नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर ने शनिवार को कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों की तुलना में विकसित देश अधिक कार्बन का उत्सर्जन कर रहे हैं। उन्होंने यह बात मानवाधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए बेहद प्रभावकारी औजार के तौर पर अंतरराष्ट्रीय कानून के महत्व पर जोर देते हुए कही। मौजूदा परिदृश्य में अंतरराष्ट्रीय कानून के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में अधिकार क्षेत्र को लेकर टकराव के युग में यह उपयुक्त समय है कि ‘हम खुद को नदी जल विवाद, अंतरिक्ष कानून, शरणार्थी कानून, बच्चों की कस्टडी जैसे मुद्दों का निराकरण करने के लिए तैयार करें।’ ठाकुर इंटरनेशनल लॉ एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘दुनिया कानूनों के प्रवर्तन की एकीकृत व्यवस्था प्रदान करने के लिए करीब आ रही है---हमें न सिर्फ कानून के मामले में खुद को तैयार करना चाहिए बल्कि क्षमता के मामले में भी खुद को तैयार करना चाहिए ताकि जब भी पैदा हो तो हम अंतरराष्ट्रीय मुद्दों का निराकरण कर सकें।’ पर्यावरण के संदर्भ में विकसित देशों का उल्लेख करते हुए ठाकुर ने कहा, ‘अगर आज आप ओजोन परत के क्षरण को देखें तो यह इसलिए नहीं है कि भारत उभर रहा है या यह अपनी उर्जा जरूरतों के लिए कोयला पर निर्भर है बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि औद्योगीकृत देश पिछले 200 वषरें से कार्बन का उत्सर्जन कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय कानून के आयाम हाल के समय में किसी भी देश की समझ से आगे चले गए हैं। मिसाल के तौर पर पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों के संबंध में। आज अगर दुनिया के किसी हिस्से में पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है तो हम प्रभावित होते हैं। एक औद्योगिक दृष्टि से विकसित देश जो कार्बन का उत्सर्जन करता है, जिसकी वजह से ओजोन परत का क्षरण हो रहा है और समूची मानव प्रजाति प्रभावित होती है।’