ताज़ा खबरें
पश्चिम बंगाल: बीरभूम में होली पर झड़प के बाद तनाव, इंटरनेट बंद
बिहार में अररिया के बाद अब मुंगेर में भी पुलिस अधिकारी की हत्या
सोनीपत में बीजेपी नेता सुरेंद्र जवाहरा की हत्या, पड़ोसी ने मारी गोली

नई दिल्ली: बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का आज जन्मदिवस है। इस मौके पर कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह स्वर्गीय दलित नेता को याद किया है, उससे सियासी खेमों में कयासों का दौर शुरु हो गया है और राजनीतिक विश्लेषक इसे कांग्रेस की दलितों को आकर्षित कर अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं।

कांग्रेस के इस कदम को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि हाल ही में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) अंदरूनी कलह से दोचार हुई है और इसके राजनीतिक आधार में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि, “समाज के दलित, वंचित, शोषित व पिछड़े वर्ग को भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से जोड़ने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले, महान समाज सुधारक, मान्यवर कांशीराम जी की जयंती पर हम उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उन्होंने समानता और सामाजिक न्याय के पुरोधा के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।“

वहीं राहुल गांधी ने भी कांशीराम को याद करते हुए एक्स पर पोस्ट लिखी। उन्होंने लिखा, “महान समाज सुधारक, मान्यवर कांशीराम जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन। दलितों, वंचितों और शोषितों के अधिकारों के लिए उनका संघर्ष, सामाजिक न्याय की इस लड़ाई में हमारा हर कदम पर मार्गदर्शन करता रहेगा।“

पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी ने भी कांशीराम को उनके जन्मदिन के मौके पर याद किया। उन्होंने लिखा कि, “दलित, वंचित, शोषित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की प्रखर आवाज, सामाजिक न्याय के पुरोधा और बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम जी की जयंती पर उन्हें सादर नमन। मान्यवर कांशीराम जी ने अपने विचारों और सामाजिक आंदोलनों के जरिये सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों को नई ऊंचाई दी। उनके विचार पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।“

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांशीराम को कांग्रेस द्वारा दी गई अभूतपूर्व सार्वजनिक श्रद्धांजलि बीएसपी के परंपरागत वोट आधार रहे दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए एक सोची-समझी रणनीति का संकेत है। उनका मानना है कि मायावती के नेतृत्व वाली बीएसपी की चुनावी नतीजों में निरंतर गिरावट और आंतरिक मतभेदों के चलते कांग्रेस खुद को सामाजिक न्याय की राजनीति की मुख्य पैरोकार के रूप में स्थापित करती दिख रही है।

यहां यह बताना जरूरी है कि हाल ही में राहुल गांधी ने खुलासा किया था कि उन्होंने बीएसपी प्रमुख मायावती को विपक्ष के इंडिया ब्लॉक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन उन्होंने मना कर दिया था। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कांशीराम की राजनीति और उनकी विरासत के प्रति कांग्रेस का झुकाव, उन दलित मतदाताओं को लुभाने की कोशिश है, बीएसपी के राजनीतिक पतन से निराश हैं। खासतौर से उत्तर प्रदेश में, बीएसपी के खिसकते जनाधार ने एक शून्य पैदा कर दिया है।

कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रोपड़ जिले में हुआ था। उन्होंने दलितों और हाशिए के अन्य समुदायों के लिए संघर्ष किया और एक परिवर्तनकारी नेता के रूप में उभरे। 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ (BAMCEF), दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DS-4) और अंततः 1984 में बीएसपी की स्थापना ने भारतीय राजनीति का परिदृश्य ही बदल दिया।

उनके नेतृत्व में, बीएसपी ने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को एक मजबूत राजनीतिक शक्ति बनाया। बाद में कांशीराम ने बीएसपी का नेतृत्व मायावती को सौंप दिया, जो चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि, अब जब बीएसपी अपने मूल मतदाता आधार को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है, तो कांग्रेस द्वारा कांशीराम की विरासत का रणनीतिक आह्वान यह दर्शाता है कि यह पुरानी पार्टी दलित राजनीति में खालीपन को भरने के लिए तैयार हो रही है।

  • देश
  • प्रदेश
  • आलेख