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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में भाजपा और बसपा की चुनौती से निपटने के लिए समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन लगभग तय है, लेकिन राष्ट्रीय लोकदल के भी महागठबंधन में शामिल होने को लेकर फिलहाल स्थिति साफ़ नहीं है। इस गठबंधन में सीटों के बंटबारे को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है. समाजवादी पार्टी 403 में से 300 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और शेष बची सीटें ही सहयोगी दलों को देना चाहती है, जबकि कांग्रेस 110 सीटों की मांग कर रही है। उधर रालोद भी 35 सीटें चाह रही है। सपा ने अभी तक रालोद से इस मुद्दे पर सीधे बात नहीं की है, पर कांग्रेस द्वारा उसे गठबंधन में शामिल करने पर रालोद को भी कम से कम 20 तो देनी पड़ेगी। वर्ष 2012 में कांग्रेस से गठबंधन पर रालोद ने 45 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें नौ सीटों पर जीते और 12 पर दूसरे नंबर पर रही थी। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 28 सीटें मिली थी। वहीं पार्टी के उम्मीदवार लगभग 31 सीटों पर दूसरे नंबर रहे थे। सपा का कहना है कि अगर इस फार्मूले को माना जाये तो कांग्रेस सिर्फ 60 सीटों की हकदार बनती है। फिर भी हम ज्यादा सीट दे रहे हैं। सपा के नेताओं का कहना है कि उसके पास 228 विधायकों का साथ है। साथ ही 12 निर्दलीय विधायक भी साथ है। ऐसे में उनकी 240 सीटों पर अकेले दावेदारी बनती है। ऐसे में वे कैसे कांग्रेस को 100 से ज्यादा सीटें दे सकते हैं। सपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस जवाब दे देती है तो बृहस्पतिवार को इसका एलान हो जाएगा।

दरअसल, चुनाव आयोग में साइकिल की जंग जीतने के बाद समाजवादी पार्टी के हौंसले बुलंद है। वे कांग्रेस के साथ अपनी शर्तों पर गठबंधन करना चाहती है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव महागठबंधन का स्वरूप तय कर रहे हैं। वे कांग्रेस को 90 सीटें देने के लिए तैयार हैं, पर वह सौ से अधिक सीटें चाह रही है। यदि रालोद को भी गठबंधन में शामिल किया जाता है तो उसे कम से कम 20 सीटें देनी होंगी। इसके अलावा कुछ अन्य छोटे दलों को भी पांच से सात सीटें देनी होंगी। यदि इन दलों की मांग के मुताबिक सीटें दी जाती हैं तो समाजवादी पार्टी को अपने हिस्से की तय तीन सौ में से करीब 25 सीटें देनी होंगी। वास्तव में यूपी में कांग्रेस और सपा दोनों को ही गठबंधन करने की जरूरत है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगा और अखलाक हत्याकांड के कारण समाजवादी पार्टी को नुकसान होता दिख रहा है। सपा को अपने पारंपरिक अल्पसंख्यक वोट खिसकते हुए दिख रहे हैं। दूसरी तरफ बसपा की नजर इन वोटों पर है। इन हालात में सपा को इस वोट बैंक को अपने हक में करने के लिए कांग्रेस और इस जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों से गठबंधन करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 73 सीटों पर जीत हासिल की। इन परिणामों ने साफ कर दिया कि यूपी में सपा और कांग्रेस का जनाधार घट गया है। विकास के मुद्दे पर अखिलेश मजबूत हैं। यूपी का विकास उन्हें फायदा पहुंचाएगा लेकिन यह कठिन चुनावी वैतरणी पार करने के लिए उन्हें अन्य दलों के सहारे की जरूरत तो पड़ेगी ही। सहयोगियों के लिए कुछ सीटों की कुरबानी भी देनी पड़ सकती है।

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