नई दिल्ली : वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) प्रणाली के लिये चार स्तरीय कर दरें तय करने के बाद शुक्रवार को केन्द्र और राज्यों के बीच विभिन्न करदाता इकाइयों पर अधिकार क्षेत्र को लेकर सहमति नहीं बन सकी। इससे जीएसटी को एक अप्रैल 2016 से लागू करने के प्रयासों को झटका लग सकता है। जीएसटी लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली जीएसटी परिषद की आज दूसरे दिन की बैठक में करदाता इकाइयों पर अधिकार क्षेत्र को लेकर सहमति नहीं बन सकी। किस तरह की इकाइयां राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आयेंगी और किस तरह की इकाइयों पर पर केन्द्र सरकार का अधिकार होगा, इस बारे में कोई निर्णय नहीं हो सका। परिषद की कल से शुरू हुई दो दिवसीय बैठक के पहले दिन गुरुवार को जीएसटी के लिये पांच, 12, 18 और 28 प्रतिशत की चार स्तरीय कर दरों का अहम् फैसला किया गया। परिषद की अब 9 और 10 नवंबर को होने वाली बैठक को निरस्त कर दिया गया है। इस बैठक में जीएसटी को समर्थन देने वाले विधेयकों के मसौदों को अंतिम रूप दिया जाना था। राज्यों के वित्त मंत्रियों की इस मुद्दे पर अब 20 नवंबर को अनौपचारिक बैठक होगी। वित्त मंत्री अरण जेटली की अध्यक्षता में जीएसटी परिषद की अगली बैठक अब 24-25 नवंबर को होगी। जेटली ने इससे पहले उम्मीद जताई थी कि जीएसटी से जुड़े दूसरे विधेयकों को 22 नवंबर तक अंतिम रूप दे दिया जायेगा।
हालांकि, आज की बैठक में इस संबंध में निर्णय नहीं होने के बावजूद उन्हें अभी भी उम्मीद है कि इन विधेयकों को 16 नवंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में पारित करा लिया जायेगा। जेटली से जब यह पूछा गया कि केन्द्रीय जीएसटी और एकीकृत जीएसटी विधेयकों को क्या संसद के आगामी सत्र में पारित करा लिया जायेगा? जवाब में वित्त मंत्री ने कहा, ‘यही प्रयास है। हम इसके लिये प्रयास कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘अगस्त के महीने में जब हमने संविधान संशोधन विधेयक पारित किया था उस समय यह काम काफी चुनौतीपूर्ण लग रहा था क्योंकि समय बहुत कम लग रहा था। लेकिन आज मैं अगस्त के मुकाबले अधिक विश्वास में हूं। मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूं कि काफी काम हमने निपटा दिया है, कई फैसले हो चुके हैं और केवल एक महत्वपूर्ण फैसला बाकी रह गया है।’ जेटली ने कहा कि केन्द्रीय जीएसटी, एकीकृत जीएसटी और राज्य जीएसटी तथा क्षतिपूर्ति विधेयकों के मसौदे राज्यों को 15 नवंबर के बाद भेज दिये जायेंगे। उसके बाद 24-25 नवंबर की बैठक में जीएसटी परिषद इन्हें मंजूरी दे देगी। इस दौरान अधिकार क्षेत्र से जुड़े मुद्दे पर सहमति बनाने के लिये वित्त मंत्रियों की एक अनौपचारिक बैठक 20 नवंबर को होगी। जेटली ने कहा, ‘जो भी विकल्प हम चुनेंगे, हम इसे जल्दबाजी में नहीं करना चाहेंगे। यह सब सोच समझकर करना होगा, क्योंकि इसमें यदि कोई प्रशासनिक गलती होती है तो स्थिति बिगड़ सकती है। इसलिये हम इस पर धीरे धीरे और सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ रहे हैं।’ वित्त मंत्री ने कहा कि मामला काफी पेचीदा है इसलिये केन्द्र और राज्य जल्दबाजी नहीं करना चाहते हैं क्योंकि परिणाम के बारे में अभी पता नहीं है। सूत्रों के मुताबिक केन्द्र का मानना है कि अधिकार क्षेत्र के मामले में समानांतर व्यवस्था इकतरफा रहेगी। सेवाकरदाताओं में 93 प्रतिशत और वैट देने वाले 85 प्रतिशत करदाताओं का सालाना कारोबार डेढ करोड़ से कम है। जीएसटी परिषद यह भी मानती है कि वस्तु एवं सेवाओं के बीच स्पष्ट अंतर करना भी काफी मुश्किल काम है क्योंकि कार्य अनुबंध, निर्माण अनुबंध और रेस्तरां आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां वैट और सेवाकर दोनों लगते हैं। जेटली ने कहा कि 22 सितंबर के बाद से जीएसटी परिषद ने 10 महत्वपूर्ण फैसले लिये हैं। कर अधिकार क्षेत्र के बारे में जेटली ने कहा कि कोई एक करदाता कई अधिकारियों की ओर से आकलन का पात्र नहीं हो सकता है। वित्त मंत्री ने कहा कि राज्यों ने सेवाकर दाताओं के बारे में जानकारी मांगी है। जीएसटीएन इन आंकडों को अद्यतन कर रहा है। जीएसटी परिषद पहले ही यह निर्णय कर चुकी है कि 20 लाख रपये सालाना कारोबार करने वाले व्यापारियों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जायेगा। डेलायट हास्किंस एण्ड सेल्स एलएलपी के भागीदार प्रशांत देशपांडे ने कहा कि केन्द्रीय जीएसटी, एकीकृत जीएसटी और राज्य जीएसटी के मसौदे 14-15 नवंबर तक तैयार हो जायेंगे और उन्हें सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध करा दिया जायेगा।