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कोलंबो: श्रीलंका सरकार ने देश के इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक संकट को लेकर रविवार को प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शनों से पहले शनिवार को पूरे देश में 36 घंटे का कर्फ्यू लागू कर दिया। जिसके बाद सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बैन कर दिए हैं। सरकार ने ये कदम पूरे देश में जगह-जगह होने जा रहे प्रदर्शन को काबू करने के लिए उठाया है।

श्रीलंका से जुड़ी अहम जानकारियां:

गजट अधिसूचना में राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मेरी राय में श्रीलंका में आपातकाल लागू करना सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था के साथ-साथ समुदायों के लिए जरूरी वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति बनाए रखने के हित में है।'' उन्होंने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना आवश्यक है .... निर्देश है कि कोई भी व्यक्ति दो अप्रैल, 2022 की शाम छह बजे से चार अप्रैल 2022 सुबह छह तक किसी लिखित अनुमति के बिना किसी भी सार्वजनिक सड़क, रेलवे, सार्वजनिक पार्क, सार्वजनिक मनोरंजन मैदान या अन्य सार्वजनिक मैदान या समुद्र के किनारे पर नहीं होगा।''

आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में हालात बेहद ही खराब होते जा रहे हैं। अब सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बैन कर दिए हैं। रविवार से श्रीलंका में फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम सहित तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आउट ऑफ सर्विस हो गए हैं। सरकार ने ये कदम जगह-जगह हो रहे प्रदर्शन को काबू करने के लिए उठाया है।

श्रीलंका के एक व्यक्ति ने शनिवार को आरोप लगाया कि उसके बेटे का पुलिस ने अपहरण कर लिया है। अनुरुद्ध बंडारा के पिता ने कहा कि उनके बेटे को शुक्रवार रात को मोडेरा के उत्तरी कोलंबो पुलिस थाने से कोई ले गया। पुलिस के अनुसार, उससे उसकी सोशल मीडिया गतिविधियों को लेकर पूछताछ की जानी थी। रविवार को उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया।

भारतीय उच्चायोग ने बताया कि भारत की ओर से श्रीलंका को और ईंधन की आपूर्ति की गयी। पचास करोड़ डॉलर की ऋण सहायता के जरिये भारतीय सहयोग के अंतर्गत चालीस हजार मीट्रिक टन डीजल की एक खेप कोलंबो में ऊर्जा मंत्री जेमिनी लोकुज को सौंप दी गयी। भारत ने पेट्रोलियम उतपादों की खरीद के लिए 50 करोड़ डॉलर की ऋण सहायता की फरवरी में घोषणा के बाद श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारने के लिए हाल ही में एक अरब डॉलर की ऋण सहायता की घोषणा की थी। उच्चायोग ने लिखा, ‘‘ऋण सहायता के तहत यह चौथी खेप है। पिछले पचास दिनों में भारतीय कुओं से श्रीलंका के लोगों तक दो लाख टन ईंधन की आपूर्ति की गयी।''

स्वतंत्र थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर पॉलिसी ऑल्टरनेटिव्स' ने आपातकाल पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘प्रतिबंधों से संविधान प्रदत्त कुछ मौलिक अधिकार बाधित हो सकते हैं। इनमें अभिव्यक्ति की आजादी से लेकर सभा करने, आवाजाही, धर्म, संस्कृति और भाषा की स्वतंत्रता शामिल है।'' अधिवक्ताओं ने बताया कि ये प्रतिबंध पुलिस को गैरकानूनी रूप से एकत्रित होने वाले लोगों को गिरफ्तार करने की असीम शक्ति देते हैं। उन्होंने कहा कि इन प्रतिबंधों पर उनके क्रियान्वयन के हर 30वें दिन संसद की मंजूरी ली जानी चाहिए।

देश में लोग आर्थिक संकट से निपटने में सरकार की नाकामी के खिलाफ रविवार को प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं। दरअसल, लोगों को घंटों तक बिजली कटौती और आवश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। नागरिकों को प्रदर्शन करने से रोकने के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है।

बोपागे कोलंबो उपनगरीय गंगोडाविला मजिस्ट्रेट की अदालत में मुफ्त सलाह देने के लिए जुटे लगभग 500 अधिवक्ताओं में शामिल हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह एक बेहद अहम आदेश था। अदालत ने पुलिस से प्रत्येक प्रदर्शनकारी के हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों की पुष्टि करने वाले सबूत पेश करने को कहा था। पुलिस ऐसा नहीं कर सकी।''

सरकार ने राजपक्षे के आवास के बाहर हुए प्रदर्शनों के लिए विपक्षी राजनीतिक दलों से जुड़े एक चरमपंथी समूह को जिम्मेदार ठहराया था। हालांकि, प्रदर्शनकारियों ने कहा था कि वे किसी राजनीतिक समूह से प्रेरित नहीं हैं और वे जनता द्वारा झेली जा रही परेशानियों का सरकार द्वारा समाधान चाहते हैं।

प्रदर्शन के हिंसक रूप अख्तियार करने के चलते कई वाहनों को आग लगा दी गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। इस घटना के बाद कई लोगों को गिरफ्तार करने के साथ ही कोलंबो शहर में संक्षिप्त अवधि के लिए कर्फ्यू लगाया गया था। इस बीच, एक सोशल मीडिया कार्यकर्ता अनुरुद्ध बंडारा के पिता ने शनिवार को आरोप लगाया कि आपातकाल की घोषणा होने के तत्काल बाद उनके बेटे को पुलिस ने अवैध रूप से हिरासत में ले लिया।

श्रीलंका वर्तमान में इतिहास के सबसे बुरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. पिछले कई सप्ताह से देश की जनता को ईंधन और रसोई गैस के लिए लंबी कतारों का सामना करने के साथ ही आवश्यक चीजों की किल्लत झेलनी पड़ रही है।

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