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नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे के मसले पर आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा। 2005 में दिए फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से मना कर दिया था। इसके खिलाफ एएमयू की अपील पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की। 8 दिन चली सुनवाई के बाद बेंच ने 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था।

हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ 2006 में केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। हालांकि, 2016 में एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार इस बारे में अपनी 10 साल पुरानी अपील वापस लेगी। सरकार की तरफ से अपील वापस लेने के बावजूद विश्वविद्यालय और एएमयू ओल्ड ब्वॉयज़ एसोसिएशन की याचिका लंबित रही। दोनों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह 1968 में अज़ीज़ बाशा मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हिसाब से चलना चाहती है।

वर्तमान में मिल रहा 1500 करोड़ सालाना का अनुदान

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संसद के एक्ट के ज़रिये बने केंद्रीय विश्विद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। केंद्र ने कोर्ट को बताया कि 1920 में एएमयू की स्थापना के समय उसने खुद ही अल्पसंख्यक संस्थान न बनना स्वीकार किया था। ब्रिटिश काल में सरकार एएमयू को चलाने के लिए अनुदान देती थी। यह आज़ादी के बाद भी जारी रहा। आज यह अनुदान 1500 करोड़ रुपए सालाना है।

2006 से सुप्रीम कोर्ट ने लगाया था अल्पसंख्यक संस्थान मानने पर स्टे

सुप्रीम कोर्ट के इसी पुराने फैसले के आधार पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मानने से मना कर दिया था। तब हाई कोर्ट ने किसी भी कोर्स में अल्पसंख्यकों के लिए अलग से कोटा रखने को भी गलत बताया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है। इसलिए उसे अपने यहां अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण लागू करने का अधिकार नहीं। एएमयू को दूसरे विश्वविद्यालयों की तरह एससी/एसटी आरक्षण लागू करना होगा। 2006 में हाई कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले के अमल पर रोक लगा दी थी। फ़िलहाल ये रोक जारी है।

मुसलमानों की विश्वविधालय है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी?

एएमयू ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि 1967 के फैसले के बाद संसद ने 1981 में एएमयू एक्ट में बदलाव किया। इस बदलाव में यूनिवर्सिटी को 'मुस्लिमों द्वारा स्थापित' लिखा गया। एक्ट की धारा 5 में बदलाव कर यह लिखा गया कि यह विश्वविद्यालय भारत के मुसलमानों के शैक्षणिक और सांस्कृतिक तरक्की के लिए काम करता है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि 1981 में संसद की तरफ से एएमयू एक्ट में बदलाव के बाद भी वह 1967 के फैसले का हवाला क्यों दे रही है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि 1981 का बदलाव अधूरे मन से किया गया लगता है। यह बदलाव विश्विद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने से चूक गया। देश आजाद होने के बाद 1951 में भी एक्ट में बदलाव हुए थे। उनके तहत विश्विद्यालय के प्रशासन में मुस्लिमों की भूमिका को सीमित किया गया था। 1981 में हुआ संशोधन उस स्थिति में परिवर्तन नहीं लाता।

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