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जयपुर: राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही गुटबाजी से जूझ रही हैं। राजस्थान में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, न सरकार के गठन में न ही नेता प्रतिपक्ष के चयन में और न ही नई सरकार आने के बाद ब्यूरोक्रेसी को लेकर होने वाले बदलाव में।

बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर फिलहाल दिल्ली किसी भी जल्दबाजी में नहीं है। इसका इंतजार अगले सप्ताह तक करना पड़ सकता है। वहीं, ब्यूरोक्रेसी में भी 15 जनवरी के आसपास बदलाव देखने को मिल सकते हैं। लेकिन ऐसा है क्यों, यह बड़ा सवाल है?

मंत्रिमंडल के लिए दिल्ली में कई बैठकें

बीजेपी के नए मंत्रिमंडल को लेकर दिल्ली में अब तक चार से ज्यादा बैठकें हो चुकी हैं, जिनमें सीएम भजनलाल शर्मा के साथ राजस्थान के शीर्ष नेताओं को भी बुलाया गया था। 19 जनवरी से राजस्थान में विधानसभा सत्र भी होना है। इसमें राज्यपाल के अभिभाषण के साथ सरकार वोट ऑन अकाउंट भी ला सकती है। इस तैयारी लिए आने वाले नए वित्त मंत्री को काफी चीजों को समझना होगा।

यहां फंसा पेंच

बीजेपी के नए मंत्रिमंडल में किसे कौन सा पोर्टफोलिओ दिया जाएगा, इस पर मंथन चल रहा है। इसमें वसुंधरा राजे गुट के विधायक भी शामिल हैं। जानकारों का कहना है कि राजे समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह तो दी जाएगी, लेकिन पोर्टफोलियो पर बात बननी बाकी है।

कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष को लेकर कई गुट

इधर, कांग्रेस में भी नेता प्रतिपक्ष को लेकर गुटबाज चरम पर है। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद गहलोत-पायलट को राजस्थान से बाहर भेज दिया। लेकिन नेता प्रतिपक्ष को लेकर इन दोनों की राय को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा अब राजस्थान में कांग्रेस के कद्दावर चेहरे के तौर पर आगे आए हैं।

हालांकि, नेता प्रतिपक्ष के सवाल पर डोटासरा ने कहा कि नए सत्र के शुरू होने तक पार्टी विपक्ष का नेता चुन लेगी। फिलहाल, कोई जल्दबाजी नहीं है। लेकिन राजस्थान कांग्रेस की सियासत में नेता प्रतिपक्ष के लिए जो नाम चल रहे हैं, उन पर सभी की राय अलग-अलग है। हालांकि, कोई खुलकर नहीं बोलना चाहता।

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