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काठमांडू: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अविश्‍वास प्रस्‍ताव का सामना करने से पहले ही त्‍यागपत्र दे दिया है। वैसे भी उनकी अल्पमत में आई नौ महीने पुरानी सरकार का गिरना लगभग तय माना जा रहा था क्‍योंकि उनके खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का सत्तारूढ़ गठबंधन के दो अहम घटकों ने समर्थन करने का फैसला किया। संसद में उन्नीस दल पहले ही नेपाली कांग्रेस और सीपीएन (माओवाद सेंटर) के सामने पुष्टि कर चुके थे कि वे अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट देंगे। खबरों के अनुसार इसी बीच मंत्रिमंडल की एक बैठक ने राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से ओली के इस्तीफा देने के बाद नयी सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 305 के अनुसार मुश्किलें दूर करने के लिए अधिकारों का इस्तेमाल करने की सिफारिश की थी। इस सिफारिश ने नई सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। इस निर्देश पर संसद की मुहर लगनी चाहिए। नेपाल कांग्रेस और माओवादी ने ओली पर अपनी पिछली कटिबद्धताओं का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। वे मांग करते आ रहे थे कि ओली नई सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए इस्तीफा दें। ओली पिछले हफ्ते माओवादी द्वारा गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद से अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे थे।

वह पिछले अक्‍टूबर में दस साल में नेपाल की आठवीं सरकार की अगुवाई करते हुए प्रधानमंत्री बने थे।

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