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मुंबई: बंबई हाईकोर्ट को सोमवार को बताया गया कि महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने अपनी प्राथमिक जांच के दौरान राज्य के पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे और फरार अपराधी दाऊद इब्राहिम के बीच फोन पर कोई बातचीत नहीं पाया लेकिन वह कुछ गंभीर चीजों को लेकर ठिठक गया जिसकी आगे जांच की जरूरत है। अदालत में एटीएस द्वारा दिए गए बयान को लपकते हुए उत्तर महाराष्ट्र के वरिष्ठ भाजपा नेता खडसे ने इसे अपने प्रति क्लीन चिट तथा अपनी निर्दोषिता की पुष्टि करार दिया। पिछले महीने के प्रारंभ में उन्होंने कई आरोपों को लेकर मंत्रीपद से इस्तीफा दिया था। एटीएस के वकील नितिन प्रधान ने न्यायमूर्ति एन एच पाटिल और न्यायमूर्ति पी डी नाईक की खंडपीठ से कहा, ‘एटीएस ने प्राथमिक जांच की। कोई आतंकवादी कोण नहीं मिला जिसका हैकर ने आरोप लगाया। खडसे और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद के बीच कोई फोन नहीं हुआ जिसका हैकर ने आरोप लगाया था।’ हाई कोर्ट गुजरात के हैकर मनीष भांगले की याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें राज्य मशीनरी द्वारा आंशिक जांच का आरोप लगाया गया है एवं इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की गयी है। एटीएस ने सीबीआई जांच की किसी जरूरत को भी खारिज कर दिया। प्रधान ने वैसे तो जांच में किसी आतंकवादी कोण मिलने से इनकार किया लेकिन कहा, ‘प्राथमिक जांच के दौरान कुछ अन्य गंभीर चीजें सामने आयी हैं। लेकिन उनकी जांच शहर पुलिस की साइबर अपराध शाखा के विशेषज्ञों द्वारा की जाएगी।

एटीएस अपनी प्राथमिक जांच साइबर अपराध शाखा को सौंपेगा जो उसकी जांच करेगी।’ भांगले ने इस साल अप्रैल में पाकिस्तान टेलीकम्युनिकेशन कंपनी लिमिटेड की प्रामाणिकरण प्रक्रिया का हैक करने का दावा किया था और वहीं से उन्होंने फरार अपराधी दाऊद इब्राहिम के टेलीफोन रिकार्ड हासिल किए थे। उनकी याचिका के अनुसार इस सूचना में दाऊद और महाराष्ट्र के पूर्व राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे के बीच बातचीत भी शामिल है। प्रधान ने कहा, ‘याचिकाकर्ता का यह दावा कि उसके द्वारा प्रदत्त सूचना को राज्य मशीनरी ने हल्के में लिया, सही नहीं है। हम आवश्यक कार्रवाई कर रहे हैं और सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है।’ उच्च न्यायालय ने प्रधान का बयान दर्ज करने के बाद भांगले को अपराध शाखा के समय जरूरत के हिसाब से पेश होने को कहा। खंडपीठ ने भांगले की याचिका निरस्त कर दिया और कहा, ‘हम हर बार कूद कर सीबीआई (जांच) पर नहीं पहुंच सकते। यदि बाद में याचिकाकर्ता महसूस करता है कि जांच सही ढंग से नहीं हो रही है तो वह उच्च न्यायालय फिर आ सकता है।’

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