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नई दिल्ली: परमाणु आपूर्तिकर्ता के समूह (एनएसजी) में शामिल होने के प्रारंभिक प्रयास में अड़चन आने के बावजूद भारत को पूरा भरोसा है कि वह इसकी सदस्यता हासिल कर लेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि हमें पूरा भरोसा है कि हम परमाणु आपूतिकर्ता देशों के समूह में शामिल हो जाएंगे क्योंकि एक देश को छोड़कर किसी ने हमारे दावे का विरोध नहीं किया है। उन्होंने कहा कि सोल में हाल में सम्पन्न हुए पूर्ण अधिवेशन से हमें यह संदेश मिला है कि हमें अपने प्रयासों में और तेजी लानी होगी। एनएसजी में भारत के शामिल होने पर लगभग आम सहमति बन गयी थी। स्वरूप ने सोल में भारतीय कूटनीति के विफल रहने की बात से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि कूटनीति निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है और किसी भी अंतरराष्ट्रीय समूह में शामिल होने के लिए सर्वसम्मति बनाने में समय लगता है। उन्होंने इस संबंध में शंघाई सहयोग संगठन और मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण प्रणाली का उल्लेख किया, जिसमें भारत लंबे प्रयास के बाद प्रवेश कर पाया। स्वरूप ने कहा कि एक (चीन) को छोड़कर किसी भी देश ने भारत के दावे का विरोध नहीं किया। उनमें से कुछ ने केवल प्रक्रियागत मुद्दे उठाए थे। यदि एक देश ने हमारे दावे का विरोध नहीं किया होता तो सोल में ही निर्णय हो जाता। उन्होंने कहा कि भारत चीन को यह संदेश देना जारी रखेगा कि सहयोग और संबंध दोतरफा प्रक्रिया हैं।

उन्होंने एनएसजी में भारत की सदस्यता के दावे में अड़चन डालने के लिए परमाणु अप्रसार संधि का इस्तेमाल नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा कि संधि का क्रियान्वयन और उस पर अमल करना दो अलग मामले हैं। भारत ने इस संधि पर समझौता किए बिना उसकी सभी शर्तों को लागू किया है और एनएसजी ने 2008 में इस बात को मान्यता देते हुए भारत को महत्वपूर्ण छूट दी थी। एमटीसीआर में भारत के मामले का पिछले साल इटली ने विरोध किया था। वह मरीन विवाद को लेकर भारत से नाखुश था। हालांकि, केरल तट से दूर दो मछुआरों की हत्या के आरोपी दो इतालवी मरीनों को अपने मुल्क वापस लौटने की अनुमति देने के बाद इटली ने अपने विरोध के स्वर को नरम कर लिया। एमटीसीआर में प्रवेश के भारत के प्रयासों को तब प्रोत्साहन मिला जब उसने इस महीने की शुरूआत में हेग आचार संहिता का हिस्सा बनने पर सहमति जताई। हेग आचार संहिता बैलिस्टिक मिसाइल की अप्रसार व्यवस्था से संबंधित है। एमटीसीआर की सदस्यता से भारत उच्चस्तरीय मिसाइल प्रौद्योगिकी की खरीद करने में सक्षम होगा और रूस के साथ इसके संयुक्त उपक्रम को भी बढ़ावा मिलेगा।

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