नई दिल्ली: परमाणु आपूतिकर्ता समूह (एनएसजी) की एक और बैठक इस साल के समाप्त होने से पहले हो सकती है जिसमें खासतौर पर परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को 48 सदस्यीय समूह में शामिल करने की मंजूरी देने की प्रक्रिया पर विचार-विमर्श हो सकता है। इससे भारत को अपने दावे को मजबूत करने का एक और मौका मिलेगा जिसे दो दिन पहले समूह की सदस्यता हासिल करने के प्रयासों में विफलता का सामना करना पड़ा था। चीन और कुछ अन्य देशों के कड़े विरोध के बीच शुक्रवार को सोल में संपन्न हुए एनएसजी के पूर्ण सत्र में सदस्यता के लिए भारत के आवेदन पर सहमति नहीं बन पायी। भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और भारत के प्रयासों को इस आधार पर रोका गया। हालांकि कूटनीतिक सूत्रों ने रविवार को कहा कि मैक्सिको के सुझाव पर अब फैसला किया गया है कि साल के समाप्त होने से पहले एनएसजी की एक और बैठक होनी चाहिए जिसमें भारत जैसे एनपीटी पर दस्तखत नहीं करने वाले देशों को समूह में शामिल करने के मानदंड पर विचार होना चाहिए। सामान्य तौर पर एनएसजी का आगामी सम्मेलन अगले साल किसी समय होगा। सूत्रों के अनुसार मैक्सिको के सुझाव का चीन ने विरोध किया लेकिन अमेरिका समेत कई देशों से इसे समर्थन मिला है। एनएसजी ने भारत की सदस्यता पर अनौपचारिक बातचीत के लिए एक समिति का गठन भी किया है और इसके प्रमुख अर्जेंटीना के राजदूत रफेल ग्रॉसी होंगे।
ग्रॉसी की नियुक्ति ऐसे समय में हुई जब अमेरिका के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि सोल में एनएसजी का सत्र भारत को सदस्य के तौर पर स्वीकार करने के लिए आगे के रास्ते के बारे में विचार करने के साथ समाप्त हो गया। ओबामा प्रशासन के अधिकारी ने वाशिंगटन में पीटीआई से कहा, ‘हमें विश्वास है कि हमें इस साल के अंत तक आगे का रास्ता मिल जाएगा। इसके लिए कुछ काम करना होगा। लेकिन हमें भरोसा है कि भारत साल के अंत तक एनएसजी का पूर्ण सदस्य होगा।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन से इतर ताशकंद में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से एनएसजी में भारत की सदस्यता का समर्थन करने का आग्रह किया था लेकिन चीन इसके विरोध में अडिग है। बाद में निराश भारत ने कहा कि ‘एक देश’ उसके आवेदन पर चर्चा के दौरान लगातार प्रक्रिया संबंधी अड़चन डालता रहा। ‘एक देश’ से स्पष्ट आशय चीन से था।