नई दिल्ली: लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने वाले विधेयक को संसद में पेश करने के लिए सरकार ने आज (गुरूवार) कोई समय सीमा बताने से इंकार कर दिया और कहा कि पार्टियों के भीतर इस पर आम सहमति की जरूरत है। लोकसभा में विधि मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा और राज्यसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि लोकसभा में विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मुहैया कराना सरकार का प्रयास है। गौड़ा ने कहा, ‘संसद में संविधान संशोधन विधेयक लाने से पूर्व इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति के आधार पर सावधानीपूर्वक विचार की जरूरत है।’ उनसे इस मुद्दे पर जल्द किसी फैसले पर पहुंचने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी गयी थी। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा लाया गयी इसी प्रकार का विधेयक 15वीं लेाकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद निष्प्रभावी हो गया था।
कानून के अनुसार, लोकसभा में लंबित कोई भी विधेयक सदन के भंग होने के साथ ही अप्रासंगिक हो जाता है। राज्यसभा में पेश किए जाने वाले विधेयक हमेशा लंबित रहते हैं। मेनका गांधी ने उधर राज्यसभा को बताया कि सरकार इस दिशा में प्रयासरत है। लेकिन इसके लिए संविधान में संशोधन के लिए कोई विधेयक लाने से पहले सभी राजनीतिक दलों में सर्वसम्मति के आधार पर विचार करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि कानून मंत्रालय से मिली सूचना के अनुसार संविधान :108वां संशेधन: विधेयक छह मई 2008 को राज्यसभा में पेश किया गया था। राज्यसभा में यह विधेयक नौ मार्च 2010 को पारित कर दिया गया लेकिन यह 15वीं लोकसभा में पारित नहीं हो पाया। 15वीं लोकसभा के भंग होने पर यह विधेयक समाप्त हो गया। मेनका ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि शहरी विकास मंत्रालय से मिली सूचना के अनुसार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 (टी) में संशोधन के माध्यम से सरकार शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 33 प्रतिशत से बढ़ा कर 50 प्रतिशत करने पर विचार कर रही है।