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शारदीय नवरात्रि शनिवार से प्रारंभ हो गए हैं। इस बार 10 दिन के नवरात्रि हैं इसलिए प्रतिपदा दो दिन है अर्थात देवी के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा शनिवार के अलावा रविवार को भी होगी। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के नौ रूप हैं शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।

हिन्दू धर्मावलंबियों का अति महत्वपूर्ण पर्व वासंतिक चैत्र नवरात्र आज (शुक्रवार) से शुरू हो रहा है। हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत 2073 का भी शुभारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा आज से ही हो रहा है। चैत्र नवरात्र पूजन के दौरान ही चैती छठ महापर्व और रामनवमी भी है। सालभर में चार नवरात्र होते हैं जिसमें शारदीय नवरात्र और वासंतिक नवरात्र का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्र को महापूजा और चैत्र नवरात्र को वार्षिकी पूजा कहा जाता है। इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ भी माना जाता है। संपूर्ण ब्रह्मांड दैवीय शक्ति से संचालित हो रहा है। नवरात्र के नौ दिन इसी शक्ति की आराधना का विशेष पर्व काल है। सभी अंकों में नौ (9) को सर्वाधिक ऊर्जावान माना जाता है। त्रिगुणात्मक सृष्टि के संचालन के लिए ही महाशक्ति ने सरस्वती, लक्ष्मी और काली का रूप धारण किया है। आगे इनका विस्तार नवदुर्गा के रूप में हुआ। नवरात्र के पहले दिन आइए हम उनके पहले दैवीय स्वरूप के बारे में जानते हैं.. नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या थीं, तब इनका नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था। प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया।

वसंत उत्सव का प्रतीक है। फूल खिलते हैं, पक्षी गीत गाते हैं, सब हरा हो जाता है, सब भरा हो जाता है। जैसे बाहर वसंत है, ऐसे ही भीतर भी वसंत घटता है और जैसे बाहर पतझड़ है, ऐसे ही भीतर भी पतझड़ है। इतना ही फर्क है कि बाहर का पतझड़ और वसंत तो एक नियति के क्रम से चलते हैं। भीतर का पतझड़ और वसंत नियतिबद्ध नहीं हैं। तुम स्वतंत्र हो, चाहे पतझड़ हो जाओ, चाहे वसंत। लेकिन दुर्भाग्य है कि अधिक पतझड़ होना पसंद करते हैं। पतझड़ का कुछ लाभ होगा, जरूर पतझड़ से कुछ मिलता होगा, अन्यथा इतने लोग भूल न करते! पतझड़ का एक लाभ है- बस एक ही लाभ है, शेष सब लाभ उससे ही पैदा होते मालूम होते हैं- पतझड़ है तो अहंकार बच सकता है। दुख में अहंकार बचता है, दुख अहंकार का भोजन है। इसलिए लोग दुखी होना पसंद करते हैं। पतझड़ में अहंकार टिक सकता है। न पत्ते हैं, न फूल हैं, न पक्षी हैं, न गीत हैं, सूखा-साखा वृक्ष खड़ा है, पर टिक सकता है। और वसंत आया नहीं कि गए तुम!

मथुरा: ब्रज-वृंदावन-बरसानामें वसंत पंचमी के त्योहार के साथ ही होली के रंग उड़ने भी शुरू हो जाएंगे। साथ ही इस वर्ष सर्दी का कहर कम होने के कारण रंगों का यह त्योहार कुछ ज्यादा ही मजेदार होगा। शुक्रवार को ब्रज के सभी मंदिरों के प्रांगणों एवं होलिका दहन वाले स्थानों पर होली का दांड़ा (लकड़ी का एक टुकड़ा, जिसके चारों ओर लकड़ियां एकत्र कर फाल्गुनी शुक्ला पूर्णिमा की रात होलिका दहन किया जाता है) गाढ़ दिए जाने के साथ ही होली के आयोजन विधिवत प्रारंभ हो जाएंगे, जो अगले पचास दिन तक जारी रहेंगे। ब्रज में होलिका दहन से पूर्व आयोजित होने वाले रंग और रास के यह सभी कार्यक्रम ‘होरी’ कहलाते हैं। जबकि उसके बाद होने वाले कार्यक्रमों को ‘हुरंगा’ नाम दिया जाता है। इस दौरान ब्रज के सभी प्राचीन मंदिरों में परंपरानुसार गोस्वामी समाज के लोग सुबह-शाम ‘होरी गीतों’ से सजे कार्यक्रमों में भाग लेंगे।

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