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नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम आरक्षण वापस लेने के मामले में कर्नाटक सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई है। कोर्ट की फटकार के बाद कर्नाटक सरकार ने कहा है कि मुस्लिमों से चार फीसदी ओबीसी आरक्षण वापस लेने के फैसले पर अमल नहीं करेगी। अदालत ने कोटा खत्म करने की याचिका पर सरकार से स्टैंड मांगा है। मुस्लिम लंबे समय से इस आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि ये फैसला भ्रामक अनुमानों पर आधारित है। आपके निर्णय लेने की प्रक्रिया का आधार त्रुटिपूर्ण और अस्थिर लगता है।

अदालत कर्नाटक सरकार के फैसले पर लगाना चाहता था रोक

सुप्रीम कोर्ट सरकार के फैसले पर रोक लगाना चाहता था लेकिन एसजी ने कोर्ट में आश्वासन दिया कि आज और मंगलवार के बीच कुछ भी अपरिवर्तनीय नहीं होगा। सरकार के नए नोटिफिकेशन के आधार पर कोई दाखिला या नियुक्ति नहीं होगी। हम कुछ दिन में जवाब दाखिल कर देंगे। 17 अप्रैल के हफ्ते में सुनवाई कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह सरकार के फैसले पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि चिनप्पा रेड्डी की रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया कि मुसलमान पिछड़े हैं। मैं आयोग की कुछ और रिपोर्ट पेश करूंगा। मुस्लिम जो ओबीसी हैं, उन्हें पहले से ही आरक्षण मिल रहा है। मुस्लिम ओबीसी को पहले से ही आरक्षण मिल रहा है। धर्म आधारित आरक्षण नहीं होना चाहिए। हलफनामा दायर करने की अनुमति के बिना कोई आदेश पारित न करें।

याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा?

अंजुमन-ए-इस्लाम संस्था की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि 1992 से मुस्लिम पिछड़ा वर्ग में था। अब 2023 में 30 साल बाद सामान्य वर्ग में आ गया। ये सीधे सीधे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश दुष्यंत दवे ने कहा कि मुस्लिमों का कोटा दूसरों को दे दिया गया। कानून के मुताबिक आयोग का गठन किया जाना चाहिए। फिर अनुभवजन्य डेटा इकट्ठा किया जाना चाहिए। आरक्षण दिए जाने के 50 साल बाद, मुसलमानों के लिए आरक्षण चुनाव से पहले हटा दिया गया। वोक्कालिगा और लिंगायत को दिया गया। यह इंदिरा साहनी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लंघन है। इस अदालत को ध्यान देना चाहिए कि यह चुनाव की घोषणा से दो दिन पहले किया गया था।

क्या है पूरा मामला?

25 मार्च को कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार ने 2(बी) श्रेणी को ख़त्म कर दिया था और कहा था कि पहले मुसलमानों को दिया गया 4% आरक्षण अब लिंगायत और वोक्कालिगा के बीच समान रूप से वितरित किया जाएगा। कर्नाटक में मई में चुनाव होने हैं। कर्नाटक के बेल्लारी के रहने वाले एल गुलाम रसूल ने कर्नाटक सरकार के इस फैसले को चुनौती दी है। उसके साथ ही अंजुमन-ए-इस्लाम संस्था द्वारा सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल की गई है।

याचिका मे दलील दी गई है कि कर्नाटक सरकार का मुस्लिम समुदाय को पिछड़े वर्ग की सूची से बाहर करने का फैसला संविधान का उल्लंघन है। यह फैसला पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा दिए गए किसी भी रिपोर्ट या सलाह पर आधारित नहीं है, जो कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1995 के तहत एक वैधानिक रूप में जरूरी है। मुस्लिम समुदाय को इस आधार पर पिछड़े वर्गों की सूची से बाहर करने का निर्णय कि संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है, पूरी तरह से गलत है। राज्य सरकार के इस फैसले को याचिका में राजनीति से प्रेरित बताया गया है।

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