मुंबई: मुंबई की एक अदालत ने 1999 के हत्या के एक मामले में छोटा शकील गिरोह के कथित शार्प शूटर का 20 साल तक पता नहीं लगा पाने के लिए शहर की पुलिस की आलोचना की है, जो इस अवधि के दौरान एक अन्य मामले में विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में बंद था।
महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) मामलों के विशेष न्यायाधीश ए.एम पाटिल ने 1999 में बॉम्बे अमन कमेटी के अध्यक्ष वाहिद अली खान की हत्या के आरोपी माहिर सिद्दीकी को बरी करते हुए तीन फरवरी को पारित अपने आदेश में यह टिप्पणी की। अदालत ने अभियोजन पक्ष की मामले में कई विसंगतियों का हवाला दिया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, सिद्दीकी और एक सह-आरोपी ने जुलाई 1999 में मुंबई के एलटी मार्ग इलाके में खान के घर के पास कथित तौर पर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। वारदात को अंजाम देने के बाद दोनों फरार हो गए थे। पुलिस ने मई 2019 में सिद्दीकी का पता लगाकर उसे गिरफ्तार कर लिया। उन्हें उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत मिले और उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया।
जांच के दौरान, पुलिस को सिद्दीकी और छोटा शकील समेत छह लोगों की संलिप्तता के बारे में पता चला।
पुलिस ने कहा था कि उन्हें यह भी पता चला कि अपराध छोटा शकील के इशारे पर हुआ था।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि सिद्दीकी के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल करते समय अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि वह घटना की तारीख से गिरफ्तारी तक फरार था। जबकि वह 2014 से 2019 के बीच एक अन्य मामले में विचाराधीन कैदी था और सीआईडी उसे गिरफ्तार कर चुकी थी। अदालत ने पूछा कि जब वह जेल में था तो पुलिस उसका पता लगाने में कैसे विफल रही।
न्यायाधीश ने कहा, “पुलिस उसे खोजने में विफल रही, जबकि उसके पास फरार आरोपियों और विचाराधीन कैदियों का रिकॉर्ड होता है। इसकी असली वजह तो पुलिस ही बता सकती है।”