नई दिल्ली: विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज कहा कि वह उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों के मुद्दे पर सरकार और न्यायपालिका के बीच ‘साझा आधार’ तैयार करने का प्रयास करेंगे। विधि मंत्री की इस टिप्पणी को ऐसे समय में महत्वपूर्ण माना जा रहा है जब सरकार उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित दस्तावेज ‘प्रकिया ज्ञापन’ को लेकर उच्चतम न्यायालय के कालेजियम के साथ मतभेदों को दूर करने का प्रयास कर रही है। रविशंकर प्रसाद ने संवाददाताओं से कहा, ‘हम विचार विमर्श करेंगे, हम न्यायिक नियुक्ति के मुद्दे पर साझा आधार तैयार करने के मद्देनजर बैठक करेंगे, सौहार्द के साथ काम करने की जरूरत है। हम न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं।’ रविशंकर प्रसाद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में विधि मंत्री थे, साथ ही नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में भी प्रारंभिक दिनों में विधि मंत्री का प्रभार उनके पास था। ताजा मंत्रिमंडल विस्तार एवं फेरबदल में रविशंकार प्रसाद को डीवी सदानंद गौड़ा के स्थान पर विधि मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया। एक सवाल के जवाब में प्रसाद ने कहा कि वह प्रक्रिया ज्ञापन को जल्द अंतिम रूप देने की दिशा में प्रयास करेंगे। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि समय पर न्याय दिलाना और पारदर्शिता इस सरकार की एक प्रमुख प्राथमिकता है।
उन्होंने कहा कि हम इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भरसक प्रयास करेंगे कि निपुण एवं सर्वाधिक योग्य व्यक्ति ही न्यायिक प्रणाली से जुड़ें। यह पूछे जाने पर कि क्या वह भारत के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर के साथ बैठक करेंगे, उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर विधि मंत्री को सीजेआई से मिलना चाहिए और वह ऐसा करेंगे। उन्होंने कहा कि विधि एवं न्याय राज्य मंत्री पीपी चौधरी के साथ उनकी प्राथमिकता तेजी से न्याय दिलाने की होगी। विधि मंत्री ने कहा कि अदालतों में आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाने की दिशा में सतत प्रयास किये जायेंगे जो तीव्र न्याय के लिए जरूरी है। संसद में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित दो दशक पुरानी कालेजियम प्रणाली के स्थान पर राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम पारित किया गया था हालांकि पिछले वर्ष अक्तूबर में उच्चतम न्यायालय ने इसे निरस्त कर दिया।