इस्लामाबाद: पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के जनक अब्दुल कदीर खान ने कहा है कि पाकिस्तान के पास 1984 में परमाणु परीक्षण करने की क्षमता थी और उसने योजना भी बनाई थी। लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक ने इस विचार का विरोध किया, क्योंकि इससे पाकिस्तान को मिल रहे उस अंतर्राष्ट्रीय सहायता में कटौती हो जाती, जो उसे अफगानिस्तान पर सोवियत संघ के कब्जे की वजह से मिल रहा थी। ‘डॉन’ ने खान के हवाले से कहा है, ‘‘हम लोग सक्षम थे और हमने वर्ष 1984 में परमाणु परीक्षण करने की योजना बनाई थी, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया ने इसका विरोध कर दिया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जनरल जिया का विचार था कि यदि पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया तो दुनिया पाकिस्तान की सैन्य सहायता रोक देगी।’’ खान ने यह भी कहा कि पाकिस्तान पांच मिनट में काहुता से नई दिल्ली को निशाना बनाने में समर्थ था।’’ काहुता पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक शहर है। खान ने यह भी कहा, ‘‘मेरी सेवा के बगैर पाकिस्तान कभी भी परमाणु शक्ति संपन्न पहला मुस्लिम राष्ट्र नहीं बन पाता। हम लोग बहुत कठिन परिस्थतियों में यह क्षमता हासिल करने में समर्थ थे, लेकिन हमने यह किया।’’ खान पाकिस्तान के परमाणु संपन्न देश बनने के अवसर यौम-ए-तकबीर पर एक सभा को संबोधित कर रहे थे।
मुशर्रफ के कार्यकाल में अपने साथ हुए व्यवहार के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘‘परमाणु वैज्ञानिकों को देश में वह सम्मान नहीं दिया जाता, जिसके वे हकदार हैं।’’ खान ने कहा, ‘‘हम लोगों ने अपने देश के परमाणु कार्यक्रम को जो सेवा दी, उसके बदले सबसे खराब दौर का सामना कर रहे हैं।’’ वर्ष 2००4 में हुए एक बड़े परमाणु प्रसार स्कैंडल के केंद्र में कदीर ही थे। श्रृंखलाबद्ध नाटकीय घटनाक्रमों में तत्कालीन सेना प्रमुख एवं राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने खान को परमाणु प्रसार का एक खतरनाक नेटवर्क संचालित करने का आरोपी बताया था। मुशर्रफ की इस घोषणा के कुछ ही दिनों बाद खान का रिकॉर्ड किया हुआ एक बयान प्रसारित हुआ था, जिसमें उन्होंने परमाणु प्रसार की जितनी भी जानकारियां मिली थी उसकी पूरी जिम्मेदारी अकेले ली थी।