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नई दिल्ली: इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (आईआरएफ) के संस्थापक अध्यक्ष ज़ाकिर नाईक पर शिकंजा कसता जा रहा है। गृह मंत्रालय उनके कामकाज और भाषणों की जांच कर रहा है। उनके 'पीस टीवी' के खिलाफ भी जांच की बात हो रही है। दरअसल जब बांग्लादेश के एक हमलावर के फेसबुक एकाउंट पर मुंबई के ज़ाकिर नाईक से प्रेरणा लेने की बात आई तो सबका ध्यान नए सिरे से नाईक के भाषण और उनकी संस्था के कामकाज की ओर गया। अब गृह मंत्रालय उनकी जांच में जुट गया है। यह देखा जा रहा है कि उनकी संस्था इस्लामी रिसर्च फाउंडेशन कहीं फ़िदाईन हमलों को बढ़ावा तो नहीं देती? और कहीं लश्कर से उसका वास्ता तो नहीं है। एनडीटीवी को मिली जानकारी के मुताबिक जांच इस बात की हो रही है कि क्या 2006 में मुंबई के सीरियल धमाकों के आरोपी राहेल शेख और ज़ैबुद्दीन अंसानी अक्सर डोंगरी इलाके में आईआरएफ में मिलते थे? जांच इस बात की दुबारा हो रही है कि क्या आईआरएफ का लाइब्रेरियन लश्कर की उस सेल का अहम सदस्य था जिसने बमबारी की थी? 26/11 के आरोपी डेविड हेडली के पास भी आईआरएफ के नंबर थे। जांच में यह भी देखा जा रहा है कि ओसामा बिन लादेन और तालिबान से इनके संपर्क तो नहीं रहे। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि "हम आतंकवाद से कोई समझौता नहीं करेंगे। ज़ाकिर नाईक के द्वारा दिए गए भाषणों को भी परखा जा रहा है।" इस बीच ज़ाकिर नाईक के खिलाफ आपत्तिजनक बातें कहने की सौ से ज़्यादा शिकायतें आ चुकी हैं।

कहा जा रहा है कि आईआरएफ लगातार ऐसी सभाएं करता था जिनमें नाईक धर्म परिवर्तन पर जोर देता था। जांच ज़ाकिर नाईक के पीस टीवी की भी चल रही है जिस पर आपत्तिजनक सामग्री के प्रसारण का इल्जाम है। इस सबके बीच ज़ाकिर नाईक के खिलाफ ऑनलाइन पिटीशन का दौर चल पड़ा है। उनकी संस्था पर पाबंदी की मांग हो रही है। जितने भी आरोप ज़ाकिर नाईक पर लगाए जा रहे हैं वे नए नहीं है। लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय तब जगा है जब ज़ाकिर नाईक का मामला मीडिया में उछला। अब मांग इस बात की हो रही है कि जब ज़ाकिर नाईक को मलेशिया, कनाडा और यूनाईटेड किंगडम में बैन किया जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं?

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