नई दिल्ली: पश्चिम एशिया के गाजा में युद्ध और 47 दिनों के हिंसक संघर्ष में अब तक 15 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अभूतपूर्व मानवीय संकट के बीच संघर्षविराम की चौतरफा अपील हुई। इसके बावजूद इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने साफ कर दिया कि युद्धविराम के बाद भी इजरायल डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) की कार्रवाई बंद नहीं होगी। हालांकि, बीते सात अक्तूबर से शुरू हुआ रक्तपात 24 नवंबर को कतर की प्रभावी मध्यस्थता और हस्तक्षेप के बाद बीते छह दिनों से थमा हुआ है। 29 नवंबर (भारतीय समयानुसार) को संघर्ष विराम विस्तार की समयसीमा खत्म हो रही है। दरअसल, युद्धविराम के पीछे सबसे अहम भूमिका कतर में हुई एक गुप्त बैठक की है। इसमें इजरायल, अमेरिका और कतर के बड़े अधिकारी वार्ता की मेज पर आए।
इजरायल और हमास के युद्ध की शुरुआत के 53 दिन बीतने के बाद यह जानना रोचक है कि युद्धविराम के प्रमुख कारक क्या हैं? किन देशों के प्रभावी दखल के कारण इस्राइल और हमास के बीच युद्धविराम हुआ? यह जानना भी बेहद दिलचस्प है।
दरअसल, कतर के अलावा कई और देश भी फलस्तीन को अलग मान्यता देने की वकालत कर रहे हैं। टकराव खत्म कर शांति बहाली की अपील के बीच इजरायल इसलिए भी कठघरे में है क्योंकि उस पर बड़े भूभांग पर कब्जा करने के आरोप हैं। इजरायली आक्रामकता और फलस्तीन का विवाद काफी पेचीदा है। अत्याधुनिक हथियारों से लैस हमास गाजा पर नियंत्रण के साथ-साथ फलस्तीन का प्रतिनिधि होने का दावा भी करता है। हालांकि, फलस्तीन का प्रशासन (पीए) हमास से जुड़ाव को सिरे से खारिज करता है।
खबरों के अनुसार, 24 नवंबर से संघर्ष विराम समझौता प्रभावी हुआ। इसके तहत हमास ने 50 से अधिक इजरायली और विदेशी नागरिकों को बंधन से आजाद किया। बता दें कि हमास पर लगभग 250 लोगों को बंधक बनाने के आरोप हैं। हमास ने संघर्षविराम की शर्तों के तहत जब आम लोगों को कब्जे से मुक्त किया तो बदले में इजरायल को भी जेलों में कैद 100 से ज्यादा फलस्तीनी कैदियों को रिहा करना पड़ा। बाद में 27 नवंबर की देर शाम संघर्ष विराम दो दिनों के लिए बढ़ाने जाने की खबर सामने आई। इसके अनुसार हमास 20 और इजराइलियों को बंधन से आजाद करेगा। बदले में इस्राइल भी कैदियों को रिहा करेगा। युद्धविराम में कतर की भूमिका क्या रही? मिस्र और अमेरिका ने भी चार दिवसीय संघर्ष विराम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। भारत ने भी शांति बहाली और 'टू-स्टेट' समझौते का पक्ष लिया है।
छह दिनों के युद्ध विराम के बाद यह जानना रोचक है कि हिंसक संघर्ष में शामिल दोनों पक्षों की क्या राय है? राजनयिकों का मानना है कि इजरायल के किसी भी बड़े फैसले में युद्ध कैबिनेट, प्रधानमंत्री कार्यालय और खुफिया एजेंसी- मोसाद की भूमिका होती है। सामरिक मामलों के जानकारों का मानना है कि तीनों में से मोसाद के युद्धविराम बढ़ाने के फैसले के समर्थन करने की सबसे अधिक संभावना है। युद्ध विराम पर हमास की भूमिका भी रोचक है। खबरों के अनुसार हमास भी इसके समर्थन में दिखता है। एक बयान के अनुसार हमास ने कहा, मानवीय युद्धविराम समझौते की चार दिन की अवधि बीतने के बाद भी हम सीजफायर का विस्तार चाहते हैं। हमास अधिक से अधिक फलस्तीनी कैदियों की रिहाई चाहता है।
युद्धविराम से इतर भी बंधकों की रिहाई
खबरों के अनुसार चार दिवसीय युद्धविराम समझौते से इतर भी हमास ने विशेष हालात में एक इजरायली-रूसी शख्स रोनी क्रिवॉय को भी बंधन मुक्त किया था। इसके अलावा थाईलैंड के 17 नागरिकों और फिलीपींस के एक नागरिक सहित 18 विदेशी नागरिकों को भी गाजा से मुक्त किया गया। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार, अलग-अलग बातचीत के आधार पर इन्हें छोड़ा गया है। इन लोगों को इस्राइल-हमास युद्धविराम समझौते के तहत नहीं छोड़ा गया है।
राजनयिकों का मानना है कि इस्राइल के किसी भी बड़े फैसले में युद्ध कैबिनेट, प्रधानमंत्री कार्यालय और खुफिया एजेंसी- मोसाद की भूमिका होती है। सामरिक मामलों के जानकारों का मानना है कि तीनों में से मोसाद के युद्धविराम बढ़ाने के फैसले के समर्थन करने की सबसे अधिक संभावना है। युद्ध विराम पर हमास की भूमिका भी रोचक है। खबरों के अनुसार हमास भी इसके समर्थन में दिखता है। एक बयान के अनुसार हमास ने कहा, मानवीय युद्धविराम समझौते की चार दिन की अवधि बीतने के बाद भी हम सीजफायर का विस्तार चाहते हैं। हमास अधिक से अधिक फलस्तीनी कैदियों की रिहाई चाहता है।
