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नई दिल्ली: सहकारी बैंकों के विनियमन में रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अधिक अधिकार देने से संबंधित बैंकिंग विनियम (संशोधन) विधेयक, 2020 आज लोकसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विधेयक पर सदन में 3 घंटे तक चली चर्चा का जवाब देते हुये कहा “सहकारी बैंकों का विनियमन 1965 से ही आरबीआई के पास है। हम कुछ नया नहीं कर रहे। जो नया कर रहे हैं वह जमाकतार्ओं के हित में है। ...यह कानून जमार्कतार्ओं की रक्षा के लिए लाया गया है।”

सीतारमण ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में किसानों और गरीबों को ऋण उपलब्ध कराने में सहकारी बैंकों के योगदान को भूलाया नहीं जा सकता, लेकिन यह भी नहीं भूला जा सकता कि पिछले दो दशक में 430 सहकारी बैंकों का लाइसेंस रद्द हुआ है और परिसमापन करना पड़ा है। इस दौरान एक भी वाणिज्यिक बैंक परिसमापन में नहीं गया है क्योंकि उनके जमाकतार्ओं को बैंकिंग विनियमन अधिनियम का संरक्षण प्राप्त था। इसलिए इस अधिनियम के दायरे में सहकारी बैंकिंग गतिविधियों को भी लाने की जरूरत थी। 

 

इन संशोधनों के अध्यादेश लाने की आवश्यकता के बारे में वित्त मंत्री ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान सहकारी बैंकिंग की वित्तीय स्थिति खराब होने का डर था। इस स्थिति में जमाकतार्ओं के हितों की रक्षा के लिए अध्यादेश लाना जरूरी था क्योंकि उस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा था।  उन्होंने स्प्ष्ट किया कि इन संशोधनों से सहकारी बैंकों के सदस्यता ढाँचे में कोई बदलाव नहीं किया जायेगा। सभी सदस्यों को पहले की तरह समान मताधिकार मिलता रहेगा। 

विपक्ष की सभी आशंकाओं का एक-एक कर जवाब देते हुये निर्मला ने कहा कि यह कानून केंद्र सरकार को सहकारी बैंकों के विनियमन का अधिकार नहीं देता। यह सिर्फ आरबीआई को सहकारी बैंकों की बैंकिंग गतिविधियों के विनियमन का अधिकार देता है। हालांकि, उन्होंने पंजाब एंड महाराष्ट्र सहकारी (पीएमसी) बैंक के बारे में अपने जवाब में कोई जिक्र नहीं किया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना सदस्यों ने चर्चा  के दौरान यह मुद्दा उठाया था।

विपक्ष ने इस विधेयक को सहकारी संगठनों को लेकर राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप बताया था। कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने आरोप लगाया कि सरकार सहकारी बैंकों के निजीकरण का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि इससे सहकारी बैंकों की स्वायत्तता खतरे में पड़ जायेगी।

 

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