बेंगलुरू: कर्नाटक में एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने छापेमारी शरू की तो निचले और मध्यम दर्जे के अधिकारियों के घरों से आभूषणों का अंबार मिला। कलबुर्गी जिले में एक इंजीनियर के घर मे लगे पाइप से तो नोटों की बारिश हुई। जहां एक तरफ एसीबी की छापेमारी की तारीफ हो रही है, वहीं सवाल ये भी उठाए जा रहे हैं कि आईपीएस-आईएएस अधिकारियों और विधायकों-मंत्रियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नही होती। जब शक्तियां लोकयुक्त के पास थीं तो उसने बीएस येदियुरप्पा जैसे कद्दावर नेता को जेल भेज दिया था।
जब एंटी करप्शन ब्यूरो ने कलबुर्गी में पीडब्ल्यूडी के ज्वाइंट कमिश्नर शांता गौड़ा बिरादर के आवास पर छापा मारा तो कीमती आभूषणों की चकाचौंध से कमरा जगमगा उठा। एसीबी को शक हुआ तो प्लंबर बुलाया गया और फिर पाइप से नोट की बारिश शुरू हो गई। यह सभी छापेमारी मध्यम दर्जे के सरकारी अधिकारियों के ठिकानों पर की गई। सवाल यह उठता है कि क्या भ्रष्ट सिर्फ मध्यम-निचले दर्जे के अधिकारी हैं। आईएएस, आईपीएस अधिकारियों और चुने हुए प्रतिनिधियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती?
लोकायुक्त एक शक्तिशाली संस्था बनकर उभरी थी, जिसने आईएएस-आईपीएस अधिकारियों समेत येदियुरप्पा जैसे कद्दावर नेता को भ्रष्टाचार के मामले में जेल भेजा था लेकिन लोकयुक्त की 'धार' कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 'भोथरी' कर दी। कांग्रेस के शासन में जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने तो उनके खिलाफ 65 मामले लोकायुक्त में दर्ज थे। अपने को फजीहत से बचाने के लिए उन्होंने एसीबी यानी एंटी करप्शन ब्यूरो बनाया।
एसीबी दरअसल राज्य के मुख्य सचिव को रिपोर्ट करती है और मुख्य सचिव मुख्यमंत्री को। यानी एसीबी पर मुख्यमंत्री का नियंत्रण है। छापेमारी का अधिकार लोकायुक्त से लेकर एसीबी को दे दिया गया। आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच सिर्फ एसीबी ही कर सकती है, जबकि अब लोकायुक्त का दायरा सिर्फ डेरिलिक्शन ऑफ ड्यूटी के मामलों की जांच तक ही सीमित रह गया है। लोकायुक्त के कमजोर होने से भ्रष्ट नेता और अधिकारी खुश हैं लेकिन आम लोगों को लगता है कि उनकी आवाज़ दबा दी गई है।