तीन लोगों की अहम भूमिका
खबरों के अनुसार, हमास के कब्जे में अमेरिका समेत कई देशों के नागरिक हैं, लेकिन सबसे अधिक संख्या अमेरिकी नागरिकों की है। हमास ने रणनीतिक बढ़त पाने के इरादे से अभी तक अमेरिकी बंधकों को रिहा नहीं किया है। कतर में जिस गुप्त बैठक की बात सामने आ रही है इसमें अमेरिकी खुफिया एजेंसी- सीआईए के प्रमुख- विलियम जे बर्न्स, इजरायल की खुफिया एजेंसी- मोसाद के चीफ- डेविड बार्निया और कतर के प्रधानमंत्री सह विदेश मंत्री- मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन जासिम अल थानी मौजूद रहे। अमेरिका ने विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को थोड़ा पीछे किया और सीआईए प्रमुख को चुनौतीपूर्ण काम सौंपा। इरादा हमास के कब्जे से अमेरिकी नागरिकों को आजाद कराना है। छह दिनों के युद्धविराम के बाद इस कवायद को कामयाब भी माना जा रहा है।
यूएन में युद्धविराम पर पहली वोटिंग में कौन रहा खिलाफ
इजरायल और फलस्तीन के पेचीदा टकराव के बीच समझना अहम है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भी दो फाड़ है। सात अक्तूबर को हमास के हमलों के बाद विभाजन की खाई और चौड़ी हो चुकी है। मोटे तौर पर पश्चिमी देश इस्राइल के साथ, जबकि अरब देश हमास के समर्थन में दिख रहे हैं। युद्ध की शुरुआत के बाद इजरायल ने कई देशों से अपने राजदूत वापस बुला लिए। इस्लामिक देशों में अच्छी दखल रखने वाले देश ईरान ने इजरायल के साथ व्यापार खत्म करने की अपील की है। ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश इजरायल के साथ हैं। आंकड़ों की नजर से देखने पर तस्वीर और साफ होती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में युद्धविराम के प्रस्ताव पर अमेरिका सहित 14 देश सहमत नहीं हुए। भारत समेत 45 देशों ने प्रस्ताव पर वोट नहीं किए।
75 साल पहले इस्राइल को मान्यता देने वाले पहले देशों में अमेरिका प्रमुख था। हमास के बाद जिन राष्ट्राध्यक्षों ने अमेरिका का दौरा किया, उनमें राष्ट्रपति जो बाइडन का नाम अग्रणी है। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की भूमिका भी उल्लेखनीय है, क्योंकि उन्होंने लगातार कई देशों का दौरा कर युद्ध की विभीषिका को कम करने की कवायद की। इजरायल और हमास के हिंसक संघर्ष के बीच अमेरिका के अलावा फ्रांस की भूमिका भी अहम है। फ्रांस में बड़ी आबादी यहूदी और मुस्लिम समुदाय की है। फ्रांस में लगभग पांच लाख यहूदी हैं, जो किसी दूसरे यूरोपीय देश की तुलना में सबसे अधिक है। इसके अलावा करीब 50 लाख मुसलमान फ्रांस में रहते हैं।
दरअसल, हमास के बर्बर आतंकी कृत्य के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों भी इस्राइल दौरे पर गए थे। उन्होंने साफ किया था कि हमास की जीत से यूरोप का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाएगा। फ्रांस और अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, इटली और कनाडा सरीखे देश भी इजरायल के साथ और हमास का मुखर विरोध करते दिखे। ऐसे में युद्धविराम को साकार करने में परदे के पीछे अमेरिका के अलावा फ्रांस और अन्य देशों की भूमिका भी काफी अहम मानी जा सकती है है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भले ही हमास के लड़ाकों को ईरान जैसे देश की अप्रत्यक्ष मदद मिल रही हो, संघर्ष विराम में ईरान के मुकाबले कतर की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण रही। तुर्की और इजरायल के संबंध भी इस युद्धविराम के बीच अहम हैं। 1949 से ही दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध हैं। इजरायल को मान्यता देने वाला पहला मुस्लिम बहुल देश तुर्की ही था। करीब 20 साल पहले, 2002 के बाद से दोनों देशों के बीच उतार-चढ़ाव रहे हैं। अगस्त, 2022 में तुर्की और इस्राइल के बीच राजनयिक संबंध बहाल हुए। ऐसे में इजरायल को संघर्ष विराम के लिए राजी करने में परदे के पीछे इस देश की भी अहम भूमिका है।
अब तक 15 हजार से अधिक लोगों की मौत
बता दें कि इजरायल और हमास का हिंसक संघर्ष बीते सात अक्तूबर को शुरू हुआ था। इस लड़ाई में अब तक 15 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। हमास के आतंकी हमलों के जवाब में इजरायली डिफेंस फोर्स गाजा के आतंकी ठिकानों पर लगातार हमले कर रही है। हमास के कब्जे वाले गाजा में स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि अब तक 12 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। दूसरी तरफ इस्राइली पक्ष में 1200 लोगों की मौत हुई है।