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भोपाल: मध्यप्रदेश के चुनावी गणित में कांग्रेस अभी भले ही कमजोर नजर आती हो, मगर हकीकत में ऐसा है नहीं। कांग्रेस के ही कुछ जिम्मेदार नेता इस कोशिश में लगे हुए हैं कि पार्टी कमजोर नजर आए। इसके पीछे उनकी मजबूरी यह है कि उनके कारोबार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े नेता और सरकार मदद करती आई है और इसलिए वे एहसान चुकाना चाहते हैं। भाजपा सरकार के एहसान तले दबे ये नेता न तो कभी कोई बड़ा और गंभीर मुद्दा उठाते हैं और न ही सड़कों पर उतरते हैं। हां, बड़े नेताओं के नाम पर चांदी जरूर काटते हैं।

प्रदेश में कांग्रेस डेढ़ दशक से सत्ता से बाहर है, मगर पार्टी के कुछ नेताओं के ठाठ-बाट में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। इसकी वजह इनके काम-धंधों में किसी तरह की रुकवट न होना है। इस बात का खुलासा कोई और नहीं, अब कांग्रेस के नेता ही करने लगे हैं। मीडिया रिर्पोटस के मुताबिक जबलपुर के वरिष्ठ कांग्रेस नेता राममूर्ति मिश्रा ने तो खुले तौर पर अपनी पार्टी के स्थानीय विधायक तरुण भनोट पर आरोप लगाए हैं कि वे भाजपा के विधायकों से मिले हुए हैं और उनके साथ धंधे कर रहे हैं। इतना ही नहीं, भनोट ने कई बार कांग्रेस के उम्मीदवारों को विभिन्न चुनावों में हराने में भूमिका निभाई है।

प्रदेश में कांग्रेस की सियासत पर नजर दौड़ाई जाए तो प्रमुख नेता दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया व सुरेश पचौरी के प्रतिनिधि के तौर पर कई नेता भोपाल में तैनात हैं। वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी में भी जिम्मेदार पद संभाले हुए हैं। लिहाजा, भाजपा इन प्रतिनिधियों को मैनेज करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। ज्यादातर नेता तो ऐसे हैं, जिनके कारोबार काफी फैले हुए हैं और फल-फूल रहे हैं। उसमें भाजपा नेताओं और सरकार की भरपूर मदद मिल रही है। हां, ये प्रतिनिधि अपने नेता की तस्वीर, विज्ञप्ति, बयान, ट्विटर पोस्ट आदि को सोशल मीडिया पर शेयर करते रहे हैं, तो दूसरी ओर बयान जारी कर विपक्षी होने की अपनी जिम्मेदारी निभा देते हैं।

कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि कई नेता ऐसे हैं, जिनमें से किसी का खदान का कारोबार है, किसी का परिवहन का है और किसी का स्वास्थ्य का है। इन सारे काम में भाजपा नेता और सरकार की उन्हें मदद मिल रही है। यही कारण है कि ऐसे नेता बड़े मुद्दों को उठाने में पीछे ही रहते है।

राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा कहते हैं कि बीते 15 सालों में व्यापम सरीखे कई घोटाले हुए हैं, मगर इन मामलों को कांग्रेस के इन 'छुपे रुस्तम' नेताओं ने शायद ही कभी पूरी ताकत से मुद्दों को उठाया हो। कांग्रेस के ज्यादातर नेता और उनके प्रतिनिधियों के अपने कारोबार हैं और भाजपा के साथ उनका सामंजस्य भी किसी से छुपा नहीं है।

शर्मा आगे कहते हैं कि प्रदेश में हुए घपलों-घोटालों की लड़ाई कांग्रेस से ज्यादा मीडिया ने लड़ी है, मगर राष्ट्रीय स्तर पर राज्य का मीडिया बदनाम है कि वह सरकार से उपकृत रहता है। कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के लिए नहीं जूझ रही, बल्कि नेता अपनी सीट और अपने लोगों की जीत के लिए संघर्ष ज्यादा कर रहे हैं।

कांग्रेस के मीडिया विभाग की प्रमुख शोभा ओझा इस बात को सिरे से खारिज करती हैं कि कांग्रेस के नेताओं की भाजपा के साथ कोई मिलीभगत है। उन्होंने कहा कि बीते 15 साल में भाजपा की दमनकारी नीतियों के बावजूद जो भी व्यक्ति कांग्रेस में बना हुआ है, वह सच्चा कांग्रेसी है। कांग्रेस नेताओं के धंधों पर तो भाजपा ने चोट ही की है।

कांग्रेस की प्रदेश इकाई की कमान संभालते ही कमलनाथ ने दावा किया था कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में गुटबाजी नहीं रही। उसके उलट, जबलपुर के एक कांग्रेस नेता ने जो खुलकर बात कही, उससे यह तो साफ हो गया कि कांग्रेस अब भी उसी ढ़रेर् पर चल रही है, जिसके लिए वह जानी जाती है। दूसरी ओर, अब तो कांग्रेस की भाजपा से मिलीभगत भी सामने आने लगी है। सवाल यह उठ रहा है कि कांग्रेस ऐसे में जीतेगी तो कैसे?

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