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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों पर अपने 2014 के आदेश में संशोधन से इनकार करते हुए आज स्पष्ट किया कि समलैंगिक महिला, पुरुष और उभयलिंगी लोग तीसरा लिंग नहीं हैं। न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति एनवी रमन ने कहा कि 15 अप्रैल 2014 के आदेश से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि समलैंगिक महिला, पुरुष और उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर नहीं हैं। केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त साॠलिसिटर जनरल (एएसजी) मनिंदर सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा कि पूर्व के आदेश से यह स्पष्ट नहीं है कि समलैंगिक महिला, पुरष और उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में एक स्पष्टता की आवश्यकता है। कुछ ट्रांसजेंडर कार्यकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा कि केंद्र उच्चतम न्यायालय के 2014 के आदेश को पिछले दो साल से यह कहकर क्रियान्वित नहीं कर रहा है कि उसे ट्रांसजेंडरों के मुद्दे पर स्पष्टता की आवश्यकता है। पीठ ने एएसजी से कहा, हमें आवेदन को शुल्क (कॉस्टस) के साथ क्यों नहीं खारिज कर देना चाहिए। इसने यह भी कहा, किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है। आवेदन का (केंद्र के) निपटारा किया जाता है। उच्चतम न्यायालय ने 15 अप्रैल 2014 को एक ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडरों को तीसरे लिंग की श्रेणी के रूप में कानूनी मान्यता प्रदान कर दी थी और केंद्र तथा सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वे उन्हें शैक्षिक संस्थानों में दाखिले और सार्वजनिक नियुक्तियों में आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए उनको सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी श्रेणियों के रूप में मानें।

ट्रांसजेंडरों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त करते हुए शीर्ष अदालत ने सरकारों को निर्देश दिया था कि वे इन लोगों के समक्ष आने वाली डर, शर्म, सामाजिक दबाव, अवसाद और सामाजिक कलंक जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए कदम उठाएं। इसने यह भी कहा था कि इन लोगों के खिलाफ भादंसं की धारा 377 का पुलिस और अन्य अधिकारी दुरुपयोग कर रहे हैं, तथा उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति संतोषजनक से परे है। हालांकि, केंद्र ने सितंबर 2014 में उच्चतम न्यायालय में आवेदन दायर कर यह कहते हुए ट्रांसजेंडरों की परिभाषा पर स्पष्टता मांगी थी कि समलैंगिक महिलाओं, समलैंगिक पुरुषों और उभयलिंगी लोगों को ट्रांसजेंडर की श्रेणी में नहीं माना जा सकता। दिलचस्प बात यह है कि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में खुद ही स्पष्ट किया था कि समलैंगिक पुरष, समलैंगिक महिलाएं और उभयलिंगी लोग ट्रांसजेंडर की श्रेणी में शामिल नहीं हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा था, व्याकरण के हिसाब से ट्रांसजेंडर का अर्थ लिंग से परे या पार है। हालांकि इसे ऐसा माना जाने लगा कि इसके दायरे में समलैंगिक पुरुष, समलैंगिक महिलाएं, उभयलिंगी और विपरीत लिंग के कपड़े पहनने वाले शामिल हैं। हालांकि, मौजूदा मुद्दे से निपटते समय ट्रांसजेंडरों के उक्त व्यापक मतलब से कोई लेना-देना नहीं है। केंद्र ने ट्रांसजेंडरों को अन्य पिछड़ा वर्ग का दर्जा देने के मुद्दे पर भी यह कहते हुए स्पष्टीकरण मांगा था कि इस तरह के सभी लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि इनमें से कुछ जन्म से अनुसूचित जाति़-जनजाति से संबंधित हैं।

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