अहमदाबाद: कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद राहुल गांधी ने मानहानि मामले में सजा माफी के लिए गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उन्हें सूरत की एक निचली अदालत ने दो साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद उन्हें अपनी लोकसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी थी।
राहुल गांधी की ओर से 2019 में मोदी उपनाम को लेकर की गई टिप्पणी के मामले में 23 मार्च को सूरत की अदालत ने फैसला सुनाया था। कोर्ट ने उन्हें धारा 504 के तहत दो साल की सजा सुनाई थी। हालांकि, कोर्ट ने फैसले पर अमल के लिए कुछ दिन की मोहलत भी दी थी। इसके साथ ही उन्हें तुरंत जमानत भी दे दी थी। राहुल ने सूरत की कोर्ट में याचिकाएं भी दाखिल की थ्राीं, जिनमें एक को कोर्ट ने खारिज कर दिया था और दूसरी पर तीन मई को सुनवाई होनी है।
दरअसल, 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था, 'कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?' इसी को लेकर भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था।
उनका आरोप था कि राहुल ने अपनी इस टिप्पणी से समूचे मोदी समुदाय की मानहानि की है। राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से किसी भी कोर्ट में दोषी ठहराए जाते ही नेता की विधायकी-सासंदी चली जाती है। इसके साथ ही अगले छह साल के लिए वह व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाता है। राहुल की सांसदी चली गई है। अगर कोर्ट से भी उन्हें राहत नहीं मिलती है तो राहुल 2024 और 2029 का लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे।
दरअसल, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने लोक-प्रतिनिधि अधिनियम 1951 को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने इस अधिनियम की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार दे दिया था। इस प्रावधान के मुताबिक, आपराधिक मामले में (दो साल या उससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाली धाराओं के तहत) दोषी करार किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को उस सूरत में अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता था, अगर उसकी ओर से ऊपरी न्यायालय में अपील दायर कर दी गई हो। यानी धारा 8(4) दोषी सांसद, विधायक को अदालत के निर्णय के खिलाफ अपील लंबित होने के दौरान पद पर बने रहने की छूट प्रदान करती थी।