भोपाल: अटल बिहारी वाजपेयी, 25 दिसंबर 1924 के दिन ग्वालियर में जन्मे और वो शहर जहां से अटलजी की मीठी यादें जुड़ी हैं। ये शब्द आपको सही जान पड़ेगा जब आप नया बाज़ार के बहादुरा स्वीट्स आएंगे। किसी अखबार ने लिखा था कि बहादुरा के लड्डू पासपोर्ट टू पीएम हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी वो लड्डू खाने बहादुरा मिठाई की दुकान पर आते रहे। 47 साल के और अब दुकान के मालिक विकास शर्मा अटलजी को याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। कहते हैं, वो पिताजी के बहुत अच्छे दोस्त थे। बैजनाथ जी और 2-3 दोस्तों के साथ बहुत वक्त दुकान में गुजारा करते थे। हमारे यहां दो चीजें बनती थीं लड्डू और गुलाबजामुन। सुबह में कचौड़ी और इमरती वो मुझे कहते थे ऐ इधर आ, जल्दी दे। उस वक्त मुझे अजीब लगता था, लेकिन मेरे पिता कहते थे तुम नहीं समझोगे। अब लगता है मेरा अपना चला गया। हमारे लिये वो परिवार थे।
वाजपेयी जी का जन्म मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में शिंदे की छावनी इलाके में हुआ था। मां कृष्णा देवी और पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी। अटलजी लश्कर में स्थित गोरखी माध्यमिक विद्यालय में पढ़े ये वही स्कूल था जहां 1935 से 1937 तक उनके पिता प्राचार्य रहे। ग्वालियर के ही एमएलबी कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद वो पोस्ट ग्रेजुएशन के लिये कानपुर चले गए।
स्कूल की बिल्डिंग अब जर्जर हो चली है, लेकिन वो रजिस्टर उन्होंने संभाल कर रखा है, जिसमें अटलजी का नाम दर्ज है। स्कूल के प्रिंसिपल डॉ केएस राठौर कहते हैं। ये हमारे लिये ऐतिहासिक दस्तावेज है। 101 पर अटलजी का नाम लिखा है। यहां उन्होंने 1935 में आठवीं पास करने के बाद स्कूल छोड़ा। इस स्कूल की पहचान ही अटल जी के नाम पर है, हम यही चाहते हैं कि स्कूल का नाम उनके नाम पर रखा जाए।
अटलजी को कबड्डी और हॉकी खेलने का शौक था। साइकिल भी बड़े मज़े से चलाते थे। उनकी भतीजी कांति मिश्रा कहती हैं वो कि साइकिल लेकर ग्वालियर में अपने मित्रों के घर चल देते थे। एक बार राजमाता सिंधिया ने उनके लिये कार भेज दी, तो उन्होंने ससम्मान उसे वापस भेजते हुए कहा कि ये शहर मेरा है। हालांकि 1984 के बाद से ग्वालियर के साथ एक तरह से उनका व्यक्तिगत राजनीतिक संबंध खत्म हो गया, जब चुनाव में उन्हें युवा माधव राव सिंधिया ने भारी अंतर से हरा दिया।
मध्य-प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अटलजी को याद करते हुए कहा कि उस वक्त जब उन्होंने भोपाल का दौरा किया, तो उन्होंने मुझे बताया, शिवराज अब मैं बेरोजगार हूं। 1991 में वो दो सीटों विदिशा और लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़े। बुधनी के एक विधायक के नाते मुझे विदिशा के पूरे संसदीय क्षेत्र में प्रचार करने का मौका मिला। अटल जी ने दोनों सीटें जीती लेकिन उन्होंने लखनऊ को बनाए रखने का फैसला किया और मुझे खाली विदिशा सीट से उप-चुनाव लड़ाने का फैसला किया। जब मैं उपचुनाव जीतने के बाद उनसे मिलने गया, तो उन्होंने मुझे 'आओ विदिशापति' के साथ संबोधित किया और तब से जब भी मैं उनसे मिला, तो उन्होंने हमेशा मुझे विदिशापति के नाम से संबोधित किया।
2006 के बाद, अटल जी ने कभी भी अपने स्वास्थ्य की वजह से ग्वालियर का दौरा नहीं किया, लेकिन इस शहर के लोग हमेशा अपने अटलजी की स्मृतियों को संजोकर रखेंगे।