कोलंबो: आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के कैबिनेट मंत्रियों ने रविवार को इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी राजनीतिक दलों को मंत्री पद स्वीकार करने के लिए कहा है, लेकिन विपक्ष ने इसे पूरी तरह से दिखावा बताकर खारिज कर दिया है।
श्रीलंका के आर्थिक संकट से जुड़ी अहम जानकारियां
श्रीलंका के विपक्ष ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार में शामिल होने के निमंत्रण को खारिज कर दिया और विपक्ष ने देश में भोजन, ईंधन और दवाओं की बिगड़ती कमी पर उनके इस्तीफे की मांग कर दी।
राष्ट्रपति राजपक्षे ने संसद की वैधता और स्थिरता को बनाए रखने के लिए चार मंत्रियों को नामित किया है जब तक कि एक पूर्ण मंत्रिमंडल की नियुक्ति नहीं हो जाती।
देश में दवा की भारी कमी को देखते हुए श्रीलंका में मंगलवार से आपात स्थिति घोषित कर दी गई है।
विदेशी मुद्रा की भारी कमी और भुगतान संतुलन के मुद्दों से उत्पन्न आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रपति राजपक्षे परिवार के खिलाफ बड़े पैमाने पर सार्वजनिक आंदोलन हुए हैं।
देश के केंद्रीय बैंक के गवर्नर अजित काबराल ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि कैबिनेट ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए नए प्रशासन का रास्ता बनाने के लिए इस्तीफा दे दिया था।
रविवार शाम को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को छोड़कर सभी 26 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया।
भारत ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए श्रीलंका को वित्तीय सहायता के तौर पर 1 बिलियन अमरीकी डालर का ऋण देने की घोषणा की।
शनिवार को लगाया गया 36 घंटे का कर्फ्यू हटा लिया गया है, लेकिन देश अभी भी आपातकाल की स्थिति में है। कोलंबो में पश्चिमी राजनयिकों ने आपातकालीन कानूनों के उपयोग पर चिंता व्यक्त की है।
सरकार के खिलाफ विरोध तेज होने के बाद, फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर और यूट्यूब सहित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बैन कर दिया गया था। हालांकि बाद में सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध हटा लिए गए।
1948 में ब्रिटेन से आजादी के बाद से श्रीलंका सबसे खतरनाक मंदी जूझ रहा है। जिस वजह से देशभर के लोगों को भोजन, ईंधन और अन्य आवश्यक चीजों की भारी कमी का सामना करना पड़ा रहा है।