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मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें निर्माण श्रमिकों की पंजीकरण प्रक्रिया को चुनाव आचार संहिता के कारण निलंबित कर दिया गया था। अदालत ने कहा कि चुनाव आचार संहिता के दौरान कोई भी कानूनी काम नहीं रुकना चाहिए। हालांकि चुनाव प्रचार से जुड़ी गतिविधियों पर रोक लगाई जा सकती है।

'बिना रोक-टोक जारी रहे सरकारी योजनाओं का संचालन'

न्यायमूर्ति सोमासेकर सुंदरसेन और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की पीठ ने यह आदेश छह नवंबर को दिया। अदालत ने कहा, आचार संहिता में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है, जो जारी कानूनी कार्यों में दखल दे। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनावी आचार संहिता के दौरान केवल राजनीतिक समारोहों और प्रचार की गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जा सकता है। लेकिन सरकारी योजनाओं का संचालन बिना किसी रोक-टोक के चलता रहना चाहिए।

श्रमिक संघों ने दायर की उच्च न्यायालय में याचिका

उच्च न्यायालय का यह आदेश तब आया, जब महाराष्ट्र सराकर ने निर्माण श्रमिकों के पंजीकरण और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को चुनाव आचार संहिता के कारण निलंबित कर दिया था। कई श्रमिक संघों ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि इस निलंबन से श्रमिकों को उनका हक और पैसा नहीं मिल रहा है।

'पूरे साल चलनी चाहिए निर्माण श्रमिकों की पंजीकरण प्रक्रिया'

अदालत ने कहा कि निर्माण श्रमिकों की पंजीकरण प्रक्रिया पूरे साल चलनी चाहिए, ताकि संसद द्वारा तय लक्ष्यों को पूरा किया जा सके। अदालत ने यह भी कहा कि कोई नई नीति या योजनाओं में बदलाव चुनाव आचार संहिता के दौरान नहीं किया जा सकता। लेकिन पुराने कल्याणकारी कार्यों को निरंतर जारी रखा जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने इस आदेश के साथ महाराष्ट्र सरकार की ओर से जारी किए गए नोटिस को रद्द कर दिया और कहा कि सार्वजनिक प्रचार और गतिविधियां न्यूनतम स्तर तक सीमित रखी जाएं। साथ ही, ये गतिविधियां किसी भी प्रकार के राजनीतिक समारोह या प्रचार से जुड़ी नहीं होनी चाहिए।

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