को पटरी पर लाने के लिए सरकारी खर्च को बढ़ाना सरकार के लिए बेहद मुश्किल भरा होगा, क्योंकि प्रोत्साहन उपायों की घोषणा का मतलब सरकारी खर्च में इजाफा होगा और मौजूदा राजकोषीय घाटे के आंकड़े सरकार को ऐसा करने की इजाजत नहीं देते हैं।
2017-18 के पहले आठ महीनों में ही राजकोषीय घाटा देश के सालाना बजटीय लक्ष्य का 112 फीसदी हो चुका है, जो कि 6.12 लाख करोड़ रुपये है। जबकि पूरे साल का लक्ष्य 5.46 लाख करोड़ रुपये रखा गया था।
आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-नवंबर की अवधि में कुल सरकारी खर्च 14.78 लाख करोड़ रुपये रहा है, जो कि समूचे वित्त वर्ष के अनुमान का 68.9 फीसदी है। वित्त वर्ष 2017-18 में राजकोषीय घाटा का 5.46 लाख करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 5.34 लाख करोड़ रुपये था।
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल राजस्व और सरकारी व्यय का अंतर होता है। सरकार ने 2017-18 के लिए 3.2 फीसदी राजकोषीय घाटे का टारगेट रखा है और विशेषज्ञों की माने तो सरकारी खर्च बढ़ाए जाने की स्थिति में यह 3.5 फीसदी के आंकड़े को छू सकता है। अगर ऐसा होता है तो सरकार को अगले वित्त वर्ष में ज्यादा कर्ज लेना पड़ेगा, जिसका असर अर्थव्यवस्था की रेटिंग पर पड़ेगा। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार के लिए अगला बजट राजकोषीय अनुशासन और जीडीपी को वापस पटरी पर लाए जाने के बीच की असली चुनौती होगी। हालांकि अगले आम चुनाव और उससे पहले राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने की वजह से सरकार सुधारों का रास्ता छोड़ सकती है।