गुरुग्राम (हरियाणा): वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ऋण वसूली मामलों के तेजी से निपटान पर जोर दिया है। उन्होंने कहा है कि बैंकों का कर्ज लेकर समय पर नहीं लौटाने वालों को नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के तहत बचाव के असीमित अवसर नहीं दिये जा सकते हैं। जेटली ने कहा, ‘यह सामान्य न्यायिक अथवा अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया नहीं है जिसमें लोगों को बचाव के लिये असीमित अवसर दिये जाते हैं क्योंकि स्वाभाविक न्याय प्रक्रिया को अस्वाभाविक तरीके से लंबा खींचा जायेगा तो विवाद कभी समाप्त नहीं होंगे। इसलिये जहां तक कर्ज नहीं लौटाने के मामले हैं उनमें वसूली प्रक्रिया को और बेहतर और सक्षम बनाना होगा।’ देशभर में विभिन्न ऋण वसूली न्यायाधिकरणों में पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि के करीब 95,000 मामले लंबित हैं। जेटली ने आज यहां ऋण वसूली पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, ‘इसलिये हर ऐसे मामले में जहां संबंधित पक्ष मामले को लंबा खींचने में कामयाब रहता है देश के निवेश परिवेश को नुकसान पहुंचाता है। बैंकों का पैसा यदि इस तरह डिफाल्टरों के पास फंसा रहेगा तो बैंक दूसरों को कर्ज नहीं दे पायेंगे। दूसरे लोग इस धन को उत्पादक कार्यों में इस्तेमाल कर सकते थे, जिसका देश को फायदा मिलता।’ वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार का इरादा कानूनी बदलावों के साथ बैंकों को ज्यादा अधिकार देकर वसूली प्रक्रिया को अधिक दक्ष और प्रभावी बनाने का है।
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता में बदलाव करने के अलावा प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों का पुनर्गठन एवं प्रतिभूति हितों का प्रवर्तन (सरफेसई) कानून और रिण वसूली कानून में भी संशोधन किया है। जेटली ने कहा कि इस मामले में रिजर्व बैंक ने भी सक्रिय भूमिका निभाई है। रिजर्व बैंक ने इस मामले में रिण पुनर्गठन और प्रबंधन में बदलाव के लिये बैंकों के लिए अधिक लचीलेपन वाली नीतियों को जारी किया है। वसूली कानून में हाल में जो बदलाव किये गये हैं उनमें रिण वसूली मामलों के निपटान के लिये समयसीमा तय की गई है और फंसे कर्ज के समाधान में तेजी लाने के लिये कारोबार सुगमता को बेहतर बनाने पर भी जोर दिया गया है। इसके साथ ही प्रतिभूति हितों का प्रवर्तन और ऋण वसूली कानून एवं विविध प्रावधान (संशोधन) कानून 2016 में प्रतिभूति हितों की परिभाषा का विस्तार किया गया है। डिबेंचर ट्रस्टी को शामिल करने के साथ-साथ इसमें संपत्ति पुनर्गठन कंपनियों की मजबूती पर जोर दिया गया है। सूत्रों ने बताया कि इसमें बैंकों, वित्तीय संस्थानों, संपत्ति पुनर्गठन कंपनियों, डिबेंचर ट्रस्टियों को कर्जदार के किसी भी अन्य भुगतान के समक्ष प्राथमिकता का प्रावधान किया गया है। इसमें केन्द्र और राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों के कर भुगतान से पहले बैंकों के कर्ज को प्राथमिकता दी जायेगी। नये प्रावधानों के मुताबिक अब जिला मजिस्ट्रेट को बैंकों और वित्तीय संस्थानों के आवेदन पर 30 दिन की तय समयसीमा के भीतर फैसला करना होगा।