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मुजफ्फराबाद: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में चुनावी धांधली को लेकर स्थानीय लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा है। नीलम घाटी में शुक्रवार को लोगों में पाकिस्तान सरकार के खिलाफ भारी गुस्सा दिखा। लोगों ने पाकिस्तानी झंडे जलाए और पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पार्टी के नेताओं के पोस्टर पर कालिख पोत दी। दो दिन पहले भी पीओके में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुआ था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, शरीफ सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों की पुलिस के साथ झड़पे भी हुई। प्रदर्शनकारियों ने पीओके असेंबली हॉल और अन्य सरकारी इमरातों के पास जमकर प्रदर्शन किया। मुजफ्फराबाद, कोटली, चिनारी और मीरपुर में भी लोगों ने प्रदर्शन किया। लोगों के भारी विरोध के चलते प्रशासन ने मीडिया को पूरी तरह से बैन कर दिया है। 21 जुलाई को पीओके में हुए चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम-लीग ने 41 में से 32 सीटें हासिल की थीं। लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने शरीफ की पार्टी को जीताने के लिए चुनाव में धांधली की थी। इसकी वजह से ही पाकिस्तान मुस्लिम लीग को सबसे ज्यादा सीट मिलीं। मुजफ्फराबाद से नीलम घाटी तक के लोगों का कहना है कि उन्हें वोट नहीं डालने दिया गया। लोगों का कहना है कि पीओके में चुनावी नतीजा हमेशा फिक्स होता है। पाकिस्तान की जो सत्ताधारी पार्टी होती है उसे ही जीत मिलती है।

इस मामले उम्मीद न के बराबर होती है कि कोई तीसरी पार्टी को जीत मिले। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव में धांधली के खिलाफ आवाज उठाने वाले 14 लोगों की हत्या कर दी गई है। चुनाव के बाद कई लाशें भी बरामद की गई जिसमें 21 जुलाई को मीरपुर में 3 शव और 25 जुलाई को मुजफ्फराबाद से 2 शव मिले हैं। पुलिस ने बताया कि लाशों पर गोलियों के निशान मिले हैं। और जो गोलियां मिली हैं वो पाकिस्तान सेना की है। लोगों ने आरोप लगाया है कि चुनाव की हेराफेरी पर जिसने भी आवाज उठाना चाहा उनकी हत्या कर दी गई। भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में मानवाधिकारों के उल्लंघन का मसला उठाते हुए कहा है कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को इस मामले को देखना चाहिए। गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने कहा बलूचिस्तान और पूरे पीओके में मानवाधिकारों का उल्लंघन कोई नई बात नहीं है। उन्होंने कहा, पीओके में लोग कथित फर्जी चुनाव का विरोध करने के लिए सड़कों पर हैं। उनका दमन करने का प्रयास हो रहा है। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने भी इस मामले को उठाया है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दखल देना चाहिए।

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