नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली सोमवार को अपना तीसरा चुनौतीपूर्ण बजट पेश करेंगे। माना जा रहा है कि वित्त मंत्री के सामने कृषि और उद्योग जगत की जरूरतों के बीच संतुलन बैठाने की कड़ी चुनौती होगी। इसके अलावा वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती के बीच सार्वजनिक खर्च के लिए संसाधन जुटाना भी इस बार के बजट में एक अहम बिंदू होगा। आयकर के मोर्चे पर बजट में संभवत: टैक्स स्लैब में कुछ बदलाव नहीं होंगे, जबकि इसमें कर छूट में बदलाव हो सकते हैं। एक के बाद एक सूखे की वजह से ग्रामीण क्षेत्र दबाव में है। इसकी वजह से वित्त मंत्री पर सामाजिक योजनाओं में अधिक खर्च करने का दबाव है। साथ ही उनको विदेशी निवेशकों का भरोसा भी जीतना होगा जो तेज सुधारों की मांग कर रहे हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन से सरकार पर 1.02 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। इस वजह से भी वित्त मंत्री के लिए दिक्कतें बढ़ी हैं। यह देखने वाली बात होगी कि अगले साल के लिए राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को जीडीपी के 3.5 प्रतिशत पर रखने के पूर्व में घोषित लक्ष्य से समझौता किए बिना वह इसे कैसे कर पाएंगें। माना जा रहा है कि जेटली कॉरपोरेट कर की दरों को चार साल में 30 से 25 प्रतिशत करने के अपने साल के वादे को पूरा करने के लिए भी कुछ कदम उठाएंगे।
समझा जाता है कि वह बजट में इस प्रक्रिया की शुरुआत करेंगे, जिसमें कर छूट को वापस लिया जाना शामिल होगा जिससे इस प्रक्रिया का राजस्व तटस्थ रखा जा सके।