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बीजिंग: अमेरिका द्वारा भारत के एनएसजी क्लब में दाखिले के समर्थन के बाद चीन इस मामले में कड़ा रुख अपनाता दिख रहा हैं। रविवार को चीन ने कहा कि कौन सा देश परमाणु तकनीक से जुड़े सभी संवेदनशील पहलुओं का संचालन करने वाले इस समूह का हिस्सा बन सकता है और कौन सा नहीं, इस फैसले कि लिए आम सहमति का बनना जरूरी है। चीन ने कहा कि इसके लिए और अधिक संवाद की जरूरत है। गौरतलब है कि 48 देशों वाले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत के शामिल होने की अर्जी का चीन पक्का विरोधी बताया जा रहा है। हालांकि अमेरिका ने इस मामले में भारत के साथ खड़े होने की बात कही है लेकिन कूटनीतिज्ञों के मुताबिक न्यूज़ीलैंड, तुर्की, साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रिया भी भारत के दाखिले का विरोध कर रहे हैं। गौरतलब है कि एनएसजी ऐसे देशों का संगठन है, जिनका लक्ष्य परमाणु हथियारों और उनके उत्पादन में इस्तेमाल हो सकने वाली तकनीक, उपकरण, सामान के प्रसार को रोकना या कम करना है। हालांकि नई दिल्ली को इस समूह की सदस्यता से जुड़े कई फायदे एनएसजी नियमों के तहत 2008 की छूट के दौरान ही मिल गए थे जब वॉशिंगटन के साथ भारत की परमाणु संधि हुई थी। हालांकि भारत ने अभी तक परमाणु अप्रसार संधि या एनपीटी पर दस्तखत नहीं किया है जिसका काम परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देना है।

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक ऑनलाइन बयान में कहा है 'गैर एनपीटी देशों के एनएसजी क्लब में दाखिल होने के मुद्दे को लेकर अभी भी काफी मतभेद है।' बयान में कहा गया है कि 'गैर एनपीटी देशों को शामिल कनरे के मुद्दे पर चीन लगातार यही राय रखता आ रहा है कि इस पर ज्यादा से ज्यादा चर्चा और विचार होना चाहिए जिसके बाद सर्वसम्मति से एक फैसला लिया जाना चाहिए।' आलोचकों का कहना है कि भारत को सदस्यता देने का मतलब परमाणु प्रसार को रोकने की कोशिश में रुकावट पैदा होगी। इससे पाकिस्तान भी विचलित हो सकता है जिसने भारत के इस कदम के जवाब में अपनी ओर से भी सदस्यता की अर्जी दी है जिसे चीन का समर्थन हासिल है। पाकिस्तान के रिकॉर्ड को देखते हुए उसका सदस्यता हासिल करना कईयों को स्वीकार्य नहीं होगा।

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