नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों जैसे प्रमुख सचिवों और जिला मजिस्ट्रेटों की पत्नियां सहकारी समितियों में पदधारी बनें, इस स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए राज्य से नियमों में बदलाव करने को कहा, क्योंकि यह 'औपनिवेशिक मानसिकता' को दर्शाता है।
'यूपी सरकार अगली सुनवाई तक प्रस्ताव प्रस्तुत करें': कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति सूर्याकांत और उज्जल भुइयां की बेंच ने यूपी सरकार के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज की तरफ से दी गई इस दलील पर आपत्ति जताई कि राज्य को इन समितियों से प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। न्यायमूर्ति सूर्याकांत ने कहा, 'उन्हें इस औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आना होगा। राज्य को इन प्रकार की समितियों के लिए मॉडल नियम तैयार करने होंगे।'
पीठ ने कहा कि सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत, जिन समितियों को राज्य सरकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं, उन्हें राज्य सरकार की तरफ से जारी किए गए मॉडल बाय-लॉज/नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि यदि इन मॉडल बाय-लॉज का पालन नहीं किया जाता है या इनका उल्लंघन होता है, तो उस समिति का कानूनी अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। पीठ ने कहा कि यह विधानसभा का काम है कि वह उचित संशोधन लाए और गर्वनिंग बॉडी के गठन और उसके सदस्य कैसे चुने जाएंगे, इस पर नए तरीके का प्रस्ताव तैयार किया जाए। कोर्ट ने यूपी सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर अगले सुनवाई तक प्रस्ताव प्रस्तुत करें।
बुलंदशहर के जिला महिला समिति से जुड़ा मामला
यह मामला बुलंदशहर के जिला महिला समिति से संबंधित था, जो 1957 से काम कर रही है। समिति को जिला प्रशासन की तरफ से 'नजूल' भूमि दी गई थी ताकि वह विधवाओं, अनाथों और अन्य पिछड़ी महिलाओं के कल्याण के लिए काम करे। समिति के मूल बाय-लॉज में यह था कि बुलंदशहर के जिलाधिकारी की पत्नी को अध्यक्ष के रूप में कार्य करना था, लेकिन 2022 में समिति ने इसे बदलते हुए जिलाधिकारी की पत्नी को 'संरक्षक' बनाने का प्रस्ताव किया था।
डीएम की पत्नी के सहकारी समिति के काम में हस्तक्षेप पर रोक
हालांकि, उप रजिस्ट्रार ने इन संशोधनों को कई आधारों पर रद्द कर दिया, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके बाद समिति ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। सोमवार को बेंच ने कहा कि समिति पहले की तरह काम करती रहेगी, लेकिन जिलाधिकारी की पत्नी को कोई पदधारी बनने या सहकारी समिति के काम में हस्तक्षेप करने से रोक दिया गया। कोर्ट ने समिति को यह भी निर्देश दिया कि वह 'नजूल' भूमि या अन्य राज्य की तरफ से सौंपी गई संपत्ति पर कोई भी तीसरे पक्ष के अधिकार या कोई रुकावट न पैदा करे।
कोर्ट ने राज्य सरकार पर की थी कड़ी टिप्पणी
6 मई को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया था जब उसने एक विचित्र नियम को मंजूरी दी थी, जिसके तहत बुलंदशहर के जिलाधिकारी की पत्नी को जिले की रजिस्टर्ड सोसाइटियों का अध्यक्ष बनने का प्रावधान था। कोर्ट ने इसे 'भयानक' और 'राज्य की सभी महिलाओं के लिए अपमानजनक' करार दिया था। कोर्ट ने पूछा था, 'चाहे वह रेड क्रॉस सोसाइटी हो या बाल कल्याण सोसाइटी, हर जगह जिलाधिकारी की पत्नी अध्यक्ष क्यों होती हैं? इसका क्या कारण है?'