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मुंबई: रिजर्व बैंक के नये गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व में हुई पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में आज नीतिगत ब्याज दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की बहुप्रतीक्षित कटौती कर दी गई। नवगठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के तहत हुई इस पहली समीक्षा में समिति के सभी छह सदस्य दरों में कटौती के पक्ष में रहे। इस कटौती के बाद आरबीआई की रेपो दर 6.25 प्रतिशत रह गयी है जो पिछले छह साल का इसका न्यूनतम स्तर है। यह वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को उनकी फौरी नकदी जरूरतों के लिये नकदी उपलब्ध कराता है। इसमें कटौती से बैंकों के कोष की लागत कम होगी और वे निजी एवं वाणिज्यिक कार्यों के लिये लिये जाने वाले कर्जों को सस्ता करने की स्थिति में होंगे। लघु बचत योजनाओं की दरों में कटौती से बैंक कर्ज सस्ता करने को प्रोत्साहित होंगे। छह महीने में रेपो दर में यह पहली कटौती है। उद्योग और व्यवसाय जगत लंबे समय से इसकी मांग करता आ रहा था। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के जाने के बाद नीतिगत दर में कटौती की उम्मीद बढ़ी थी। राजन के उपर कई बार आरोप लगाये गये कि उन्होंने नीतिगत दर को उंचा रखकर वृद्धि की संभावनाओं को प्रभावित किया। मौद्रिक समिति के फैसले के बाद रेपो दर 6.25 प्रतिशत रह गयी और इसी के अनुसार रिवर्स रेपो दर 5.75 प्रतिशत पर आ गयी। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की चौथी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा, ‘एमपीसी का यह निर्णय नरम मौद्रिक नीति के रूख के अनुरूप है। साथ ही वृद्धि को समर्थन देने के साथ 2016-17 की चौथी तिमाही में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति 5.0 प्रतिशत के स्तर पर रखने तथा मध्यम अवधि में दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4.0 प्रतिशत के लक्ष्य की दिशा में है।’

समिति के सभी छह सदस्यों ने नीतिगत दर में कटौती के पक्ष में मतदान किया। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने आगाह करते हुए कहा कि निजी निवेश धीमा पड़ने तथा कमजोर वैश्विक मांग के साथ भू-राजनीतिक संकट को देखते हुए अगले साल वृद्धि को लेकर जोखिम है। लेकिन केंद्रीय बैंक चालू वित्त वर्ष के लिये संसद द्वारा निर्धारित मुद्रास्फीति के 2-6 प्रतिशत के लक्ष्य को लेकर आशान्वित है। केंद्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कहा, ‘2016-17 के लिये मुद्रास्फीति परिदृश्य में सुधार हुआ है लेकिन चार प्रतिशत की संभावना को प्राप्त करने के लिये कड़ी नजर रखने की जरूरत है। खपत में अच्छी वृद्धि से 2016-17 में वास्तविक सकल मूल्य वर्धन वृद्धि (जीवीए) को लेकर परिदृश्य मजबूत हुआ है लेकिन कमजोर निजी निवेश तथा कमजोर वैश्विक मांग 2017-18 में वृद्धि की गति को थाम सकती है।’ चेतावनी के बावजूद रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में जीवीए वृद्धि 7.6 प्रतिशत तथा अगले वित्त वर्ष में 7.9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। केंद्रीय बैंक ने कहा कि संवेदनशील जिंस में शामिल दाल, फल, सब्जी एवं अनाज बताते हंै कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में मौसमी वृद्धि जुलाई में उच्चतम स्तर पर थी। रिजर्व बैंक ने उम्मीद जतायी कि मार्च 2017 में तुलनात्मक आधार में बदलाव के बावजूद तीसरी तिमाही में खाद्य मुद्रास्फीति में सुस्ती तथा चौथी तिमाही की शुरूआत में आम तौर पर खाद्य कीमतों में होने वाली नरमी को देखते हुए महंगाई दर की यह प्रवृत्ति जारी रह सकती है। इससे मुद्रास्फीति के निकट भविष्य में परिदृश्य में उल्लेखनीय सुधार होगा। शीर्ष बैंक ने यह भी उम्मीद जतायी कि साल की शेष तिमाही के दौरान जिंसों के दाम नियंत्रण में रहेंगे। केंद्रीय बैंक के यह विचार कीमतों को लेकर परिवारों की उम्मीद में आये सुधार पर आधारित हैं। सितंबर महीने में रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति की उम्मीद को लेकर किये गये सर्वे में इसके तीसरी तिमाही में 9.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था जबकि एक साल पहले यह 11.4 प्रतिशत था। इसके विपरीत थोक मुद्रास्फीति को लेकर संभावना ज्यादा सकारात्मक है। रिजर्व बैंक के सितंबर दौर के औद्योगिक परिदृश्य सर्वे से पता चलता है कि प्रतिभागियों का बड़ा हिस्सा तीसरी तिमाही में कच्चे माल के उंचे दाम की उम्मीद कर रहा है। सर्वे माल बिक्री की उंची कीमतों की संभावना को लेकर भी उनकी धारण में कमी का संकेत देता है। भविष्य के बारे में अनुमान व्यक्त करने वाले पेशेवरों के सितंबर के सर्वेक्षण दौर में मुद्रास्फीति को लेकर उनकी प्रत्याशा थमी हुई है। उन्हें लगता है कि यह रिजर्व बैंक के लक्ष्य के ईद-गिर्द रहेगी। उनका अनुमान है कि मुद्रास्फीति चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में नरम होकर 4.7 प्रतिशत रहेगी और 2017-18 की दूसरी तिमाही में 4.4 प्रतिशत रहेगी। रिजर्व बैंक ने कहा कि इस अनुमान में सातवें वेतन आयोग की वेतन और पेंशन को लेकर सिफारिशों को ध्यान में रखा गया है जिसका असर सकल मांग पर पड़ेगा। इसका 2016-17 की चौथी तिमाही से औसत मुद्रास्फीति पर 0.1 प्रतिशत प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा अनुमान में न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि प्रस्ताव का लागत आधारित प्रभाव भी शामिल किया गया है। इसका क्रियान्वयन में दो महीने के भीतर 0.05 प्रतिशत का इजाफा होगा। मुद्रास्फीति पर जीएसटी प्रभाव के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि आकलन के आधार पर वस्तु एवं सेवा कर :जीएसटी: अप्रैल 2017 से लागू होगा और अन्य देशों के अनुभव को देखते हुए इसका प्रभाव करीब 12 से 18 महीने रह सकता है। मौद्रिक नीति रिपोर्ट के अनुसार, ‘जीएसटी का सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) आधारित मुद्रास्फीति पर प्रभाव व्यापक रूप से जीएसटी परिषद द्वारा निर्धारित मानक दर पर निर्भर करेगा।’ वृद्धि के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि संतोषजनक मानसून तथा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन से शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग व्यय बढ़ेगा। अगस्त-सितंबर में किये गये सर्वे में सामान्य आर्थिक परिदृश्य पर उपभोक्ताओं के बीच भरोसा पाया गया लेकिन भविष्य में आय एवं रोजगार को लेकर कुछ कम विश्वास दिखा। केंद्रीय बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्पादन, क्षमता उपयोग, रोजगार तथा वित्त की उपलब्धता के संदर्भ में संभावनाओं में सुधार पर रिजर्व बैंक के औद्योगिक परिदृश्य सर्वे में निजी निवेश गतिविधियां नरम बनी हुई है लेकिन कंपनी व्यापार को लेकर उम्मीदें उत्साहजनक बनी हुई है। इसमें कहा गया है, ‘मध्यम अवधि में जीएसटी क्रियान्वयन से व्यापार विश्वास और निवेश को गति मिलनी चाहिए तथा वृद्धि में तेजी लाने के लिये माहौल बेहतर होना चाहिए।’ रिपोर्ट के अनुसार रक्षा, नागर विमानन, औषधि तथा प्रसारण क्षेत्रों में एफडीआई आकर्षित करने के लिये उठाये गये कदम, बुनियादी ढांचे में सुधार के उपाय तथा दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता तथा रीयल एस्टेट (नियमन एवं विकास) कानून के लागू होने से उद्यमियों की उर्जा तथा वृद्धि के द्वार को खोलेगा। वृद्धि के लिये वैश्विक मोर्चे पर चुनौतियों के बारे में रिपोर्ट में आठ नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम के साथ अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर में वृद्धि की बातों का उल्लेख है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसका घरेलू मुद्रास्फीति तथा वृद्धि के साथ वैश्विक तथा घरेलू वित्तीय बाजारों खासकर विदेशी मुद्रा बाजार, इक्विटी तथा बांड खंड पर प्रभाव होगा।’

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